ग्लोबल फ़ास्ट-फ़ूड चेन मैक्डॉनल्ड्स ने स्वीकार कर लिया है कि गैर-मुस्लिमों के साथ भेद- भाव करना उनके भारत में बिज़नेस मॉडल का हिस्सा है। हमने इस पर पहले ही रिपोर्ट किया था कि कैसे किसी जानवर को किसी गैर-मुस्लिम द्वारा मारा जाना हलाल हो ही नहीं सकता।
All our restaurants have HALAL certificates. You can ask the respective restaurant Managers to show you the certificate for your satisfaction and confirmation. (2/2)
— McDonald’s India (@mcdonaldsindia) August 22, 2019
हलाल केवल एक मुस्लिम व्यक्ति ही कर सकता है। इसका मतलब साफ़ है कि हलाल फर्म में गैर-मुस्लिमों को रोज़गार से वंचित रखा जाता है। इसके अलावा कुछ और भी शर्तें हैं, जिन्हें अवश्य पूरा किया जाना चाहिए। यह स्पष्ट है कि हलाल पूरी तरह से एक इस्लामी प्रथा है। भारत में हलाल के एक प्रमाणीकरण और प्राधिकरण की आधिकारिक वेबसाइट पर दिशानिर्देश उपलब्ध हैं जिनमें यह स्पष्ट है कि पशु वध प्रक्रिया (हलाल) के किसी भी हिस्से में गैर-मुस्लिम कर्मचारियों को रोज़गार नहीं दिया जा सकता है।
पूरे दस्तावेज़ में इस्लामी पशु वध के दिशानिर्देशों को सूचीबद्ध किया गया है, इसमें शामिल कर्मचारियों के मज़हब/आस्था का उल्लेख करने के लिए ध्यान रखा गया है। यह स्पष्ट करता है कि केवल मुस्लिम कर्मचारियों को ही हलाल के हर चरण में भाग लेने की अनुमति है। यहाँ तक कि मांस का लेबल लगाने का काम भी मुस्लिम ही कर सकते हैं।
इस मामले की हमारी विस्तृत रिपोर्ट आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
हलाल-झटका का विवाद ज़ोमैटो विवाद के दौरान खुल कर सामने आया था। इसमें रेस्त्रां से घर पर खाने की डिलीवरी सर्विस देने वाली, ऍप-आधारित कंपनी पर आरोप लगा था कि एक तरफ वह ‘खाने का कोई मज़हब नहीं होता’ जैसी नैतिकता का ज्ञान बाँचती है, दूसरी ओर मुस्लिमों का तुष्टिकरण करने के लिए, उनकी ‘हलाल माँस ही चाहिए’ की माँग पूरा करने के लिए वह हर तरीके से तैयार रहता है।
हलाल, जैसा कि ऊपर गिनाए गए बिंदुओं से साबित हो जाता है, अपनी मूल प्रकृति से ही भेदभाव वाली प्रथा है, जो गैर-मुस्लिमों को रोजगार के अवसर से वंचित करती है। यानि हलाल माँस को वरीयता देने वाले ज़ोमैटो, मैक्डॉनल्ड्स आदि कॉर्पोरेट खुल कर कार्यस्थल पर भेदभाव (वर्कप्लेस डिस्क्रिमिनेशन) को बढ़ावा देते हैं, और बराबर के अवसरों (ईक्वल ऑपर्च्युनिटी) के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं। ऐसे में उनकी सामाजिक न्याय और एक्टिविज़्म आदि की बातों को इसी प्रकार के सबूतों के अलोक में रखकर देखे जाने की ज़रूरत है।