केरल के त्रिशूर जिले में स्थित गुरुवायुर मंदिर के प्रबंधन बोर्ड ने श्रद्धालुओं से तुलसी ना अर्पित करने को कहा है। बोर्ड ने कहा है कि श्रद्धालुओं द्वारा लाई तुलसी पूजा में काम नहीं आती और इसमें केमिकल की मात्रा भी ज्यादा होती है, ऐसे में इन्हें ना चढ़ाया जाए। बोर्ड के इस फैसले पर विवाद हो गया है। इस बोर्ड के मुखिया CPM के नेता वीके विजयन हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मंदिर बोर्ड ने हाल ही में श्रद्धालुओं को बाहर से खरीद कर तुलसी मंदिर में ला लाने की सलाह दी। श्रद्धालु यह तुलसी गुरुवायुर भगवान (भगवान विष्णु के रूप) पर चढ़ाते थे। बोर्ड ने कहा कि बाहर से लाई गई तुलसी को माला बनाने या भगवान की पूजा के लिए उपयोग नहीं किया जाता है।
बोर्ड ने बताया कि इस तुलसी को एक निजी संस्था को दिया जाता है जो बाद में इससे कई अन्य उत्पाद तैयार करती है। बोर्ड ने कहा कि बाहर से लाई गई तुलसी में कीटनाशक की मात्रा अधिक होती है इसलिए श्रद्धालु उसे लाने से बचें। बताया गया है कि गुरुवायुर मंदिर में पूजा के फूल या माला लाने का काम कुछ परिवार पीढ़ियों से करते आ रहे हैं।
मंदिर के कुछ स्टाफ ने मीडिया को बताया कि बाहर से लाई गई तुलसी से उनके हाथों से खुजली मचती है और इससे एलर्जी भी होती है। मंदिर बोर्ड ने श्रद्धालुओं को सलाह दी है कि वह तुलसी की जगह कमल के फूल लेकर मंदिर के भीतर आएँ।
मंदिर बोर्ड के इस फैसले को लेकर विवाद हो गया है। श्रद्धालुओं ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि उनके अधिकार पर बोर्ड कब्जा कर रहा है। गौरतलब है कि गुरुवायुर देवासम बोर्ड के चेयरमैन वी के विजयन हैं जो कि केरल में CPM के बड़े नेता हैं।
वी के विजयन इस बोर्ड के चेयरमैन मार्च, 2024 में बने थे। यह उनका दूसरा कार्यकाल है। स्थानीय हिन्दू संगठनों ने बोर्ड के तर्कों पर हमला करते हुए तुलसी चढ़ाने से मना करने का विरोध किया है। उन्होंने पूछा है कि बोर्ड आखिर फिर बाकी ऐसे चीजें क्यों लेता है जो पूजा में नहीं उपयोग की जाती।
क्षेत्र रक्षा समिति के सचिव एम बिजेश ने कहा, “अगर बोर्ड कार और सोने के आभूषण जैसी वस्तुओं को स्वीकार कर सकता है जिनका उपयोग पूजा के लिए नहीं किया जा सकता, तो उसे भक्तों को भगवान को कुछ प्रिय वस्तुएँ चढ़ाने से नहीं रोकना चाहिए। तुलसी चढ़ाने से मना करने के बजाय उनका कुछ अच्छा उपयोग क्यों नहीं तलाशा जाता?”
इससे पहले केरल के मंदिरों में मई 2024 में अराली का फूल भी बैन कर दिया गया था। इस फूल की वजह से एक 24 साल की नर्स की मौत हो गई थी। इसके बाद दो बड़े मंदिर बोर्ड ने मंदिरों में यह फूल लाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
गुरुवायुर मंदिर हिन्दुओं के लिए काफी महत्व रखता है और यह सदियों पुराना है। बताया जाता है कि यह मंदिर 14वीं शताब्दी में पूरा हुआ था। मंदिर में भगवान विष्णु की 4 भुजाओं वाला एक विग्रह स्थापित है, इसी रूप को गुरुवायुर कहा जाता है।