कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी के संसदीय क्षेत्र केरल के वायनाड के किसानों को केरल हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने वायनाड जिले के किसानों को उनके खेतों में आने वाले जंगली सूअरों को मारने के अनुमति दे दी है। इन सूअरों के कारण किसानों की फसलों को काफी नुकसान पहुँच रहा था। इसके बावजूद, राज्य की वामपंथी सरकार सूअरों से फसलों को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रही थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट ने शुक्रवार (24 जुलाई 2021) को इस मामले में अंतरिम आदेश पारित कर निर्देश दिया कि मुख्य वन्य जीव संरक्षक किसानों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 11(1)(बी) के तहत अपनी कृषि भूमि के पास आने वाले जंगली सूअर का शिकार करने की अनुमति देंगे। इसके साथ ही उन्हें एक महीने के भीतर कोर्ट को रिपोर्ट देने के लिए भी कहा गया।
जस्टिस पीबी सुरेश कुमार ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए कहा कि राज्य सरकार इस मामले से निपटने में पूरी तरह से फेल रही है। ऐसी स्थिति में ऐसा निर्देश देना आवश्यक था। इसीलिए कोर्ट मुख्य वन्य जीव वार्डन को अंतरिम आदेश जारी करती है कि वे याचिकाकर्ताओं को उनकी कृषि भूमि पर आने वाले जंगली सूअर के शिकार की इजाजत दें।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “चूंकि यह स्वीकार किया गया है कि राज्य की मशीनरी जंगली सूअर के हमले को नियंत्रित करने के मुद्दे को हल करने में पूरी तरह विफल रही है, इसलिए यह अदालत एक अंतरिम आदेश पारित करना उचित समझती है जिसमें निर्देश दिया गया है कि मुख्य वन्य जीव संंरक्षक याचिकाकर्ताओं को उनकी कृषि भूमि पर आने वाले जंगली सूअर का शिकार करने की अनुमति देंगे।।”
जंगली सूअरों द्वारा किसानों की फसलों को नुकसाने पहुँचाने के मामले में किसानों ने एडवोकेट एलेक्स एम स्कारिया और अमल दर्शन के जरिए हाईकोर्ट में रिट पिटिशन दायर की थी।
यह मामला नया नहीं है। जंगली सूअरों के आतंक से निपटने के लिए पिछले साल ही किसानों के एक समूह ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 62 के तहत जंगली सूअर को हिंसक जानवर घोषित करने की माँग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में आरोप कहा गया था कि जंगली सुअर किसानों के खेतों और फसलों को लगातार अपना निशाना बना रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में शिकायत की थी कि ‘जंगली सूअर’ वर्तमान में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची II के तहत जंगली जानवर है। ऐसे में अपने घर फसलों को बचाने के लिए भी अगर उसे मारा जाता है तो आपराधिक मामला बन सकता है। इस नियम के कारण किसान असहाय थे और उनके पास आपराधिक दंड का जोखिम उठाए बिना अपनी फसलों को जंगली सूअर से बचाने का कोई और साधन नहीं था।