ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की चर्चाओं के बीच इस पर आपत्ति जताते हुए ईशनिंदा पर कानून बनाने की माँग की है। बोर्ड के पदाधिकारियों और सदस्यों का कहना है कि मुस्लिम समाज इसे कतई स्वीकार नहीं करेगा। कानपुर के मदरसा दारुल तालीम और सनअत (DTS) जाजमऊ में दो दिवसीय अधिवेशन के अंतिम दिन रविवार (21 नवंबर 2021) को 11 प्रस्ताव पारित किए गए। इसमें वक्फ संपत्तियों और धर्मांतरण के मुद्दे अहम थे, वहीं बोर्ड ने जबरन धर्मांतरण और गैर मजहबी शादियों का विरोध किया। बोर्ड ने कहा कि सरकार को ईशनिंदा पर कानून (Blasphemy Law) बनाना चाहिए।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की विवादित मांग, देश में ईशनिंदा पर कानून बनाने की मांग।#MuslimPersonallawBoard @iamnavedqureshi pic.twitter.com/9faEqGHagV
— News Nation (@NewsNationTV) November 21, 2021
बोर्ड के मीडिया समन्वयक डॉ. कासिम रसूल इलियास ने अधिवेशन के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि संविधान में हर नागरिक को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने धर्म में आस्था रखे और दूसरों को इसके बारे में बताए। बहु-धार्मिक समाज में समान नागरिक संहिता उचित नहीं है और यह संविधान के मौलिक अधिकारों के विपरीत है। बोर्ड ने सरकार से माँग की है कि मुस्लिमों पर समान नागरिक संहिता न लगाई जाए। उन्होंने कहा कि बोर्ड जबरन धर्मांतरण कराने वालों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि यह मुसलमानों के मजहबी अधिकारों और शरीयत कानून में हस्तक्षेप होगा।
ईशनिंदा कानून बनाए सरकार
बोर्ड ने कहा कि इस्लाम के पैगंबर पर टिप्पणी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। प्रस्ताव में कहा गया कि हाल ही में पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की गईं। लेकिन उससे भी ज्यादा अफसोस की बात यह है कि सरकार ने ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
इसके साथ ही बोर्ड ने अधिवेशन में अल्पसंख्यकों, दलितों और अन्य कमजोर वर्गों पर बढ़ते अत्याचार को रोकने के लिए सरकार से विशेष पहल की माँग की। सम्मेलन में मुस्लिमों से शरीयत का पालन करने, सादगी से शादी करने और दहेज न माँगने की अपील की गई और कहा कि मध्यस्थता के माध्यम से आपसी विवादों को सुलझाएँ और अगर किसी का समाधान नहीं होता है तो दारुल क़ज़ा जाएँ।
अंतर-धार्मिक विवाह से बचें
बोर्ड ने मुस्लिमों को सलाह दी है वह अंतर-धार्मिक विवाह से बचें, क्योंकि इससे समाज में विभाजन पैदा होता है और सांप्रदायिक सौहार्द प्रभावित होता है। मजहबी नियम और किताबें आस्था से जुड़ी हैं, इसलिए सिर्फ मजहब को समझने वालों को ही इसकी व्याख्या करने का अधिकार है। सरकारों या अन्य संस्थाओं को मजहबी पुस्तकों या मजहबी शब्दावली की व्याख्या करने से बचना चाहिए।