हरियाणा के मेवात में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार सिर्फ़ वहाँ की बहुसंख्यक आबादी का नहीं है बल्कि प्रशासन भी उन्हें उनका हक देने में और उनके साथ सौतेला व्यवहार कर उन्हें पीछे ढकेले जा रहा है। ऐसे ही एक ताजा मामला एक विज्ञापन से उजागर हुआ है। ये विज्ञापन D.ed यानी ‘डिप्लोपा इन एजुकेशन’ कोर्स में एडमिशन हेतु मेवात विकास अभिकरण द्वारा मुख्य कार्यकारी अधिकारी की ओर से निकाला गया है।
यह विज्ञापन विवादस्पद इस कारण है कि इसमें 50 सीटों के लिए आवेदन माँगे गए हैं। इनमें 25, यानी कुल सीटों का 50% प्रतिशत मेव मुस्लिम महिलाओं/लड़कियों के लिए आरक्षित है। बाकी बची 25 सीटों को लेकर निर्देश दिए गए हैं कि उन पर आरक्षण हिदायतानुसार होगा और अभ्यर्थी का चयन का आधार मेरिट होगा।
क्या यह विज्ञापन असंवैधानिक, अनैतिक और हिंदू विरोधी नहीं- VHP
इस विज्ञापन को विश्व हिन्दू परिषद (VHP) के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है। उन्होंने इस विज्ञापन पर अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए कहा, “मेवात में D.Ed प्रवेश में 50% सीटें ‘मुस्लिम अल्पसंख्यक’ के लिए आरक्षित? माननीय मनोहर लाल खट्ट जी, हद हो गई! बहुसंख्यक भी अल्पसंख्यक होते हैं? हिन्दू उत्पीड़कों को धर्माधारित आरक्षण और वह भी भाजपा के शासन काल में।”
वह नूँह के डिप्टी कमीशनर से पूछते हैं, “मेवात विकास प्राधिकरण क्या मुस्लिम विकास प्राधिकरण है @Districtnuh जी। सिर्फ और सिर्फ मुस्लिमों का विकास? क्या यह विज्ञापन असंवैधानिक, अनैतिक और हिंदूद्रोही नहीं लगता आपको? जिले में पहले से ही पीड़ित हिंदू समाज पर क्या यह एक सरकारी हमला नहीं?”
मेवात विकास प्राधिकरण क्या मुस्लिम विकास प्राधिकरण है @Districtnuh जी। सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों का विकास? क्या यह विज्ञापन असंवैधानिक, अनैतिक और हिंदूद्रोही नहीं लगता आपको? जिले में पहले से ही पीड़ित हिंदू समाज पर क्या यह एक सरकारी हमला नहीं? https://t.co/KLriVMs8Ci
— विनोद बंसल (@vinod_bansal) November 12, 2020
ऑपइंडिया के संज्ञान में जब यह मामला आया तो हमने इसकी प्रमाणिकता की पुष्टि करने हेतु मुख्य कार्यकारी अधिकारी के कार्यालय में संपर्क किया। अधिकारी मीटिंग में व्यस्त थे। लेकिन हमारी बात उस शख्स से हुई जिन्हें विज्ञापन की जानकारी थी।
उन्होंने सीटों के इस तरह के बँटवारे पर ऑपइंडिया को बताया कि ऐसा वर्ष 2005 से चला आ रहा है। अन्य जिलों की तुलना में पिछड़ा होने के कारण मेवात में इस नियम को लाया गया था और इसे मुख्यधारा में लाने के लिए ‘मेवात विकास अभिकरण’ (एमडीए) को भी अस्तित्व में लाया गया था।
इसके बाद उन्होंने बताया कि अभी उन्हें 250 लड़कियों के लिए D.ED में 5 बैच की मंजूरी मिली थी। पिछले तीन बैच वह तीन साल में चला चुके हैं। अब एक इस वर्ष होगा और फिर एक अगले साल। पाँच बैच पूरे होने के बाद इसे बंद किया जाएगा।
ऑपइंडिया ने जब कर्मचारी से यह जानना चाहा कि यदि 2005 से ये हो रहा है तो सिर्फ़ 5 बैच ही कैसे पूरे हुए? इस पर उन्होंने बताया कि उन्हें बीच-बीच में परमिशन मिलती है। पिछली बार 5 बैच की मिली थी। कभी-कभी सिर्फ 2 बैच या 3 बैच की मंजूरी मिलती है।
उन्होंने बताया कि मेवात विकास बोर्ड की एक बैठक होती है, उसी में यह निर्णय लिया गया था। आखिरी बार बैठक 2017-18 में हुई थी। कर्मचारी ने यह भी जानकारी दी कि आज सीएम खट्टर के साथ भी बैठक चल रही है। आधिकारिक तौर पर रिजर्वेशन का मसला क्या है इसे मुख्य कार्यकारी अधिकारी ही बता पाएँगे। उन्हें इस सब पर बताने या कहने की परमिशन नहीं है।
क्या है मेवात डेवलपमेंट एजेंसी का उद्देश्य?
यहाँ बता दे कि यदि हम मेवात डेवलपमेंट एजेंसी यानी मेवात विकास अभिकरण, नूँह की वेबसाइट पर जाकर देखेंगे तो इसका उद्देश्य बताते हुए लिखा गया है कि मेवात विकास बोर्ड का उद्देश्य इस क्षेत्र की गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन की स्थितियों को सुधारना और इस क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना है। साथ ही इसका उद्देश्य मेवात क्षेत्र में विकास की गति को तेज करना है ताकि इस क्षेत्र में विकासात्मक योजनाओं को कार्यान्वित किया जा सके।
अब सवाल इस विज्ञापन के सामने आने के बाद और पिछले दिनों इस इलाके के अल्पसंख्यक आबादी यानी हिन्दुओं पर हुए तमाम अत्याचारों के मद्देनजर उठता है कि अगर वाकई मेवात विकास अभिकरण का उद्देश्य सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करना है तो फिर यहाँ की अल्पसंख्यक आबादी के साथ इतना भेदभाव क्यों? क्या राष्ट्रीय स्तर पर देश की दूसरी बहुल आबादी यहाँ भी प्रशासन के लिए अल्पसंख्यक ही है? क्या क्षेत्र में अल्प आबादी में रह रहे हिंदुओं के शिक्षा का स्तर सुधारना सामाजिक उत्थान की गिनती में नहीं आता?
गौर करने वाली बात यह है कि एक ओर अल्पसंख्यक आबादी के स्थानीय लोग मीडिया चैनलों के सामने स्पष्ट कहते हैं कि वह अपनी बेटियों को बहुल आबादी के ‘डर’ से ज्यादा पढ़ने नहीं देते, ऐसे में दूसरी ओर प्रशासन का ऐसा रवैया उन्हें क्या संदेश देगा? क्या यह सब क्षेत्र के अल्पसंख्यकों को हताश नहीं करेगा? वह कैसे अपने पिछड़ेपन से उभरेंगे?
आज मुस्लिम महिलाओं को शिक्षित करने की दिशा में उठाए जा रहे कदमों से किसी को कोई दिक्कत नहीं है, कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मेवात में भी मुस्लिमों को ‘अल्पसंख्यक’ कहकर ऐसा भेदभाव अन्य धर्म जाति की महिलाओं को अधिकार से वंचित करता है और मेवात प्रशासन पर सवालिया चिह्न लगाता है।