मेघालय के पूर्वी जयंतिया पर्वतीय ज़िले की एक कोयला खदान में 13 दिसंबर 2018 को 15 मज़दूर लितेन नदी का पानी भर जाने की वजह से वहीं फँस गए थे। इस घटना के बाद से ही एनडीआरएफ, भारतीय नौसेना और वायुसेना के जवान बचाव कार्य में जुटे हुए हैं।
इस घटना के 34 दिन बीतने के बाद बचाव एवं राहत कार्यों में जुटे बलों को 200 फीट की गहराई में एक मज़दूर का शव बरामद हुआ है। इससे मज़दूरों को जीवित निकालने की उम्मीद में चलाए जा रहे बचाव अभियान को झटका लगा है। इस शव के मिलने के बाद खदान में फँसे बाकी मज़दूरों के जीवित होने में भी संदेह की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
Meghalaya: Operation continues to rescue the miners who have been trapped in a mine at Ksan near Lyteiñ River in East Jaintia Hills, one body has been recovered. The miners are trapped since 13th December. #meghalayaminers pic.twitter.com/trqWsHmzwc
— ANI (@ANI) January 17, 2019
इस पूरे बचाव अभियान में भारतीय वायु सेना, भारतीय नौसेना के गोताख़ोर और एनडीआरएफ (नैशनल डि़जास्टर रिस्पांस फोर्स) की टीम कार्य पर जुटी हुई है। इस पूरे अभियान में ओडिशा फायर सेफ्टी टीम के साथ पंप और ज़रूरत की वस्तुओं का इंतज़ाम कराने वाली एक निजी कंपनी किर्लोस्कर की टीम भी मौके पर काम कर रही है।
गत सप्ताह इस मामले पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय सरकार से कहा कि अवैध कोयला खदान में फँसे हुए मज़दूरों को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास बिलकुल भी संतोषजनक नहीं हैं। आपको बता दें कि जिस खदान में ये मज़दूर काम कर रहे थे वो रैट होल माइनिंग की प्रक्रिया से अवैध रूप से खनन की जाने वाली खदान थी जिस पर मेघालय में प्रतिबंध लगा हुआ है।
मेघालय की जयंतिया पहाड़ियों में बहुत सी कोयला खदानों में गैरकानूनी रूप से खनन हो रहा है। पहाड़ी इलाके पर होने की वजह से यहाँ तक मशीनों को ले जाने से बचा जाता है और मज़दूरो की मदद से कोयला निकाला जाता है। इस प्रक्रिया को रैट होल माइनिंग का नाम दिया जाता है क्योंकि जिस तरह चूहे ज़मीन में गड्ढा करते हैं उसी तरह इन खदानों में काम करने के लिए मज़दूर लेट कर घुसते हैं। ऐसे कार्यों के लिए बच्चों को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है जिसकी वजह से कई NGO ऐसे कार्य करवाने वालों के ऊपर बाल मज़दूरी का भी आरोप लगा चुके हैं।