मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ ने सोमवार (22 मई, 2023) को प्रदेश में बागेश्वर धाम के धार्मिक आयोजन को रोकने के लिए दायर हुई दूसरी जनहित याचिका को भी खारिज कर दिया। यह आयोजन इसी माह 23 मई और 24 मई को जिला बालाघाट के गाँव लिंगा स्थित रानी दुर्गावती महाविद्यालय मैदान में होना प्रस्तावित है। यह याचिका एक वकील द्वारा कथित आदिवासी संगठन की तरफ से लगाई थी, जिसमें आयोजन से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचने का आरोप था।
याचिकाकर्ता ने सुनवाई के दौरान गलत ढंग से बहस की जिस पर कोर्ट ने उसे चेतावनी भी दी।
हमारे सरकार कहते है प्रभु श्री राम जी वन गए तो बन गए…उसी वन के हृदय बनवासी भाई-बहनो के निमित पूज्य सरकार दो दिवसीय श्रीराम कथा सुनाने बालाघाट पहुँच रहे है….23-24 मई पूज्य सरकार के मुख़ारविन्द से राम के वन की संपूर्ण गाथा सुनिए सिर्फ़ बागेश्वर धाम सरकार के यूट्यूब/फ़ेसबुक पर…. pic.twitter.com/EfpfS2QCSA
— Bageshwar Dham Sarkar (Official) (@bageshwardham) May 22, 2023
इस याचिका पर हुई बहस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में याचिकाकर्ता के वकील ने धीरेन्द्र शास्त्री की कथा आदिवासियों के धर्मस्थल बड़ा देव भगवान के बजाय कहीं और करवाने की माँग की। इस माँग पर जस्टिस विवेक अग्रवाल ने सवाल किया कि जहाँ अभी कथा होनी है वहाँ किस बात से आदिवासी लोगों की भावनाएँ आहत होंगी और वहाँ की मान्यताएँ क्या हैं? कोर्ट के इस सवाल पर याचिकाकर्ता के वकील कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए।
इस दौरान उन्होंने संविधान का हवाला दिया और जज पर अपनी बात न सुनने का आरोप लगा दिया। वकील ने कहा, “ये संविधान में प्रावधान हैं। वही तो बता रहा हूँ। आप समझने को तैयार नहीं हैं। “
वकील के जवाब पर जस्टिस विवेक ने उन्हें ठीक से बात करने के लिए कहा। हालाँकि, इसके बाद भी वकील ने कोर्ट में जज से कहा, “आप सुनने को तैयार नहीं हैं। कुछ भी बोले जा रहे हैं।” वकील के इन शब्दों पर जज ने उन्हें अवमानना का नोटिस जारी करने के आदेश दिए। जस्टिस विवेक ने कहा, “आपको हाईकोर्ट में बहस करने का तरीका नहीं मालूम है। अपना जवाब आप नोटिस में दीजिएगा।” जज ने आगे से गलत बहस करने पर वकील को जेल भेजने की भी चेतावनी दी।
इस वीडियो में आगे जस्टिस विवेक ने वकील से ‘सर्व आदिवासी समाज’ के बारे में पूछते हुए सवाल किया कि उन्हें बहस के लिए किसने अधिकृत किया। साथ ही कहा, “ध्यान रहे। जरा सी भी उल्टी-सीधी बहस की तो यहीं से जेल भेजूँगा। वकालत ख़त्म हो जाएगी। तहजीब से बात करना सीखो। बदतमीजी करना भूल जाओगे सारी। तुम लोगों ने ये सोच लिया है कि बदतमीजी करके अपने आप के लिए बहुत बड़ी TRP जमा कर लोगे? ये भूल जाते हो कि जिस दिन हमने जेल भेज दिया उस दिन सारी वकालत बंद हो जाएगी। तुम लोगों को सिखा कर भेजा जाता है कि बदतमीजी करो।”
