हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की दिन-दहाड़े गला रेत कर, गोली मार कर हत्या कर दी जाती है। हत्या करने वाले जितने भी आरोपित अब तक पुलिस की पकड़ में आए हैं, उनकी मंशा भी स्पष्ट हो चुकी है कि वो किस तरह से पूरी घटना को वीडियो में कैद कर उसे वायरल करना चाहते थे, एक संदेश देना चाहते थे। हत्या की इस वारदात को अंजाम देने वाले आरोपितों ने अपना ज़ुर्म क़बूलते हुए कहा कि वो लोग कमलेश तिवारी का सिर धड़ से अलग करना चाहते थे। इसके बाद सिर को हाथ में लेकर वीडियो बनाकर दहशत फैलाना चाहते थे।
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इस बीच एक और खबर सामने आ रही है, जो कि और भी हैरान करने वाली है। इस तरह की नृशंस हत्या का विरोध करने और हत्यारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की बात करने के बजाय जमीयत उलेमा-ए-हिंद हत्यारों के बचाव में सामने आया है। कमलेश तिवारी हत्यकांड में पुलिस ने अब तक पाँच आरोपितों को गिरफ्तार किया है। तिवारी की पत्नी और माँ ने इनके लिए मृत्युदंड की माँग की है। वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि हत्यारों को बचाने में जो भी कानूनी खर्च आएगा, उसे वो वहन करेंगे।
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इस्लामी विद्वानों की संस्था जमीयत ने लोगों से अपील की है कि वो हत्यारों की कानूनी लड़ाई लड़ने में उनका साथ दें, क्योंकि वो (हत्यारे) गरीब हैं। बता दें कि आरोपितों की गिरफ्तारी के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने पाँचों आरोपितों के परिवार से मुलाकात की और जब उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ने में असमर्थता जताई तो जमीयत ने अपने खर्चे पर वकील और अन्य सहायता करने का भरोसा दिलाया। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सचिव हकीमुद्दीन काशमी और महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि वो पाँचों आरोपितों की हरसंभव मदद करेंगे।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद यह कह कर नहीं बच सकता कि भारतीय संविधान और कानून के तहत हर अपराधी को स्वतंत्र न्याय प्रणाली के तहत अपने बचाव में कानूनी सहायता लेने का अधिकार है। वो तो है ही! वो तो कसाब जैसे मास मर्डरर को भी मिली थी। लेकिन सवाल यह है कि आप खुद क्यों दे रहे कानूनी सहायता? क्योंकि इसी भारतीय कानून के अनुसार तय यह भी है कि अपराधी चाहे जो भी हो, जैसा भी हो और उसने अपराध कैसा भी किया हो, उसे राज्य अपनी ओर से कानूनी सहायता मुहैया (वकील देना) तो कराती ही है। फिर आप बजाय इस नृशंस हत्या के विरोध करने हत्यारों की ‘गरीबी का झुनझुना’ लेके मैदान में क्यों कूद गए? शायद इसलिए क्योंकि आप उसे अपने समुदाय का मानते हैं। ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता’ के नारे लगाने वाले आप ‘हत्यारों का धर्म होता है, और वह हमारे समुदाय से है’ का गाना क्यों गाने लगे?
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के इस कदम ने एक बार फिर से साबित कर दिया कि वो इस तरह के कुकृत्य और नृशंस हत्या करने वालों के साथ है। इस समुदाय को अभी भी ये हत्यारे सही लग रहे हैं। इस समुदाय के लिए यह एक मौका था, जब इनकी शीर्ष संस्थाएँ सामने आ कर कहतीं कि जो हुआ वो सही नहीं हुआ, मगर जिस तरह से समाज में इसे मौन और मुखर, दोनों तरह से, स्वीकृति मिल रही है, लगता नहीं है कि समुदाय को इससे कोई आपत्ति है।
इस स्थिति में जब समुदाय को सामूहिक तौर पर हत्यारों का बहिष्कार कर के भाईचारे का संदेश देना चाहिए था, इनकी सबसे पढ़ी-लिखी संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद खुलकर उनके बचाव में उतर रही है। यह बताता है कि यह कैंसर कितना भयावह हो चुका है और ऐसी सोच ऊपर से नीचे तक भारतीय समाज को खोखला कर रही है।