झारखंड की राजधानी राँची में एक बुजुर्ग ईसाई के शव को दफनाने के लिए कब्रिस्तान में जगह नहीं दी गई। जिसके बाद परिजनो ने बुजुर्ग का हिंदू धर्म के रीति-रिवाज के अनुसार शमशान घाट में अंतिम संस्कार कर दिया। मृतक का परिवार 15 साल से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है। बुजुर्ग की मौत के बाद उसे दफनाने के लिए कब्रिस्तान से संपर्क किया गया तो कहा गया कि वहाँ पर अब जगह ही बाकी नहीं है।
इस मामले में चर्च के फादर से संपर्क नहीं हो सका, लेकिन संत फ्रांसिस चर्च हरमू के सदस्य पी आईंद ने हिन्दुस्तान से कहा कि इस घटना की उन्हें जानकारी नहीं है। हालाँकि उन्होंने बताया कि संत फ्रांसिस चर्च का नियम है कि हर परिवार को कब्रिस्तान के लिए जगह खरीदनी होती है। इसके लिए चंदा देना होता है। यदि मृतक राँची के बाहर का होगा, तो उसने कब्रिस्तान के लिए चंदा नहीं दिया होगा। ऐसी स्थिति में चर्च प्रबंधन शव दफनाने से रोक सकता है।
इसका दुखद अहसास उस परिवार को तब हुआ जब राँची में एक ईसाई बुजुर्ग की मौत के बाद शव दफनाने के लिए कब्रिस्तान में जगह नहीं मिली। इसके बाद कोई रास्ता नही बचते देख परिजनों ने हिंदू रीति रिवाज के साथ हरमू मुक्ति धाम में उनकी अंत्येष्टि कर दी। हालाँकि, इस अंत्येष्टि में आस-पास के लोगों ने भरपूर सहयोग किया। जानकारी के मुताबिक राजधानी राँची की हरमू नदी के पास की बस्ती में रहने वाले रामशरण टूटी का निधन गुरुवार (अप्रैल 30, 2020) की देर रात को हो गया था।
निधन के बाद उनके परिजनों ने शव को दफनाने के लिए संत फ्रांसिस चर्च के प्रतिनिधियों से संपर्क किया। मृतक के पुत्र फिलिप टूटी ने बताया कि उनका परिवार 15 साल से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है और सभी लोग नियमित संत फ्रांसिस चर्च जाते हैं। पिता के निधन के बाद दफनाने के लिए चर्च के फादर से बात हुई।
फादर ने कहा कि कब्रिस्तान में जगह नहीं है। संभव हो तो शव को अपने गाँव ले जाओ। जब फिलिप टूटी ने बताया कि वो शव को गाँव ले जाने में सक्षम नहीं हैं तो फिर फादर ने उससे आसपास के लोगों के सहयोग से कोई दूसरा रास्ता निकालने के लिए कहा। और कोई दूसरा विकल्प न देख ईसाई परिवार से पड़ोसियों की मदद से हरमू मुक्तिधाम ले जाकर शव का अंतिम संस्कार कर दिया। यह परिवार मूल रूप से खूंटी के फुदी के रहने वाला है। फिलहाल ये लोग राँची में किराए के मकान में रहते हैं।
इस मामले के सामने आने के बाद धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने लोगों के बीच काफी नाराजगी देखी जा रही है। लोगों का कहना है कि जब मौत के बाद भी जगह नही मिलेगी तो फिर ऐसे धर्म को अपनाने से क्या फायदा। इस घटना से सभी दुखी हैं। लोगों ने कहा कि दफनाने के लिए जगह खरीदनी होगी और जो समर्थ नही होंगे उनका क्या होगा? ऐसे कई सवाल आज ईसाई धर्म अपनाने वाले पूछने लगे हैं।
उल्लेखनीय है कि ईसाई धर्मांतरण की खबरें लगातार सामने आती रहती हैं। 30 मार्च 2019 को राँची स्थित लालपुर थाना क्षेत्र के नागरा टोली में सरना धर्म से ईसाई धर्म में परिवर्तन कराने का मामला सामने आया था। धर्मांतरण के दौरान प्रार्थनाओं की आवाज़े सुनाई देने पर रोशनी मोहल्ले की अन्य महिलाओं के साथ उस घर में पहुँची जहाँ दो महिलाएँ प्रार्थना करवा रही थीं और बाक़ी दो महिलाएँ झूम रही थीं। पार्षद और अन्य महिलाओं ने मिलकर धर्मांतरण कराने के आरोप में करीना कुजूर व सुकरो मुंडा को पकड़ा और इन्हें लालपुर पुलिस के हवाले कर दिया गया।
इसी तरह फरवरी 2020 में बिहार के नवादा जिले से खबर आई थी कि यहाँ 15 हिंदू परिवारों के 50 सदस्यों ने धर्म परिवर्तन कर ईसाई धर्म अपना लिया है। नवादा के ताराटाड टोला में अब हिदू धर्म को मानने वाले महज तीन परिवार ही बचे हैं, लेकिन उन पर भी धर्मातरण के लिए दबाव है। बताया गया कि कभी हिंदू धर्म और देवी-देवताओं में आस्था रखने वाले इन परिवारों ने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया है।