16 दिसंबर 2012 को दिल्ली के मुनिरका में हुए निर्भया गैंगरेप के दोषियों को जेल अधीक्षक ने अपनी ओर से फाँसी का नोटिस 29 अक्टूबर को दे दिया है। इस नोटिस के ज़रिए उन्हें बताया गया है कि फाँसी की सज़ा के खिलाफ राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर करने के लिए उनके पास सात दिन का वक़्त है। बता दें कि 29 अक्टूबर को जारी एक कानूनी नोटिस में दोषियों से कहा गया था कि अपनी मौत की सजा के विरुद्ध दया याचिका दाखिल करने के लिए उनके पास 7 दिन का वक़्त है।
Superintendent, Tihar Jail to the four Nirbhaya case convicts: If you wish to file the ‘Mercy Petition’ in your case against the capital sentence before the President, you can file it within 7 days of the receipt of this notice, through prison authorities… (2/3)
— ANI (@ANI) October 31, 2019
नोटिस में कहा गया, “सूचित किया जाता है कि यदि आपने अब तक दया याचिका दायर नहीं की है और यदि आप मामले में फाँसी की सजा के खिलाफ राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करना चाहते हैं तो आप यह नोटिस पाने के सात दिनों के भीतर ऐसा कर सकते हैं। इसमें नाकाम रहने पर माना जाएगा कि आप दया याचिका नहीं दायर करना चाहते हैं और जेल प्रशासन कानून के मुताबिक आगे की आवश्यक कानूनी प्रक्रिया शुरू करेगा।”
Asha Devi, mother of December 16 Delhi gang-rape victim: This should have happened long ago, Supreme Court had given the verdict in 2017. I have been struggling for 7 years now, but they haven’t been hanged yet. Jail authorities have taken the right step. https://t.co/KFnbCNVJbb pic.twitter.com/TRpIlPYWyz
— ANI (@ANI) October 31, 2019
बता दें कि 16 दिसंबर 2012 को 23 वर्षीय छात्रा के साथ दिल्ली में एक बस में छ लोगों ने दुष्कर्म कर उसके साथ मार-पीट कर चलती बस ने नीचे फेंक दिया था। 29 दिसंबर 2012 को जिंदगी और मौत की जंग के बीच सिंगापुर में इलाज के दौरान पीड़िता की मौत हो गई थी। इस घटना में पकड़े आरोपियों में से एक राम सिंह ने जेल में ही ख़ुदकुशी कर ली थी।
दिल्ली गैंगरेप घटना को अंजाम देने वाला एक दोषी उस वक़्त नाबालिग था, जिसे न्यायालय ने बाल सुधार गृह में 3 साल की सजा सुनाई थी। वह अब अपनी सज़ा पूरी कर रिहा हो चुका है। जबकि सर्वोच्च न्यायलय ने 9 जुलाई को मामलें के तीन दोषियों मुकेश (31), पवन (24) और विनय शर्मा (25) की याचिकाएँ ख़ारिज कर दी थीं। अपनी इस याचिका में तीनों ने 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा फाँसी की फैसले को बरक़रार रखने को चुनौती दी थी। जबकि मौत की सजा का सामना कर रहे चौथे दोषी अक्षय कुमार सिंह (33) ने सर्वोच्च न्यायलय में पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की थी।
पीड़िता की माँ ने जेल प्रशासन के कदम पर ख़ुशी ज़ाहिर की है। उन्होंने कहा कि यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था। उन्होंने बताया कि वे 7 साल से इसके लिए लड़ रही थीं। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला 2017 में ही दे दिया था।