आम धारणा है कि सरकारी नौकरी से रिटायर होने की उम्र 60-62 साल मानी जाती है, लेकिन सरकार को यदि ऐसा लगे कि कोई कर्मचारी 50 की उम्र पार कर लेने के बाद अपने काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पा रहा है तो वह 50 के बाद ही उस कर्मचारी को पेंशन पर भेज सकती है। इन नियम का इस्तेमाल करते हुए मोदी सरकार ने हाल ही में 32 रेलवे अफ़सरों को रिटायर कर दिया है। यह जानकारी राज्य सभा में सरकार ने खुद दी है।
कार्मिक मामलों के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने एक सवाल के जवाब में कल (बृहस्पतिवार, 5 दिसंबर, 2019 को) बताया कि रिटायर किए गए 32 लोगों में 22 कर्मचारी निदेशक (डायरेक्टर) और उससे ऊँचे पदों पर आसीन थे। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने सरकारी अधिकारियों के हवाले से यह दावा किया है कि हालाँकि एक तय उम्र के बाद सामयिक समीक्षा सरकारी कमर्चारियों की सेवा शर्तों का हिस्सा तो है, लेकिन इसका इस्तेमाल बहुत कम होता है। हाल-फ़िलहाल में इसके पहले भी रेलवे में इसका इस्तेमाल करने वाली मोदी सरकार ही थी, जब 2016-17 में 4 ऐसे कर्मचारियों को रिटायर कर दिया था।
1780 पर लटकी थी तलवार, पिछली बार 1824
रेलवे के अनुसार 2016-17 में ग्रुप A के कर्मचारियों के बीच उम्र के तकाज़े से अक्षम और अकुशल की छँटनी में 1824 लोगों के प्रदर्शन को जाँचा-परखा गया था, लेकिन अंत में गाज केवल 4 पर ही गिरी। इस बार उसके मुकाबले केवल 1780 लोग ही रडार पर थे, लेकिन 32 की गर्दन नप गई है। अभी यही प्रक्रिया विभिन्न जोनों में गैर-राजपत्रित (नॉन-गज़ेटेड) और JAG स्तर के अधिकारियों के साथ अपनाई जाएगी।
इस बाबत जितेंद्र सिंह ने संसद को सूचित किया कि 220 भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों को मोदी सरकार ने इसके इस्तेमाल से 5 साल में चलता किया है। इनमें से 96 वरिष्ठ अधिकारी थे। उनके लिखित जवाब के अनुसार 96 ग्रुप A के और 126 ग्रुप B के अधिकारियों को विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से सरकार ने सेवा के मूलभूत नियमों (फंडामेंटल रूल्स) में नियम FR 56 (j) के इस्तेमाल से बाहर का रास्ता दिखाया है। यह नियम सरकार को पूरा अधिकार देता है कि किसी सरकारी अधिकारी को अक्षमता, या ईमानदारी के अभाव में ‘सार्वजनिक हित के लिए’ रिटायर कर दे। सिंह के अनुसार इस नियम का इस्तेमाल सरकार की कुशलता में बेहतरी सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।