समाजवादी पार्टी के नेता और अखिलेश यादव के करीबी स्वामी प्रसाद मौर्य ने बुधवार (10 जनवरी 2024) को एक विवादित बयान दिया। इस बयान में उन्होंने सन 1990 में कारसेवा करने गए रामभक्तों को उपद्रवी बताया है और मुलायम सिंह यादव के आदेश के गोली चलाने को सही ठहराया। इस बयान का पूरे देश के अलावा समाजवादी पार्टी में भी विरोध हो रहा है।
ऑपइंडिया की टीम ने अयोध्या के स्थानीय निवासियों के साथ बलिदानी व जीवित कारसेवकों के परिजनों से मिलकर सन 1990 में हुए उस सामूहिक नरसंहार की जानकारी जुटाई। इस दौरान हमें नरसंहार में मुन्नन खाँ नाम के नेता के शामिल होने की जानकारी मिली। इस दौरान उन कारसेवकों की भी हत्या किए जाने की जानकारी मिली जो कि विवादित ढाँचे से काफी दूर थे।
सांसद मुन्नन खाँ को किसने दिया था नरसंहार का अधिकार ?
सन 1990 में अयोध्या में तैनात रहे एक पुलिस अधिकारी ने ऑपइंडिया से बात की। अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर उस पूर्व पुलिस अधिकारी ने बताया कि साल 1990 में उन्हें जानकारी मिली थी कि बलरामपुर जिले का सांसद मुन्नन खाँ अपने साथियों के साथ कारसेवकों पर हमला करने वालों में शामिल था। मुन्नन खाँ का पूरा नाम ‘फसी उर रहमान’ था।
इस पूर्व अधिकारी ने हमें बताया कि कारसेवकों पर मुन्नन खाँ द्वारा किए गए हमले की जानकारी स्थानीय प्रशासन से लेकर शासन तक थी। हालाँकि, तब की राजनीति में उसका कद इतना बड़ा था कि उस पर कार्रवाई होना तो दूर की बात थी, उसका नाम भी सामने नहीं आया। घटना के चश्मदीद रुदौली के कुछ जीवित बचे कारसेवकों ने भी ऑपइंडिया से बातचीत में मुन्नन खाँ का नाम लिया।
इन कारसेवकों ने बताया कि मुन्नन खाँ अपने साथियों के साथ एक बस में पुलिस की वर्दी पहनकर घूम रहा था। वह सड़क से पैदल जा रहे कारसेवकों से कहता था, “आओ बस में बैठ जाओ। चलो तुम्हें अयोध्या का प्रसाद दिला दें।” जहाँ कारसेवकों को पैदल चलने पर भी पकड़ लिया जा रहा था, वहाँ मुन्नन खाँ को नकली पुलिस बन बस लेकर घूमने की छूट कैसे मिली, ये किसी भी कारसेवक को नहीं पता।
बलिदानी कारसेवक राम अचल गुप्ता के बेटे संजय और राम बहादुर वर्मा के पुत्र काली सहाय ने भी कारसेवकों के नरसंहार में सांसद मुन्नन खांँ को सीधे तौर पर शामिल बताया। कुछ स्थानीय निवासियों का कहना है कि मुन्नन खाँ ने अपने साथियों सहित कारसेवकों पर न सिर्फ बमबारी की थी, बल्कि पुलिस बनकर कई रामभक्तों को बस में बैठाकर कहाँ ले गया ये आज तक किसी को पता नहीं है।
मुन्नन खाँ साल 1985 से 1989 तक गोंडा जिले के अंतर्गत आने वाले कटरा विधानसभा क्षेत्र से विधायक था। इसके बाद वह साल 1989 से साल 1991 तक बलरामपुर जिले से सांसद रहा। मुन्नन खाँ को कॉन्ग्रेस और समाजवादी पार्टी के बड़े नेताओं का करीबी माना जाता था। गोंडा जिले के एक चौराहे का नाम भी मुन्नन खाँ के नाम पर रखा गया है। साल 2009 में मुन्नन खाँ की मौत हो गई।
