इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के एक गाँव की दो मस्जिदों पर अजान के लिए लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति की माँग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कोई भी धर्म पूजा या इबादत के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देता।
बता दें कि संबंधित क्षेत्र के एसडीएम ने दो समुदायों के बीच विवाद को रोकने के लिए किसी भी धार्मिक स्थल पर लाउडस्पीकर लगाने पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद याचिकाकर्ताओं ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रूख किया था मगर हाईकोर्ट ने भी एसडीएम की रोक को सही ठहराते हुए इस पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसा करने पर सामाजिक असंतुलन खड़ा हो सकता है।
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित ने अपने आदेश में कहा, “कोई भी धर्म यह आदेश या उपदेश नहीं देता है कि ध्वनि विस्तारक यंत्रों के जरिए प्रार्थना की जाए या प्रार्थना के लिए ड्रम बजाए जाएँ और यदि ऐसी कोई परंपरा है, तो उससे दूसरों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए, न किसी को परेशान किया जाना चाहिए।”
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि यह उनकी धार्मिक परंपरा का एक अनिवार्य हिस्सा है और बढ़ती आबादी के मद्देनजर एम्पलीफायरों और लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल कर लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाना आवश्यक हो गया है।
No Religion Prescribes Use Of Loudspeakers For Worshipping: Allahabad HC Declines Mosques’ Request To Install Loudspeaker For Azaan [Read.. https://t.co/IBqpUPwkVg
— Live Law (@LiveLawIndia) January 20, 2020
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस दलील को खारिज करते हुए कहा, “यह सच है कि जैसा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 (1)के तहत यह अधिकार देता है कि कोई भी व्यक्ति अपने धर्म का प्रचार-प्रसार कर सकता है, हालाँकि यह अधिकार निरपेक्ष अधिकार नहीं है। अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त अधिकार व्यापक स्तर पर अनुच्छेद 19 (1) (ए) के अधीन है और इस तरह दोनों को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए और सामंजस्यपूर्ण ढंग से लागू किया जाना चाहिए।”
मामले में आचार्य महाराजश्री नरंद्रप्रसादजी आनंदप्रसादजी महाराज बनाम गुजरात राज्य, 1975 (1) एससीसी 11 के फैसले का हवाला दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि मामले में शामिल मस्जिदें, जिस क्षेत्र में हैं, वो हिंदू और मुस्लिमों की मिश्रित आबादी का इलाका है और पूर्व में इस मसले पर हुए विवादों ने गंभीर रूप ले लिया है। इसलिए अगर किसी भी पक्ष को साउंड एम्पलीफायरों के उपयोग करने की अनुमति दी जाती है तो दो समूहों के बीच तनाव बढ़ने की आशंका होगी। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों ने लाउडस्पीकरों के उपयोग की अनुमति न देकर ठीक ही किया, विशेष रूप से उस इलाके में जहाँ दो धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी पैदा होने की संभावना थी, जिससे कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती थी।
कोर्ट ने कहा, “किसी भी क्षेत्र में कानून और व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने की जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों की होती है और वो अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए बाध्य होते हैं। उन्हें ये सुनिश्चित करना होता है कि क्षेत्र की शांति और व्यवस्था भंग न हो और अगर किसी घटना के संबंध में कोई तनाव या विवाद हो तो उस पर सुलह और समझौता किया जा सकता है। उन पर तनाव कम करने और यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होती है कि क्षेत्र में शांति बनी रहे।”
हाईकोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि उनका स्पष्ट मत है कि कोर्ट को अपने असाधारण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए इस मामले में किसी तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, ऐसा करने से सामाजिक असंतुलन पैदा हो सकता है।
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