देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। महाराष्ट्र इस वायरस से सबसे अधिक संक्रमित राज्य है। यहाँ के पुलिसकर्मियों के बीच भी कोरोना का व्यापक प्रसार देखने को मिला। अब तक एक हजार से अधिक पुलिसकर्मी इसकी चपेट में आ चुके हैं।
अब ‘महाराष्ट्र टाइम्स’ में काम करने वाले पत्रकार ने प्रशासन द्वारा कोरोना वायरस के फ्रंटवर्करों के प्रति महाराष्ट्र की उद्धव सरकार की उदासीनता को लेकर चौंकाने वाला खुलासा किया है।
महाराष्ट्र टाइम्स के जर्नलिस्ट विजय चोरमारे ने मुंबई पुलिस अधिकारी अमोल कुलकर्णी के साथ हुए गलत व्यवहार को उजागर करने के लिए फेसबुक का सहारा लिया। उन्होंने बताया कि अमोल कुलकर्णी धारावी के शाहूनगर में तैनात थे, जहाँ कोरोना के मामले धड़ल्ले से बढ़ रहे हैं।
वो यहाँ पर कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए तैनात थे, मगर दुर्भाग्यवश कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए वो भी इसकी चपेट में आ गए, जिसके बाद उन्हें होम क्वारंटाइन की सलाह दी गई। चोरमारे ने आरोप लगाया कि जब कुलकर्णी की हालत बिगड़ गई, तो उन्होंने हेल्पलाइन नंबर 108 पर कॉल किया, लेकिन कोई सरकारी एम्बुलेंस उन्हें लेने के लिए नहीं आई।
इसके अलावा कुलकर्णी के सहयोगी, स्वयं पुलिस अधिकारी भी अपने दोस्त को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस का इंतजाम नहीं कर पाए। लगभग आधे घंटे तक इंतजार करने के बाद एक निजी एंबुलेंस उन्हें अस्पताल ले गई।
हालाँकि, यह आधे घंटे की देरी भी पुलिस अधिकारी के लिए काफी घातक साबित हुई, क्योंकि उनकी हालात लगातार बिगड़ती जा रही थी। और फिर बाद में वही हुआ, जिसका अंदेशा था। हॉस्पिटल ने उन्हें सुबह में मृत घोषित कर दिया।
चोरमारे आगे पोस्ट में बताते हैं कि चूँकि कुलकर्णी कोरोना वायरस से संक्रमित थे, इसलिए उनके मृत घोषित करने के साथ ही तुरंत उनके शव को धोकर एक बैग में पैक कर दिया गया। हालाँकि उनके डेथ सर्टिफिकेट में मौत की वजह कोरोना वायरस बताने की जगह हाई ब्लड प्रेशर और डाइबिटीज बताया गया।
जब कुलकर्णी के दोस्तों को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने अस्पताल के अधिकारियों से मौत का कारण कोरोना वायरस लिखने के लिए कहा, मगर अस्पताल प्रशासन ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। इसके बाद पुलिस अधिकारी कुलकर्णी के दोस्तों ने शिरला के विधायक मानसिंह फतसिंह राव नाइक से मदद मांँगी। मानसिंह फतसिंह ने महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कहा। तब जाकर कुलकर्णी के डेथ सर्टिफिकेट में मौत की वजह COVID-19 अपडेट किया गया।
कुलकर्णी की एक बेटी और पत्नी है। उनका भी कोरोना वायरस टेस्ट करवाया गया है। रिजल्ट आना अभी बाकी है। फिलहाल दोनों होम क्वारंटाइन में हैं।
कुलकर्णी का अंतिम संस्कार नगर निगम द्वारा किया गया था। कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से कुलकर्णी का कोई भी रिश्तेदार उनके गाँव से उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सका। अमोल के बेस्ट फ्रेंड ने उन्हें अंतिम सलामी दी।
यहाँ तक कि जिन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के अंतर्गत कुलकर्णी काम कर रहे थे, वो लोग भी उनसे मिलने अस्पताल नहीं गए। वो गृह मंत्री अनिल देशमुख के साथ पुलिस स्टेशन गए, जहाँ उन्होंने सहायक पुलिस निरीक्षक को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
हालाँकि, इस पूरे प्रकरण ने राज्य में प्रशासन की विफलता और राज्य में कोरोना वायरस संकट से निपटने में अक्षमता की पोल खोल कर रख दी है। जब राज्य का प्रशासन कोरोना वायरस से संक्रमित फ्रंटलाइन वर्करों को उचित सुविधा नहीं दे सकती है, तो फिर इस बीमारी से संक्रमित हजारों नागरिकों को किस तरह की सुविधा मिलती होगी, ये तो कल्पना से परे है।
चोरमारे कहते हैं, “दोस्तों, यह एक बड़े से गाड़ी की एक छोटे से हिस्से की कहानी है। अमोल एक बड़ी सिस्टम का एक हिस्सा था जिसका उद्देश्य नागरिकों को सुरक्षित रखना और उन्हें सहायता प्रदान करना था। “Covid Warriors” के रूप में फ्रंट-लाइन योद्धाओं को महिमामंडित करने का कोई मतलब नहीं है, जब उन्हें आवश्यक सहायता और समर्थन नहीं दिया जाता है, जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है। यह घिसी-पिटी कहानी एक प्रतिनिधि तस्वीर है कि राज्य प्रशासन अपने Covid Warriors के साथ कैसा व्यवहार करता है।”
उन्होंने आगे कहा, “इस प्रकार प्रशासन द्वारा COVID-19 से पीड़ित एक पुलिस अधिकारी का इलाज किया गया। जब राज्य प्रशासन के किसी कर्मचारी के साथ ऐसी उदासीनता बरती जाती है, तो ऐसे प्रशासन द्वारा आम आदमी के साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा? इसलिए यह असामान्य नहीं है कि लोग चिलचिलाती धूप में अपनी पीठ पर बैग रखकर अपने मूल स्थानों की ओर भाग रहे हैं। अब आप तय कीजिए कि आप अपने प्रियजनों को मुंबई में रहने और अपने भाग्य का इंतजार करने के लिए कहेंगे या उन्हें अपने गाँव लौटने के लिए कहेंगे?”