Monday, November 18, 2024
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‘शौहर का पहली बीवी से समान व्यवहार नहीं करना कुरान के खिलाफ, मुस्लिम महिलाओं के लिए यह तलाक का आधार’: केरल HC

अदालत ने यह फैसला थालास्सेरी (Thalassery) की रहने वाली एक मुस्लिम महिला की याचिका पर सुनाया है, जिसमें उसने अपने शौहर से तलाक की माँग की थी। उसका कहना है कि उसके शौहर ने दूसरा निकाह किया है और वह उससे अलग रहता है।

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में कुरान का हवाला देते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जिस महिला का शौहर दूसरा निकाह करता है और पहली बीवी को समान अधिकार देने में विफल रहता है, तो उस महिला को इस आधार पर तलाक मिलना चाहिए।

जस्टिस ए. मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, “पहली बीवी के साथ वैवाहिक संबंधों को निभाने से इनकार करना कुरान के खिलाफ है, जो पहली बीवी के साथ समान व्यवहार पर जोर देता है। यदि शौहर एक से अधिक निकाह करता है तो ऐसी परिस्थितियों में भी उसे पहली बीवी को सभी अधिकार देने होंगे। वह इससे इनकार नहीं कर सकता। अगर इसका उल्लंघन होता है तो महिला को इस आधार पर तलाक लेने का अधिकार है।”

अदालत ने आगे कहा कि मुस्लिम तलाक अधिनियम की धारा 2 (8) (F) के अनुसार, महिला को तलाक की अनुमति तब दी जानी चाहिए, जब शौहर दूसरा निकाह होने के बाद पहली बीवी की उपेक्षा कर रहा हो। वह कुरान के नियमों का पालन नहीं कर रहा हो। ऐसे शौहर द्वारा याचिकाकर्ता को दो साल से ज्यादा समय तक संरक्षण नहीं देना तलाक देने के लिए पर्याप्त आधार है।

अदालत ने यह फैसला थालास्सेरी (Thalassery) की रहने वाली एक मुस्लिम महिला की याचिका पर सुनाया है, जिसमें उसने अपने शौहर से तलाक की माँग की थी। उसका कहना है कि उसके शौहर ने दूसरा निकाह किया है और वह उससे अलग रहता है। थालास्सेरी फैमिली कोर्ट में उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसके बाद उसने इस मामले को केरल हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

उस व्यक्ति ने याचिकाकर्ता से वर्ष 1991 में निकाह किया था, जिससे उसके तीन बच्चे भी हैं। महिला ने 2019 में तलाक के लिए याचिका दायर की थी। वह 2014 से अपने पति से अलग रह रही है। तलाक के लिए महिला ने अपनी याचिका में मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939 की धारा 2(ii), 2(iv) और 2(viii) के तहत तलाक लेने का आधार बताया था। दलीलों के दौरान धारा 2(viii)(f) का भी इस दौरान उल्लेख किया गया था।

वहीं, महिला के शौ​हर का दावा है कि इस अवधि के दौरान वह उसे सहायता प्रदान करता रहा है। हालाँकि, अदालत ने इस तथ्य को सर्वोपरि माना है कि वे सालों से अलग रह रहे हैं, जो यह दिखाता है कि पहली बीवी के साथ उसके द्वारा समान व्यवहार नहीं किया जाता है। पहली बीवी के साथ नहीं रहना और अपने वैवाहिक कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रहना कुरान में कही गई बातों का उल्लंघन है, जिसके आधार पर केरल हाईकोर्ट ने पहली बीवी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसे तलाक देने को कहा है। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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