उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित देवबंद दारुल उलूम ने गजवा-ए-हिंद ने फतवा जारी किया था। इसको लेकर भेजी गई रिपोर्ट पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने सहारनपुर के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को दिल्ली तलब किया है।
NCPCR अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि आयोग ने प्रशासन को दारुल उलूम के खिलाफ कार्रवाई करने का नोटिस दिया था, लेकिन इस पर कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने अपनी जाँच रिपोर्ट में कहा कि फतवा 2009 में जारी किया गया।
कानूनगो ने कहा कि दक्षिण एशिया को दारुल उलूम मदरसा शिक्षा प्रणाली नियंत्रित करती है। फतवे में गजवा-ए-हिंद का महिमामंडन किया है। इस संबंध में दारुल उलूम के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए 21 फरवरी 2024 को नोटिस दिया था, लेकिन कार्रवाई की बजाए एक रिपोर्ट बनाकर भेज दिया गया।
उन्होंने कहा, “फतवे में कहा गया था कि गजवा-ए-हिंद के दौरान मारा जाने वाला शहीद माना जाएगा। यह फतवा दारुल ने 26/11 हमले के ठीक बाद 1 दिसंबर 2008 को जारी किया गया था। NCPCR ने एक रिपोर्ट और स्पष्टीकरण के साथ सहारनपुर डीएम और एसएसपी को दिल्ली बुलाया है।”
कानूनगो ने कहा कि दारुल उलूम से जुड़े मौलानाओं को जमीयत उलेमा-ए-हिंद (UK) से करोड़ों रुपए की फंडिंग होती है। यह संगठन पाकिस्तान को भी फंड देता है। उन्होंने पूछा, “क्या वे बच्चों की नजर में अजमल कसाब को शहीद के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं? इसका जवाब अधिकारियों को देना होगा।”
दरअसल, प्रियांक कानूनगो ने दारुल उलूम के गजवा-ए-हिंद पर पुराने फतवे का संज्ञान लिया। इस संबंध में सहारनपुर के डीएम और एसपी को 21 फरवरी 2024 को मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई करने का आदेश दिया था। इस संबंध में डीएम दिनेश चंद्रा ने देवबंद के एसडीएम और सीओ को नेतृत्व में टीम गठित की थी।
टीम ने जाँच करने के बाद एक रिपोर्ट तैयार की और उसे आयोग को भेजी गई। इस रिपोर्ट में मुकदमा दर्ज न करने समेत कई पहलुओं का जिक्र किया गया था, जिसमें कहा गया था कि यह फतवा साल 2009 का है। इसके बाद आयोग ने प्रशासन की ओर से मिली रिपोर्ट पर आपत्ति जताई है।
NCPCR की नाराजगी के बाद जिला प्रशासन ने नए सिरे से जाँच रिपोर्ट तैयार करने की बात कही है। वहीं, दारुल उलूम की सर्वोच्च कमिटी मजलिस-ए-शूरा ने हाल ही में कहा था कि वह अपनी वेबसाइट बंद नहीं करेगा। उसने यह भी कहा था कि यदि उस पर कोई कानूनी कार्रवाई की गई तो वह कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।
दारुल उलूम के अशरफ उस्मानी ने कहा कि इस संस्था ने अपना जवाब प्रशासन को दे दिया था। संस्था ने 2009 में एक व्यक्ति द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में 211 ईस्वी में लिखी गई पुस्तक सना नसाई के हवाले से दिया था। इसे अरबी लेखक अल-इमाम अल हिजाज अबू अब्दुर्रहमान अहमद बिन नसाई ने लिखी गई थी।