जज ने वकील से माफ़ी माँगने के लिए भी कहा। एक सवाल के सवाब में वकील ने खुद के हाईकोर्ट में साल 2007 से प्रैक्टिस किए जाने की बात कही। याचिकाकर्ता के नाम के तौर पर हेमलता दुर्वे और कर्नल हरनाम का नाम था। याचिकाकर्ता समूह सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष का नाम के तौर पर सादे कागज में मंशाराम मरावी दर्ज था। जस्टिस विवेक ने इस संगठन के रजिस्ट्रेशन और लेटर हेड आदि के बारे में पूछा तो वकील ने रजिस्ट्रेशन होने पर कोर्ट में न लगाने की जानकारी दी। इस जवाब पर जस्टिस विवेक ने टिप्पणी करते हुए ऐसी याचिका को ‘स्पॉन्सर पेटिशन’ कहा।
आखिरकार हाईकोर्ट ने यह याचिका ख़ारिज कर दी। जस्टिस विवेक ने वकील से रजिस्ट्रेशन लगा कर केस फिर से फाइल करने की सलाह दी। साथ ही अंत में कहा, “पक्षकार को बताइएगा कि हमारी गर्मी दिखाने की वजह से कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया।” अपने आदेश में जस्टिस विवेक अग्रवाल ने इस बात का भी जिक्र किया कि तथाकथित ‘सर्व आदिवासी समाज’ के वकील ने सवालों के जवाब देने के बजाय बेवजह की बहस की। आदेश के मुताबिक, अधूरे कागजातों के साथ पेश हुआ याचिकाकर्ता ये साबित नहीं कर पाया कि प्रस्तावित कथा से आदिवासी समाज की भावनाएँ कैसे आहत होंगी।
खास बात ये रही कि यह याचिका दायर करने वाले वकील को इसी मामले में जस्टिस विवेक अग्रवाल द्वारा 18 मई को दिए गए आदेश की जानकारी नहीं थी। तब जस्टिस विवेक ने धीरेन्द्र शास्त्री के कार्यक्रम को रोकने की याचिका ख़ारिज कर दी थी।
18 मई को ख़ारिज हुई थी पहली याचिका
गौरतलब है कि धीरेन्द्र शास्त्री के 23-24 मई वाले इसी कार्यक्रम को रद्द करवाने संबंधी एक याचिका 18 मई को जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने ख़ारिज कर दी थी। तब दिवासी विकास परिषद के दिनेश कुमार ध्रुव की ओर से पेश हुए वकील प्रह्लाद चौधरी ने कथा से आदिवासी क्षेत्रों के प्रभावित होने, आदिवासियों की मर्जी के विरुद्ध आयोजन होने, ग्रामसभा की अनुमति न होने और साल 2023 विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने जैसी दलीलें दी थीं। एडवोकेट चौधरी ने धीरेन्द्र शास्त्री पर धार्मिक वैमनस्यता फैलाने का भी आरोप लगाया था।
इन दलीलों के जवाब में जस्टिस विवेक अग्रवाल ने आपत्ति होने पर किसी संगठन की बजाय सीधे ग्रामसभा को कोर्ट आने की बात कही थी। आयोजन के लिए ग्रामसभा की अनुमति की जरूरत न होने की जानकारी देते हुए उन्होंने याचिका को प्रायोजित बताया था। साथ ही जस्टिस विवेक ने बताया था कि इस बात के भी सबूत नहीं हैं कि कथा से आदिवासियों पर असर पड़ेगा। कानून-व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी उन्होंने राज्य सरकार की बताई थी।
गौरतलब है कि हिन्दू धर्म को बढ़ावा देने वाले वीडियो के वायरल होने के बाद से बागेश्वर धाम के महंत पंडित धीरेंद्र शास्त्री को फायरब्रांड कथावाचक कहा जाने लगा है। अभी कुछ समय पहले ही बिहार सरकार द्वारा उनके एक कार्यक्रम को रोकने का प्रयास किया गया था। खुद पर हो रहे इन हमलों पर टिप्पणी करते हुए धीरेंद्र शास्त्री ने उस हाथी का उदाहरण दिया जिसके गाँव में जाने पर कई लोग उसे केले, पूड़ी और तरह-तरह के पकवान खिलाते कर गणेश मानकर उसकी पूजा करते हैं तो दूसरी तरफ आवारा कुत्ते भौंकने लगते हैं।
बकौल धीरेन्द्र शास्त्री, अगर हाथी कुत्तों को जवाब देने लगे तो लोग हाथी को पागल ही कहेंगे, इसलिए हाथी उन कुत्तों को अनदेखा करते हुए अपने रास्ते पर आगे बढ़ता रहता है।