राम मंदिर को लेकर आज गुरुवार (अगस्त 22, 2019) को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और इस दौरान वादी गोपाल सिंह विशारद की तरफ से दलीलें पेश की गईं। आज रोजाना सुनवाई के तहत 10वें दिन की सुनवाई हुई। वकील रंजीत कुमार ने अपना पक्ष रखते हुए रामलला विराजमान के वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन के उस बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि सम्पूर्ण संपत्ति ही देवता है और श्रद्धालु पूरे जन्मस्थान की ही पूजा करते आ रहे हैं।
यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि दिवंगत गोपाल सिंह विशारद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने जनवरी 1950 में फैज़ाबाद कोर्ट में राम अमंदिर के लिए मुक़दमा दायर किया था। उन्होंने वहाँ स्थापित देवताओं की पूजा के लिए अदालत से अनुमति माँगी थी।
वकील रंजीत कुमार ने कहा कि देवता की पूजा करना उनका व्यावहारिक अधिकार है और कोई इस अधिकार को छीन नहीं सकता। कुमार ने कहा कि 1935 के बाद से ही मुस्लिमों ने इस जगह पर नमाज़ नहीं पढ़ी है और इसे गलत रूप में बाबरी मस्जिद कहा गया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष 20 ऐसे एफिडेविट पेश किए, जिनसे यह पता चलता है कि उस स्थल पर मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाई गई थी।
हालाँकि, जस्टिस चंद्रचूड़ ने वकील रंजीत कुमार से कहा कि एफिडेविट देने वाले लोगों का उपस्थित होना ज़रूरी है ताकि क्रॉस-एग्जामिनेशन किया जा सके। जवाब में वकील रंजीत कुमार ने बताया कि ट्रायल बाद में शुरू हुए। उन्होंने बताया कि यह जजमेंट का हिस्सा है। उन्होंने अब्दुल गनी का वह एफिडेविट दिखाया, जिसमें कहा गया है कि राम मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाए जाने के बावजूद हिन्दू यहाँ पूजा करते रहे और ज़मीन का अधिकार नहीं छोड़ा।
RK is relying on an affidavit filed by Abdul Gani who narrates that the Mosque was built after demolishing Ram temple, and despite that Hindus continued worshiping there and did not give up possession.#AyodhyaHearing
— Live Law (@LiveLawIndia) August 22, 2019
सारे एफिडेविट का सार देखें तो मुस्लिमों ने यह स्वीकार किया है कि 1935 के बाद से ही उस स्थल पर नमाज़ नहीं पढ़ी जा रही है और इसीलिए अगर हिन्दुओं को यह ज़मीन वापस कर दी जाती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। बुधवार की सुनवाई में सीएस वैद्यनाथन ने स्कन्द पुराण और पुरातत्व एजेंसी के सबूतों का जिक्र करते हुए कहा था कि मंदिर हमेशा मंदिर ही रहेगा और किसी के कुछ भी दावा करने से यह सत्य बदल नहीं सकता।