Monday, November 18, 2024
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NCPCR का CM योगी को पत्र, कहा- हाई कोर्ट के ‘ओरल सेक्स’ वाले फैसले पर करें अपील: बच्चे के मुँह में लिंग डालने को नहीं माना था ‘गंभीर’

आयोग को लगता है कि इस मामले में सजा कम करते हुए उच्च न्यायालय द्वारा किए गए कमेंट्स पॉक्सो कानून की भावना के अनुरूप प्रतीत नहीं होते हैं। वहीं आयोग ने मुख्य सचिव से नाबालिग का ब्योरा देने का भी आग्रह किया है ताकि उसे कानूनी सहायता जैसी मदद मुहैया कराई जा सके।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को पत्र लिखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले के खिलाफ ‘तत्काल अपील’ दायर करने के लिए कहा, जिसमें एक 10 वर्षीय नाबालिग के यौन उत्पीड़न मामले में दोषी की सजा को 10 साल से घटा कर 7 साल कर दिया गया है।

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 साल के नाबालिग लड़के के साथ ओरल सेक्स करने के दोषी POCSO अपराधी की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि लिंग को मुँह में डालना ‘गंभीर यौन हमला’ या ‘एग्रेटेड यौन हमले’ की श्रेणी में नहीं आता है बल्कि यह पेनेट्रेटिव यौन हमले की श्रेणी में आता है जो POCSO अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय है।

बता दें कि NCPCR को किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 109 और बच्चों को बाल अपराधों से संरक्षण (पॉक्सो) कानून 2012 की धारा 44 के तहत कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी का अधिकार है। आयोग ने एक पत्र में कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सोनू कुशवाहा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में तत्काल अपील किए जाने की आवश्यकता है।

साभार-NCPCR

पत्र के अनुसार आयोग को लगता है कि इस मामले में सजा कम करते हुए उच्च न्यायालय द्वारा किए गए कमेंट्स पॉक्सो कानून की भावना के अनुरूप प्रतीत नहीं होते हैं। वहीं आयोग ने मुख्य सचिव से नाबालिग का ब्योरा देने का भी आग्रह किया है ताकि उसे कानूनी सहायता जैसी मदद मुहैया कराई जा सके।

पत्र में आगे कहा गया है कि मामले में दोषी की सजा को कम करना इस मामले में पीड़ित को दिए गए न्याय के प्रतिकूल है और इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, आयोग को लगता है कि मामले में इसके खिलाफ तत्काल अपील दायर करने का निर्णय राज्य द्वारा लिया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि बच्चे के साथ ओरल सेक्स के एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुँह में लिंग डालने को ‘गंभीर यौन हमला’ मानने से इनकार कर दिया। अदालत ने इसे POCSO एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय माना। कहा कि यह हरकत एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट या गंभीर यौन हमला नहीं है। लिहाजा ऐसे मामले में पॉक्सो एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती।

हाई कोर्ट ने इस मामले में दोषी की सजा घटाकर 10 से 7 साल कर दी। साथ ही उस पर 5 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया। सोनू कुशवाहा ने सेशन कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

अपने फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 20 नवंबर, 2021 को दिए निर्णय में स्पष्ट किया कि एक बच्चे के मुँह में लिंग डालना ‘पेनेट्रेटिव यौन हमले’ की श्रेणी में आता है, जो यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय है और अधिनियम की धारा 6 के तहत नहीं। इसलिए, न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा की पीठ ने निचली अदालत द्वारा अपीलकर्ता सोनू कुशवाहा को दी गई सजा को 10 साल से घटाकर 7 साल कर दिया।

बता दें कि सोनू कुशवाहा ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश / विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, झाँसी द्वारा पारित निर्णय के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में आपराधिक अपील दायर की थी, जिसके तहत कुशवाहा को दोषी ठहराया गया था।

दरअसल, अपीलकर्ता के खिलाफ मामला यह था कि वह शिकायतकर्ता के घर आया और उसके 10 साल के बेटे को साथ ले गया। उसे ₹20 देते हुए दिए अपना लिंग मुँह में लेने को कहा था। बच्चे से यह पूछने पर कि उसे यह पैसे कहाँ से मिले, उसने पूरी कहानी बताई और कहा कि सोनू कुशवाहा ने उसे धमकी दी थी कि वह इसे किसी को न बताए। रिपोर्ट के अनुसार विशेष सत्र न्यायालय ने सोनू कुशवाहा को आईपीसी की धारा 377 और 506 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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