इलाहाबाद हाईकोर्ट में काशी के ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर को लेकर सुनवाई चल रही है। इस मामले में अगली सुनवाई के लिए बुधवार (फरवरी 17, 2021) की तारीख़ तय की गई है। मंदिर पक्ष ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि काशी में तत्कालीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़ कर उसे ज्ञानवापी मस्जिद का रूप दे दिया गया। तहखाने सहित चारों ओर की भूमि पर हिन्दुओं का वैध नियंत्रण होने की बात भी कही गई।
विश्वनाथ मंदिर पक्ष ने बताया कि अभी भी मस्जिद के पीछे शृंगार गौरी की पूजा की जाती है। नंदी का मुख भी मस्जिद की तरफ है, जो बताता है कि वही मंदिर हुआ करता था। साथ ही पूजा वाले स्थल पर कथा भी आयोजित की जाती है। आगे सबूत दिया गया कि तहखाने के दरवाजे पर हिन्दुओं और मंदिर प्रशासन का ताला लगा हुआ है। दरवाजा दोनों तरफ से खुलता है। मस्जिद के पीछे मंदिर निर्माण का ढाँचा स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
जहाँ मुस्लिम समाज नमाज पढ़ता है, वो विवादित ढाँचे के तहखाने की छत है। मंदिर पक्ष ने याद दिलाया कि इस्लाम में विवादित स्थल पर पढ़ी गई नमाज कबूल ही नहीं होती है, इसीलिए अवैध कब्जे के खिलाफ वाद पर सुनवाई चलनी चाहिए और इस पर आपत्ति जताने वाले याचिका को ख़ारिज किया जाए। वहीं मस्जिद पक्ष कानून का हवाला देकर 1947 की मंदिर-मस्जिद की स्थिति में बदलाव न किए जाने की दलीलें दे रहा है।
उनका कहना है कि यथास्थिति बनाए रखने वाले कानून के कारण मुकदमे पर रोक लगाई जाए। मस्जिद पक्ष ने कहा कि वाराणसी के अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा मुकदमे की सुनवाई का आदेश देना गलत है। मंदिर पक्ष ने इस दलील की बखिया उधेड़ते हुए कहा कि ये विवाद आज़ादी से भी पहले का है, इसीलिए उसके बाद वाला ये कानून इस पर लागू नहीं होता। इसे विधिक अधिकार बताते हुए मस्जिद हटाने की माँग की गई, क्योंकि इसे जबरन मंदिर तोड़ कर बनाया गया था।
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर HC में सुनवाई, पढ़ें दोनों पक्षों की क्या हैं दलीलें?https://t.co/XIbOQkA95P
— News18 Uttar Pradesh (@News18UP) February 10, 2021
याद हो कि अक्टूबर 2020 में कोर्ट ने देर से याचिका दायर करने के लिए सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड पर 3000 रुपए का जुर्माना लगाया था। दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव के जिस ज्योतिर्लिंग का दर्शन किया जाता है, उसका मूल स्वरूप वो नहीं बल्कि उस जगह पर मौजूद है जहाँ 350 वर्ष पहले मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर एक मस्जिद बना दी गई थी। हिंदू पक्ष ने वाराणसी की उस अदालत में 351 वर्ष एक महत्वपूर्ण कागज जमा कराया था।