यूपीएससी में लेटरल एंट्री को लेकर बहस छिड़ने के बीच मंगलवार (20 अगस्त 2024) को केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर रोक लगाने का आदेश दिया है। इस संबंध में कार्मिक मंत्री ने यूपीएससी चेयरमैन को पत्र लिखकर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर सीधी भर्ती के विज्ञापन पर रोक लगाई जाए। कार्मिक मंत्री ने पत्र में कहा कि सरकार ने यह फैसला लेटरल एंट्री के व्यापक पुनर्मूल्यांकन के तहत लिया है।
केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्री जितेंद्र सिंह की ओर से यूपीएससी के चेयरमैन को जो पत्र भेजा गया है, उसमें कहा गया है कि ये पद विशेषीकृत हैं। ऐसी नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं रहा है। सामाजिक न्याय सुनिश्चित कराने के प्रधानमंत्री के लक्ष्य के मद्देनजर इस तरह की नियुक्तियों की समीक्षा करने और इसमें सुधार लाने की जरूरत है, इसलिए यूपीएससी से लेटरल एंट्री के विज्ञापन को निरस्त करने का अनुरोध किया जाता है।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने जो लेटर यूपीएससी को लिखा है, उसमें कॉन्ग्रेस पर भी जमकर निशाना साधा गया है। लेटर में केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि सैद्धांतिक तौर पर सीधी भर्ती की अवधारणा का समर्थन 2005 में गठित प्रशासनिक सुधार आयोग की तरफ से किया गया था, जिसकी अध्यक्षता वीरप्पा मोइली की तरफ से की गई थी।
इस पत्र में कहा गया है कि अधिकतर लेटरल एंट्रीज 2014 से पहले की थी और इन्हें एडहॉक स्तर पर किया गया था। प्रधानमंत्री का विश्वास है कि लेटरल एंट्री हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के समान होनी चाहिए, विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के संबंध में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।
"…I urge the UPSC to cancel the advertisement for the lateral entry recruitment issue on August 17, 2024. This step would be a significant advance in the pursuit of social justice and empowerment." – reads the letter written by Minister for the Department of Personnel and… pic.twitter.com/yj2cNc3Vb8
— ANI (@ANI) August 20, 2024
इस मामले में केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, “आज प्रधानमंत्री जी ने सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, पिछले 3-4 दिनों से लेटरल एंट्री का मामला चल रहा था। हमारे PMO में राज्य मंत्री जो DoPT भी देखते हैं, उन्होंने UPSC को पत्र लिखा है कि जब तक आरक्षण का पूरा प्रावधान नहीं हो जाता, तब तक आप इसे वापस ले लें। इससे पता चलता है कि प्रधानमंत्री जी सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालाँकि ये सच है कि लेटरल एंट्री की शुरुआत कॉन्ग्रेस के जमाने से हुई। आरक्षण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री जी हमेशा गरीबों के साथ खड़े नजर आते हैं। इस फैसले में भी प्रधानमंत्री जी SC, ST और पिछड़ों के साथ खड़े नजर आते हैं।”
#WATCH | Union Minister Arjun Ram Meghwal says "Today the Prime Minister has taken an important decision keeping in mind social justice, a matter of lateral entry which was going on for the last 3-4 days. Our Minister of State in the PMO, who also looks after DoPT, has written a… https://t.co/LAENajDlM2 pic.twitter.com/G42xZ0QwGR
— ANI (@ANI) August 20, 2024
क्या है लेटरल एंट्री?
नौकरशाही मे लेटरल एंट्री सरकार के पीछे सरकार की मंशा है कि निजी क्षेत्र के लोगों के अनुभव का लाभ भी उसे मिले। ऐसे अनुभवी लोगों की भर्ती के लिए ही सरकार यह कदम उठा रही है। इसके अंतर्गत सरकार अनुभव के आधार पर इन लोगों की भर्ती करती है। इनको केंद्र सरकार में सचिव स्तर के पद और सुविधाएँ दी जाती हैं। ऐसे आवेदकों की भर्ती के लिए सरकार उनके अनुभव और साक्षात्कार के आधार पर होती है। इनकी सेवा भी नियमित अवधि के लिए होती है और संविदा पर की जाती है। वर्तमान भर्ती में यह सीमा 3 वर्ष रखी गई है।
किसने दिया था लेटरल एंट्री का सुझाव?
UPA सरकार ने वर्ष 2005 में प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) का गठन किया था। इसके अध्यक्ष केन्द्रीय मंत्री वीरप्पा मोईली थे। वीरप्पा मोईली की अध्यक्षता वाले इस पैनल ने देश के कई क्षेत्रो में सुधार को लेकर अपने सुझाव दिए थे। इन्हीं सुझावों में एक रिपोर्ट प्रशासनिक सुधारों पर आधारित थी। यह रिपोर्ट नवम्बर 2008 में केंद्र सरकार को सौंपी गई थी। लगभग 380 पन्नों की इस रिपोर्ट में लेटरल एंट्री के सुझाव का जिक्र है। इस रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि ARC नौकरशाही के पदों पर लेटरल एंट्री का सुझाव देती है।
रिपोर्ट में केंद्र सरकार के कुछ पदों पर 3 वर्षों के लिए लेटरल एंट्री की बात कही गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि निजी क्षेत्र के लोगों को सरकार में काम करने का मौक़ा दिया जाना चाहिए और इसी तरह सरकारी अफसरों को भी बाहरी क्षेत्र में काम करने की छूट दी जानी चाहिए। लेटरल एंट्री की भर्तियो को लेकर आयोग ने कहा था कि इससे उच्च पदों पर काम करने के लिए सरकार को ऐसे लोग मिलेंगे जो उस क्षेत्र के विशेषज्ञ होंगे। इसके लिए अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों का उदाहरण भी दिया गया था।
कब हुई लेटरल एंट्री की शुरुआत?
कॉन्ग्रेस सरकार के अलावा नीति आयोग ने भी 2017 में ऐसी ही सिफारिश की थी। नीति आयोग ने 40 पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती करने की सिफारिश की थी। 2018 में मोदी सरकार ने पहली बार लेटरल एंट्री के जरिए विशेषज्ञों को सरकार में शामिल करने के लिए विज्ञापन निकाले थे। इसी क्रम में ही इस बार भी 45 अलग-अलग पदों पर भर्ती निकाली गई है, जिसे फिलहाल सरकार ने रोक दिया है।