Friday, November 22, 2024
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जामिया के दंगों की तैयारी बहुत पहले हो चुकी थी, हर शुक्रवार को लगता है डर: जामिया के छात्र ने खोले कई राज़

"बाहरी लोगों ने छात्रों को भड़काया कि पुलिस अगर अंदर आ गई तो उन्हें पीटेगी। इसके बाद फेक न्यूज़ फैलाया गया कि जामिया के छात्र मारे गए हैं। यह भी अफवाह फैलाई गई कि पुलिस गर्ल्स हॉस्टल में घुस गई। उसने बताया कि सच्चाई ये है कि कुछ उपद्रवी ही गर्ल्स हॉस्टल में घुस गए थे, जहाँ बाहरी लड़कियों तक को...."

ऑपइंडिया ने जामिया के कुछ छात्रों से बातचीत की, जिन्होंने यूनिवर्सिटी में हुई दंगेबाजी के पीछे बड़ी साज़िश का पर्दाफाश किया। उनमें से एक ने उन छात्रों की तरफ़ से ऑपइंडिया से बातचीत की लेकिन डर का आलम ये है कि वो छात्र अपना चेहरा दिखाने को राज़ी नहीं हुआ। इसीलिए, आप इस इंटरव्यू को देख सकते हैं लेकिन उस छात्र का चेहरा नहीं देख सकते। वामपंथी व कट्टर इस्लामिक ताक़तों के कारण इन छात्रों में भय का माहौल है। उस छात्र ने ऑपइंडिया को बताया कि दिसंबर में परीक्षाओं के दौरान ही सीएए को लेकर चर्चा शुरू हुई, तब जामिया में भी माहौल बनाया जाने लगा।

जामिया के छात्र ने बताया कि बाकी प्रदर्शनों व अबकी हुए विरोध प्रदर्शनों में ख़ासा अंतर था, जो एक भयंकर ट्रेंड की तरफ़ इशारा कर रहा था। उसने बताया कि इन धरनों में 600-700 की संख्या में छात्र आते थे और उन्हें भड़काया जाता था। इस्लामी मजहबी नारे लगाए गए और कलमा पढ़ा गया। इसी तरह फिलिस्तीन के कट्टरपंथी संगठन के नारे ‘इन्तिफादा’ का प्रयोग किया गया। जामिया के छात्र ने बताया कि ऐसे नारे सारे प्रदर्शनों में लगाए गए और जामिया के छात्रों ने ही लगाया। यहाँ तक कि लड़कियों ने भी इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।

उसने आयशा-लदीदा की ब्रांडिंग की सजिश की भी बात की। उसने बताया कि जामिया शिक्षक संघ ने संसद तक मार्च की योजना बनाई, जैसा जामिया में आज तक कभी नहीं हुआ था। छात्र ने कहा कि जामिया टीचर्स एसोसिएशन ने एक कमिटी बना कर सीएए और एनआरसी के विरोध के लिए कमिटी बनाई। यानी, जामिया में न सिर्फ़ उपद्रवी छात्र, बल्कि शिक्षक भी ये तय कर रहे थे कि सीएए का विरोध कैसे हो। छात्र ने एक और बात बताई, जिसकी मीडिया में चर्चा नहीं हुई। जामिया में वीसी ऑफिस के ऊपर फिलिस्तीन का झंडा लगाया गया। इस काम में पूर्व-छात्र, शिक्षक और गार्ड्स भी शामिल हैं।

जहाँ झंडा लगाया गया, वहाँ सभी को आने-जाने की अनुमति नहीं है, आईडी कार्ड्स दिखाने होते हैं- लेकिन फिर भी वो ऐसा करने में कामयाब हो गए। छात्र ने बताया कि संसद भवन तक मार्च करने के रास्ते में “कॉमरेड, बैरिकेड तोड़ो” का नारा लगाते हुए बैरिकेड तोड़ने के लिए लोगों को भड़काया गया। छात्र ने कहा कि कई बाहरी लोग भी इसमें शामिल हुए और सभी ने मिल कर पत्थरबाजी की। पत्थरबाजी में न सिर्फ़ बाहरी लोग बल्कि छात्र भी शामिल थे। पुलिसकर्मियों की पीटा गया, एक को बाथरूम में बंद कर दिया गया।

उक्त छात्र ने ऑपइंडिया को बताया कि छात्रों को वहाँ के नक़्शे का पूरा पता था लेकिन पुलिस थी, इसका फायदा उठाया गया। छात्र ने कहा कि उकसाने के लिए और मोदी सरकार से बदला लेने के लिए ‘नामर्द’ शब्द तक का भी उपयोग किया गया। उसने कुछ नेताओं का भी नाम लिया, जिन्होंने मेडिएशन के नाम पर दंगे भड़काने का काम किया। बकौल छात्र, इसमें आसिफ मोहम्मद ख़ान अमानतुल्लाह ख़ान जैसे नेताओं ने लोगों को भड़काने का काम किया। जामिया में आम आदमी पार्टी के छात्र विंग की भी अच्छी-ख़ासी उपस्थिति है। उसने बताया कि इंडियन मुस्लिम लीग के नेता कहते हैं कि वो भारतीय बाद में हैं और मुस्लिम पहले हैं। अब तो वहाँ हर शुक्रवार को डर लगता है कि कब क्या हो जाए।