स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से आहत बलिदानी कारसेवकों के परिजन यह जानना चाहते हैं कि मुन्नन खाँ द्वारा कारसेवकों की हत्या समाजवादी पार्टी के समर्थकों द्वारा किस रूप में कानून सम्मत है? मुन्नन खाँ के काले कारनामों और आपराधिक इतिहास के साथ उसके बेहद शातिर दिमाग के बारे में हम जल्द ही अपनी दूसरी रिपोर्ट में बताएँगे।
जो ढाँचे से काफी दूर थे, उनकी भी हत्या
गोंडा जिले के निवासी शिवदयाल मिश्रा नाम के एक कारसेवक ने ऑपइंडिया से बात की। सन 1990 की कारसेवा में उनके पैर में 2 गोली लगी थी। उन्होंने हमें बताया कि जिस जगह उन्हें गोली मारी गई थी, वह गोंडा जिले की सीमा थी। यह जगह ढाँचे से काफी दूर है। उन्होंने उस दौरान पुलिस की गोलीबारी से डरकर अस्थाई कैम्पों में सरकारी आदेश पर जो डॉक्टर बैठे थे, वे भी कैम्प छोड़ कर भाग गए थे।
बलिदानी कारसेवक महावीर प्रसाद अग्रवाल के बेटे अभिषेक ने पहले अपने पिता की हत्या और बाद में उस पर आए मुलायम सिंह यादव के बयान से खुद को बेहद आहत बताया। अभिषेक का कहना है कि 2 नवंबर 1990 को उनके पिता को गोली कारसेवकपुरम के पास मारी गई थी, जो कि विवादित ढाँचे से काफी दूर है।
वहीं बलिदानी रमेश पांडेय के बेटे सुरेश ने ऑपइंडिया को बताया कि उनके पिता को गोली शहीद गली के पास मारी गई थी। शहीद गली वो जगह है, जहाँ कई रामभक्तों का नरसंहार हुआ था। यह जगह भी विवादित ढाँचे से काफी दूर है और बीच में हनुमानगढ़ी पड़ता है।
बलिदानी राम अचल गुप्ता के बेटे संजय ने ऑपइंडिया को बताया कि 2 नवंबर 1990 को उनके पिता को विवादित ढाँचे से काफी दूर अयोध्या कोतवाली के आगे गोली मारी गई थी। उनके भाई रामतेज उस समय कारसेवा में मौजूद थे। वो सन 1990 में हुए नरसंहार के चश्मदीद जीवित गवाह हैं। रामतेज ने बताया कि गोलीबारी के दौरान सभी कारसेवक एक जगह बैठकर भगवान राम का भजन गा रहे थे।
निहत्थे कारसेवकों पर हेलीकॉप्टर से भी चली थीं गोलियाँ
ऑपइंडिया को अयोध्या के स्थानीय बुजुर्गों ने भी बताया कि सन 1990 में कारसेवक निहत्थे ही आए थे। अयोध्या जिले में रुदौली क्षेत्र के कारसेवक रघुवर सिंह का दावा है कि 2 नवंबर 1990 को तो उन सभी को जन्मभूमि का दर्शन करवाने के लिए जमा किया गया था और फिर गोलियाँ बरसा दी गई थीं। 30 अक्टूबर 1990 को एक हेलीकॉप्टर विवादित ढाँचे के 10 किलोमीटर की परिधि में घूम रहा था।
ऑपइंडिया से बात करते हुए बलिदानी कारसेवक वासुदेव गुप्ता की बेटी सीमा गुप्ता ने कहा कि उनके पिता और अन्य रामभक्तों को मारने का इशारा हेलीकॉप्टर से किया गया था। तब आसमान में उड़ता एक हेलीकॉप्टर हरे रंग की बत्ती जलाकर पूरे अयोध्या में घूम रहा था। जिस जगह पर हेलीकॉप्टर नीचे की तरफ उड़ान भरता और उसकी बत्ती लाल हो जाती, वहीं पुलिस गोलियाँ चलानी शुरू कर देती। 30
