मद्रास उच्च न्यायालय ने एक आदेश में कहा कि धर्मांतरण करने से व्यक्ति की जाति नहीं बदलती। इसके आधार पर अंतर जातीय प्रमाण-पत्र (inter-caste certificate) जारी नहीं किया जा सकता। जस्टिस एसएम सुब्रह्मण्यम ने अनुसूचित जाति (SC) वर्ग के एक व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया।
तमिलनाडु के सलेम जिले के निवासी ए पॉल राज जन्म से आदि द्रविड़ समुदाय (अनुसूचित जाति) से आते हैं। बाद में धर्म परिवर्तन कर वे ईसाई बन गए। इसके बाद राज्य समाज कल्याण विभाग के एक पुराने आदेश के तहत पिछड़ा वर्ग का सर्टिफिकेट हासिल कर लिया। बाद में अरुन्थातियार समुदाय की एक महिला से शादी की। यह भी अनुसूचित जाति वर्ग में आती है।
इसके आधार पर ए पॉल राज ने सलेम जिला प्रशासन में अंतरजातीय विवाह प्रमाण-पत्र बनवाने का आवेदन दिया, जिसे खारिज कर दिया गया। इस फैसले को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने पाया कि जन्म से दोनों पति-पत्नी अनुसूचित जाति के हैं। कोर्ट ने कहा कि धर्म परिवर्तन करने से जाति नहीं बदलती, इसलिए राज को भले ही पिछड़ा वर्ग का प्रमाण-पत्र जारी कर दिया गया हो, लेकिन उनकी जाति नहीं बदली है। ऐसे में उन्हें अंतरजातीय विवाह का प्रमाण-पत्र नहीं दिया जा सकता।
गौरतलब है कि अंतरजातीय विवाह प्रमाण-पत्र होने पर सरकारी नौकरी में प्राथमिकता मिलती है। सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलता है। लेकिन न्यायाधीश ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि पति और पत्नी दोनों ही एक समुदाय से हैं, इस कारण से वे अंतरजातीय विवाह प्रमाण-पत्र के हकदार नहीं हैं।
मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जाति जन्म से निर्धारित होती है। धर्म परिवर्तन से यह नहीं बदलती। इस मामले में पति और पत्नी दोनों एससी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। केवल इस आधार पर अंतर जातीय विवाह प्रमाण-पत्र नहीं किया जा सकता कि किसी दलित ने धर्म परिवर्तन करने के बाद एससी वर्ग से आने वाले के साथ शादी की है।