हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या 18 अक्टूबर को लखनऊ में कर दी गई थी। इस हत्याकांड में कई मौलवियों के नाम सामने आए थे। इसके बाद यूपी पुलिस और गुजरात एटीएस की कार्रवाई में कई लोग गिरफ़्तार किए गए थे। मुख्य आरोपित अशफ़ाक़ और मोईनुद्दीन ने स्वीकार किया था कि पैगम्बर मुहम्मद पर दिए गए बयान के कारण उन्होंने हिन्दू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की बेरहमी से हत्या कर दी। इस मामले में बरेली के मौलाना सैयद कैफ़ी अली का नाम भी सामने आया था। उसने हत्यारोपितों की मदद की थी और उन्हें संरक्षण दिया था।
कैफ़ी आजमी ने अदालत में जमानत याचिका दायर की थी, जिसे प्रभारी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सुदेश कुमार ने मंजूर कर लिया। 20-20 हज़ार रुपए के 2 जमानत एवं निजी मुचलका राशि दाखिल करने पर उसे जमानत दी गई। मौलाना ने अदालत में कहा कि उस पर लगे आरोप जमानती हैं। इसे अदालत ने मान लिया। मौलाना पर आरोप है कि उसने कमलेश तिवारी के हत्यारों को अपने घर में शरण दी।
मौलाना ने तिवारी के हत्यारों की आर्थिक मदद की थी। उनका इलाज भी किया था। इसके बाद दोनों वहाँ से भागने में सफल रहे थे। मौलाना के ख़िलाफ़ पुलिस को कई साक्ष्य मिले थे। इन सबके आधार पर उसे 22 अक्टूबर को एसआईटी ने गिरफ़्तार किया था। बुधवार (दिसंबर 4, 2019) को मौलाना जेल से बाहर आ जाएगा। सैयद कैफ़ी ताजुशरिया दरगाह से जुड़ा हुआ है। उसके साथ अधिवक्ता नावेद और उसके पार्टनर कामरान को भी गिरफ़्तार किया गया था। ये दोनों दरगाह आला हजरत से जुड़े हुए हैं।
मौलाना की जमानत करवाने के लिए ताजुशरिया के मुफ़्ती असजद रज़ा खाँ ने प्रयास किया था। परिजनों ने मुफ़्ती से इसके लिए अपील की थी। उसकी पैरवी आला हजरत दरगाह से जुड़े संगठन जमात रज़ा-ए-मुस्तफा ने की। संगठन के उपाध्यक्ष सलमान हसन खाँ कादरी ने बताया कि मौलाना की रिहाई के लिए उन्होंने वकीलों के एक पूरे पैनल को लगाया था।