‘जामिया के छात्र’ नामक जामिया मिलिया इस्लामिया का एक कथित छात्र संगठन ने एक ऐसी बैठक के लिए पोस्टर जारी किया है जो मजहब विशेष के लोगों से राजनीतिक रूप से अल्लाह के कानून द्वारा ‘शासन स्थापित करने’ के लिए संगठित होने का आह्वान करता है।
‘जामिया के छात्रों’ ने अपने फेसबुक पेज पर कहा है कि विश्वविद्यालय के पॉलिटेक्निक लॉन में आज शुक्रवार 6.40 बजे, ‘अल्लाह की आज्ञा हर कानून से ऊपर है’ (“The Command of Allah Is Over Every Law”) शीर्षक से एक निर्धारित बैठक आयोजित की थी।
संगठन के फेसबुक पेज द्वारा साझा किए गए इवेंट के पोस्टर में दावा है कि “बाबरी मस्जिद एक मस्जिद है और ऐसा ही रहेगा, ऐसा न हो कि हम भूल जाएँ।”
संगठन द्वारा साझा किया गया एक अन्य पोस्टर यह घोषणा करता है कि ‘अल्लाह का कानून सभी से ऊपर है’ और यह भी कहता है कि ‘बाबरी मस्जिद एक मस्जिद रहेगी’।
संगठन ने यह भी स्पष्ट रूप से घोषणा करते हुए पोस्ट साझा किए हैं कि वे ‘अल्लाह के कानून’ के सिवा कोई कानून नहीं मानते हैं। 29 अक्टूबर को साझा किए गए उनके एक पोस्ट में कहा गया है, “पूरी दुनिया कई आधारों पर विभाजित है। रंग, नस्ल और और इन सबसे ऊपर राष्ट्रीयता के आधार पर। लोग देश के आधार पर अपने रंग या अपने प्रजाति के आधार पर दूसरों के प्रति प्रेम और शत्रुता रखते हैं।”
यह आगे कहा गया है कि अल्लाह में विश्वास जुड़े रहने का सबसे शानदार तरीका है, राष्ट्रीयता या जन्म की तुलना में। यह अल्लाह के सभी विश्वासियों को अल्लाह के प्रति विश्वास के आधार पर फिलिस्तीनियों के साथ सहानुभूति रखने के लिए कहता है और इसलिए इजरायल को दुश्मन की तरह ट्रीट करने को कहा गया है।
15 नवंबर को साझा किए गए एक अन्य पोस्ट में संगठन के अनुयायियों को यह याद दिलाने की कोशिश की गई है कि जो कोई उनके साथ असहमत था, वह अब पूरे दिल से सहमत होगा। संदर्भ अयोध्या का फैसला था, जिसे 9 नवंबर को घोषित किया गया था। पोस्ट में कहा गया है, “अदालत और अन्य संस्थान के पीछे के कई दुष्चक्र हैं। इसके पीछे गंदी डार्क रियलिटी है और हमें इससे पहले ही इसका खुलासा करने की जरूरत है। क्योंकि तब बहुत देर हो चुकी होगी।”
इस पोस्ट को पिछले साल 6 दिसंबर, 2018 को बाबरी मस्जिद विध्वंस की सालगिरह पर उनके फेसबुक पेज पर पोस्ट किया गया था जिसे इस साल फिर से साझा किया गया था।
बाबरी विध्वंस दिवस पर साझा की गई 2018 की पोस्ट ने घोषणा की गई थी कि 1948 से, भारत में ब्राह्मणवादी शासन चल रहा है और ये शासन उत्पीड़न, और अन्याय’ की बात करता है। इसमें आगे कहा गया है कि बाबरी विध्वंश, दरअसल उम्मा अर्थात (पूरे विश्व में इस्लाम का शासन) के पतन का प्रतीक था।
इसमें कहा कि रामराज्य कुछ और नहीं बल्कि शिर्क (अत्याचारी, गैर मजहबी) का झंडा और बाबरी विध्वंस तौहीद अर्थात न्याय के झंडे के पतन के अलावा और कुछ नहीं है।
