सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अयोध्या विवाद पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया। फैसले में राम जन्मभूमि की माँग करने वालों को जमीन सुपुर्द कर दी गई और मस्जिद की माँग करने वालों को दूसरी जगह पर 5 एकड़ जमीन देने का निर्देश दिए गए। हालाँकि, इस फैसले के बाद कुछ मस्जिद पक्षकार नाखुश नजर आए और उन्होंने मामले पर रिव्यू याचिका डालने की बात की। लेकिन इस कथन पर अमल किया जाएगा या नहीं, ये अब भी सवाल है।
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का अध्ययन कर रहा है। खबर के मुताबिक, इस अध्ययन के बाद वह 17 नवंबर को रिव्यू पिटीशन डालने पर फैसला करेगा। खुद AIMPLB (ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) के वकील जफरयाब जिलानी ने शनिवार को इसपर संकेत दिए थे कि वो रिव्यू पेटिशन के साथ सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
#AyodhyaVerdict अयोध्या मामला: मुस्लिम पक्ष के पास बचा है अब ये रास्ता, सुन्नी वक्फ बोर्ड 17 नवंबर को करेगा फैसलाhttps://t.co/Rwaj7nNvzH
— News18Hindi (@HindiNews18) November 11, 2019
दरअसल, AIMPLB के सदस्यों का सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला नहीं सुनाया। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 1949 में बाबरी मस्जिद के अंदर छुपकर मूर्ति रखी गई। इसके अलावा कोर्ट का ये भी कहना है कि कानून तोड़ते हुए 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद को ढहाया गया। लेकिन फिर भी जमीन मंदिर को क्यों दी गई।
इसके बाद AIMPLB का ये भी तर्क है कि उन्होंने हिंदुओं को सीता रसोई और चबुतरे पर पूजा करने से कभी मना नहीं किया। सुन्नी वक्फ बोर्ड का कहना है कि उनके पास ज़मीन की कोई कमी नहीं है। उन्हें बस न्याय चाहिए।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में पूरी विवादित जमीन पर रामलला का हक माना है। इस जमीन पर मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करने के लिए केंद्र सरकार को 3 महीने में ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया गया है। केंद्र सरकार ही ट्रस्ट के सदस्यों का नाम निर्धारित करेगी। साथ ही मंदिर निर्माण में कार्य आगे बढ़ेगा।