एक अन्य बलिदानी राम सेवक वर्मा के बेटे काली सहाय ने हमें बताया कि हेलीकॉप्टर की लाल बत्ती का संकेत मिलते ही ना सिर्फ जवान गोलियाँ चला रहे थे, बल्कि हेलीकॉप्टर से भी कुछ हथियारबंद लोग गोलियाँ चला रहे थे। बकौल काली सहाय वर्मा, उनके पिता के शरीर में तिरछे एंगल से छर्रे घुसे थे। काली सहाय को आशंका है कि उनके पिता को ये गोलियाँ हेलीकॉप्टर से मारी गई थीं।
गोलियाँ बरसाने वाली टीम के लीडर मोहम्मद उस्मान और जेएस भुल्लर
अयोध्या में रहने वाले तमाम बुजुर्गों और बलिदानी कारसेवकों को आज भी मोहम्मद उस्मान और सरदार जेएस भुल्लर के नाम याद हैं। ये दोनों अधिकारी पैरामिलिट्री के थे। जेएस भुल्लर अपनी टीम सहित अयोध्या के महाराजा इंटर कॉलेज में कैम्प करता था। सन 1990 में दिखाई गई क्रूरता के चलते स्थानीय निवासियों को महाराजा इंटर कॉलेज की वो जगह भी याद है, जहाँ भुल्लर नहाया करता था।
एक स्थानीय निवासी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर भुल्लर से जुड़ी एक घटना बताई। उस व्यक्ति ने कहा, “30 अक्टूबर 1990 में लखनऊ से गोली चलाने का आदेश लेकर हेलीकॉप्टर आया। तब अयोध्या में तैनात UP पुलिस के जवानों के हाथ काँपने लगे। पुलिस के जवान कारसेवकों पर गोली नहीं चलाना चाहते थे। वो हवा में गोलियाँ चला रहे थे।”
उस व्यक्ति ने आगे बताया कि हवा में गोली चलाते देखकर जेएस भुल्लर पुलिस के इन जवानों के पास आया और डाँटने लगा। जेएस भुल्लर ने सामने से गुजर रहे एक रामभक्त के सिर को निशाना बनाकर गोली मारी। गोली लगते ही रामभक्त गिर गया और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। तब भुल्लर ने हँसते हुए कहा कि ‘ऐसे चलाई जाती है गोली’।
वहीं, गोलियाँ बरसा रही दूसरी टीम को मोहम्मद उस्मान लीड कर रहा था। उस्मान CRPF में डिप्टी कमांडेंट रैंक पर तैनात बताया जाता है। शहीद गली और दिगंबर अखाड़े के पास हुए कारसेवकों के सामूहिक नरसंहार के दौरान उस्मान और उसकी टीम की ही मौजूदगी बताई जाती है। इस दौरान इन सभी ने रामभक्तों के पैरों के बजाय सीधे सिर और सीने में गोलियाँ मारी थीं।
अयोध्या के बुजुर्ग तिब्बती पुलिस का नाम बहुत लेते हैं। असल में वो तिब्बती पुलिस ITBP की बटालियन बताई जा रही है। इसे तब अयोध्या में तैनात किया गया था। ऑपइंडिया से बात करने वाले सन 1990 में अयोध्या में तैनात पुलिस अधिकारी ने भी बताया कि UP पुलिस ने कारसेवकों पर गोलियाँ नहीं चलाई थीं।
इस पूर्व अधिकारी ने कहा कि गोलियाँ चलाने के लिए बाहर से फ़ोर्स बुलाई गई थी। अयोध्या नरसंहार के बाद स्थानीय जिलों में एक कविता भी चर्चित हुई थी। इस कविता के बोल थे, “काँप धरती उठी आसमाँ रो पड़ा, जब अयोध्या में गोली चलाई गई।” इसी कविता में आगे पढ़ा जाता था, “जब UP की सेना ने इनकार की तो तिब्बत से सेना बुलाई गई।”