“मु###नों के नेतृत्व का दावा करने वाले और एक झूठी आशा देते हुए कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट या किसी भी कानून द्वारा अपने वर्ग के लाभ के लिए उन लोगों के एक झुंड द्वारा लिखा जा रहा है (जिनकी वैधता कभी भी उन सभी के द्वारा ही स्वीकार नहीं की गई है) उन्हें पता होना चाहिए कि कृत्रिम कानून, शक्तियाँ, लोग और अदालतें बदल जाएँगी और गायब हो जाएँगी लेकिन मस्जिद के मस्जिद होने की वास्तविकता क़यामत तक बनी रहेगी।”
जिस तरह से यरूशलेम में मस्जिद अल अक्सा को इजरायल ने ‘कब्जे’ में ले लिया है उसी तरह से बाबरी मस्जिद भी कब्जे में है। इस बात की भी घोषणा है, “न्याय तब तक दूर है जब तक तौहीद का झंडा और अल्लाह की कलमा सभी पर हावी नहीं होता है।”
गौरतलब है कि विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने नाम न छापने की शर्त के पर कहा है कि इस संगठन के छात्र परिसर के अंदर नियमित बैठकें करते हैं, और इस समूह द्वारा आयोजित ‘फ्रेशर्स मीट’ आयोजनों में से एक में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के दो प्रोफेसर भी शामिल हुए हैं। जो की संस्था में अतिथि वक्ताओं के रूप में जुड़े हैं, ऐसा दावा किया गया है।
छात्रों ने कहा कि समूह अपनी गतिविधियों और बैठकों को निर्बाध रूप से और विश्वविद्यालय प्रशासन के संज्ञान में चलाता आया है। उनके बयान अक्सर भारतीय पहचान को तोड़फोड़ और मजहबी पहचान को गले लगाने के लिए उकसाते हैं। उन्होंने कथित तौर पर ऐसी घटनाओं का भी आयोजन किया था जहाँ उन्होंने फिलिस्तीन के समर्थन की घोषणा की थी और इजरायल की निंदा की थी।
समूह द्वारा साझा की गई 4 अक्टूबर की पोस्ट वास्तुकला संकाय में एक इज़राइल द्वारा प्रायोजित घटना की निंदा करती है और कहती है कि इजरायल द्वारा किसी भी कार्यक्रम की अनुमति देना विश्वविद्यालय के संस्थापक सिद्धांतों के खिलाफ है।
छात्रों ने यह भी जोड़ा कि विश्वविद्यालय का एक नियम है कि प्रशासन की अनुमति के बिना कैंपस लॉन पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की मनाही है, यह विशेष समूह ‘जामिया के छात्र’ लगभग हर शुक्रवार को ऐसी बैठकें आयोजित करते रहे हैं।
जब ऑपइंडिया ने जामिया मिलिया इस्लामिया के जनसंपर्क अधिकारी, अहमद अज़ीम से बात करने की कोशिश की, तो हमें बताया गया कि उन्हें इस तरह के किसी भी आयोजन की जानकारी नहीं है और विश्वविद्यालय अपने परिसर को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने की मंजूरी नहीं देता है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी छात्र समूह के कार्यक्रम में, परिसर के अंदर किसी भी लॉन या मैदान का उपयोग करने से पहले विश्वविद्यालय प्रॉक्टर से अनुमति लेनी होगी।
छात्रों के समूह के फेसबुक पेज पर एक नज़र बताता है कि वे वास्तव में इस्लामिक दृष्टिकोण से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए लगभग हर हफ्ते बैठक करते रहे हैं। यहाँ उनकी पिछली बैठकों के एजेंडे पर समूह द्वारा साझा किए गए कुछ पोस्टर हैं।
पोस्टर में से साथी छात्रों के लिए “आज का सलाउद्दीन होना” और “अल-कुद्स की मुक्ति (यरूशलेम के लिए इस्लामी नाम)” के लिए खड़े होने को कहता है। एक अन्य पोस्टर जिसका शीर्षक है ‘कौन आपका कानून बनाने वाला डिज़र्व करता है?’ ‘अल्लाह के सिवा कोई और नहीं।’