केरल के कोझिकोड (Kozhikode, Kerala) में निकाह के लिए एक मुस्लिम दुल्हन को मस्जिद में प्रवेश की अनुमति देने के कुछ दिन बाद मुस्लिम संगठन ने अपने फैसले पर यू-टर्न ले लिया है। केरल के मुस्लिमों की संस्था पलेरी-परक्कडवु महल समिति ने कहा कि निकाह के लिए किसी मस्जिद में महिला को घुसने देना स्वीकार्य नहीं है।
महल समिति ने शुक्रवार (5 अगस्त 2022) को कहा कि निकाह के लिए दुल्हे के साथ-साथ दुल्हन को गलती से मस्जिद के अंदर जाने दिया गया था। भविष्य में इस तरह के व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
दरअसल कोझिकोड के परक्कडवु जुमा मस्जिद ने कुट्टयदी के रहने वाले केएस उमर को मस्जिद परिसर में अपनी बेटी के निकाह की अनुमति दी थी। उमर की बेटी का नाम बहजा दलीला है, जिसकी निकाह 30 जुलाई 2022 को फहद कासिम से हुई थी।
निकाह के बाद दुल्हन दलीला मस्जिद के अंदर गई थी। दुल्हन को इसकी अनुमति मस्जिद के सचिव ने दी थी। अब महल समिति ने मस्जिद के सचिव पर ये फैसला बिना सलाह मशविरा के ही लेने का आरोप लगाया है। बता दें कि महल समिति न सिर्फ मस्जिदों, बल्कि उसमें काम करने वाले लोगों का भी ध्यान रखती है।
महल समिति ने अपनी नाराजगी जताते हुए आगे कहा, “अनुमति मस्जिद के बाहर शादी करने की मिली थी। हालाँकि, पदाधिकारियों में से एक ने इसे दुल्हन के मस्जिद में जाने की अनुमति के रूप में गलत समझा। ऐसा करने वाले ने माफ़ी माँग ली है। दुल्हन न सिर्फ अपने परिवार वालों के साथ मस्जिद के अंदर गई थी, बल्कि उसने मस्जिद के अंदर कई फोटो भी खींचे जो मस्जिद के कायदे और कानूनों का उल्लंघन है।”
इस शादी के तौर-तरीकों पर सवाल उठाते हुए महल समिति ने पूरी गलती दुल्हन के परिवार वालों पर थोप दी है। समिति के सदस्यों के मुताबिक, वो जल्द ही लड़की के घर वालों से मुलाक़ात भी करेंगे। महल समिति ने यह भी एलान किया कि भविष्य में मस्जिद के अंदर होने वाली शादियों पर एक नियमावली बनाई जाएगी और महल समिति के सदस्यों को इसकी जानकारी भी दी जाएगी।
मस्जिद परिसर में दुल्हन के जाने पर नाराजगी जताते हुए सुन्नी युवजन संघ (SYM) के कार्यकारी सचिव अब्दुल हमीद फ़ैज़ी ने इसे इस्लाम का एक नया रूप बताया, जिसे जमात-ए-इस्लामी और मुजाहिदों ने स्थापित किया है।
वहीं, महल समिति की नाराजगी पर हैरानी जताते हुए दूल्हे के चाचा सनूप सीएच ने कहा, “हमने सोचा कि दुल्हन के मस्जिद में जाने से इस्लामी समुदाय में प्रगति होगी। हम इसे सार्थक और सकारात्मक बदलाव मान कर चल रहे थे। शादी के आयोजन के लिए हमने हर तरह की अनुमति ली थी। अगर महल समिति अपने फैसले पर एक बार फिर से विचार करे तो बेहतर होगा।”
दुल्हन के पिता के एस उमर ने भी गैर-जरूरी परम्पराओं को त्यागने की अपील की है। उन्होंने कहा, “दोनों परिवार चाहते थे कि बेटी मस्जिद में अपनी निकाह की साक्षी बने। ऐसा हमारे इलाके में पहला कार्यक्रम था। मेरी बेटी सहित बाकी अन्य दुल्हनों को भी अपना निकाह देखने का हक है।” गौरतलब है कि इस्लाम में मस्जिदों के अंदर औरतों के प्रवेश की पाबंदी है।