इस तरह की मानसिकता पढ़े-लिखे लोगों में है, ये नेता हैं, अनपढ़-गँवार नहीं। जामिया ने सरकार से अपील करते हुए कहा था कि सीएए को वापस ले लिया जाए। इससे पता चलता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन भी उनलोगों से मिला हुआ है। साथ ही कई छात्र नेताओं ने आसपास के इलाक़ों में मुस्लिमों को भड़काने की बात कही। लेकिन, साथ ही वो विक्टिम कार्ड भी खेलते रहे। कई व्हाट्सप्प ग्रुप्स बना कर हिंसा की साज़िश रची है। ‘जिहाद’ के लिए हॉकी-बैट लेकर चले और पुलिसवालों को ‘तोड़ देने’ की बातें की गईं।

शाहीन बाग़ में चल रहे विरोध प्रदर्शन पर भी जामिया के छात्र ने अपनी राय रखी। उसने बताया कि जेएनयू के एक छात्र शर्जील इमाम ने शाहीन बाग़ में भड़काऊ भाषण दिया। इमाम ने कहा कि मुस्लिमों की इतनी भी औकात नहीं है क्या कि 500 शहरों में चक्का जाम कर सके? ऐसे कई भड़काऊ बयान दिए गए। उक्त छात्र ने बताया कि जेएनयू के वामपंथियों ने जामिया वालों को बुला कर सीएए विरोधी प्रदर्शन व अभियान में उनकी मदद ली। छात्र ने जानकारी दी कि एक उपद्रवी मुस्लिम छात्र ने इजरायल के झंडे भी जलाए। शायद ये भारतीय विदेश मंत्रालय की इमेज को ख़राब करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। उस छात्र का नाम कासिम उस्मानी है, जो आप के स्टूडेंट विंग सीवाईएसएस के नेता है।

साथ ही छात्र ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि आखिर जाँच के लिए सीसीटीवी फुटेज पुलिस को क्यों नहीं दी जा रही? उसने बताया कि इससे सबसे ज्यादा घाटा पढ़ने वाले छात्रों को हुआ है। वो इंटर्नशिप व ट्रेनिंग के लिए नहीं जा पा रहे। इससे प्लेसमेंट्स में दिक्कतें आ रही हैं क्योंकि कम्पनियाँ हिंसा के कारण जामिया की ग़लत इमेज बन रही है। गाँव वालों ने जामिया के छात्रों को भगा दिया। परीक्षाओं की तारीख अब तक 3 बार आगे बढ़ाई जा चुकी है। प्रॉक्टर ने भी उपद्रवी छात्रों की ही बात मानी और परीक्षाओं की तारीख बढ़ा दी।

उक्त छात्र ने बताया कि रोज़ कई नेता आ रहे हैं और भड़काऊ भाषण देकर छात्रों को उकसा रहे हैं। लाइब्रेरी और रीडिंग हॉल कई दिनों से बंद हैं। उसने हिंसा वाले दिन की बात करते हुए कहा कि पुलिस ने जब पत्थरबाजी को नियंत्रित करने के लिए कैम्पस में प्रवेश किया, तब लाइब्रेरी में उपद्रवियों ने टेबल-कुर्सी वगैरह को दरवाजे पर रख दिया ताकि पुलिस को रोका जा सके। अपनी ही लाइब्रेरी में तोड़फोड़ की गई। उसने आरोप लगाया कि जामिया की वीसी ने ख़ुद गर्ल्स हॉस्टल में कहा था कि सीसीटीवी फुटेज पुलिस को दे दिया जाए तो जामिया के छात्र पकड़े जाएँगे।

जामिया के छात्र से बातचीत (हम उसका चेहरा नहीं दिखा सकते)

दरअसल, अगर उक्त छात्र के बयान को मानें तो बाहरी लोगों ने छात्रों को भड़काया कि पुलिस अगर अंदर आ गई तो उन्हें पीटेगी। इसके बाद फेक न्यूज़ फैलाया गया कि जामिया के छात्र मारे गए हैं। ऐसा इसीलिए किया गया ताकि आसपास के लोगों को हिंसा के लिए भड़काया जा सके। यह भी अफवाह फैलाई गई कि पुलिस गर्ल्स हॉस्टल में घुस गई। उसने बताया कि सच्चाई ये है कि कुछ उपद्रवी ही गर्ल्स हॉस्टल में घुस गए थे, जहाँ बाहरी लड़कियों तक को जाने की अनुमति नहीं है।

कुल मिला कर उक्त छात्र से बात करने के बाद ये पता चला कि विभिन्न संगठनों के वामपंथी व इस्लामी नेता अनुच्छेद 370, राम मंदिर, तीन तलाक़ और सीएए को लेकर छात्रों को भड़काने में लगे हैं। और ये सब एक बड़ी साज़िश का हिस्सा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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