केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अनुच्छेद-25 धर्म के आधार पर टैक्स में कोई छूट प्रदान नहीं करता है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए आगे कहा कि नन और पादरी के वेतन में टीडीएस की कटौती होगी। रिपोर्ट्स के अनुसार, जस्टिस एसवी भट्टी और जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि इस तरह की टैक्स कटौती संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करती है।
इसके साथ ही खंडपीठ ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि नन और पादरी अपने वेतन का इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि इसे अपनी धार्मिक मंडली को दे देते हैं। उन्होंने कहा कि यदि आय आयकर अधिनियम के तहत वेतन के रूप में आती है, तो इस पर टीडीएस कटौती की अनुमति है।
बाइबिल के कोट, “Render unto Caesar the things that are Caesar’s and unto God the things that are God’s” का हवाला देते हुए केरल हाईकोर्ट की बेंच ने कई पादरी और नन की दलीलों को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने टैक्स देने का विरोध किया था। अदालत ने कहा कि सरकारी और सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में काम करने के दौरान मिलने वाले वेतन पर टैक्स कटौती की अनुमति है। साथ ही उन्होंने कहा, “अनुच्छेद-25 धर्म के आधार पर टैक्स में कोई छूट प्रदान नहीं करता है।”
दरअसल, साल 1944 से सरकारी व सहायता प्राप्त संस्थानों द्वारा नन और पादरी को दिया जाने वाला वेतन टीडीएस यानी टैक्स कटौती के अन्तर्गत नहीं आता था। हालाँकि, इसे 2014 में संशोधित किया, जब आयकर अधिकारियों ने जिला कोषागार अधिकारियों (District Treasury Officers) को निर्देश दिया है कि सरकारी संस्थानों से वेतन प्राप्त करने वाले धार्मिक कर्मचारी भी टीडीएस के दायरे में आएँगे। इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने टीडीएस में छूट का दावा करने के लिए 1944 में और साथ ही 1977 में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes) द्वारा जारी परिपत्रों का हवाला दिया।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि नन और पादरी कोई आय या संपत्ति रखने का हकदार नहीं हैं। उनकी सभी संपत्तियाँ, वेतन और पेंशन धार्मिक मण्डली को दे दी जाती है। उन्होंने कैनन कानून का भी हवाला दिया। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कैनन कानून के अनुसार एक बार शपथ लेने के बाद नन या पादरी इसके तहत नागरिक नहीं माने जाते हैं। इस पर अदालत ने कहा कि कैनन कानून किसी भी परिस्थिति में आयकर अधिनियम पर हावी नहीं हो सकता है।