Friday, November 15, 2024
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गणपति की मूर्ति का विसर्जन संजय गाँधी नेशनल पार्क में नहीं किया जाए: बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा – उल्लंघन करने वालों पर हो उचित कार्रवाई

बॉम्बे हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि वन विभाग के अधिकारी उन लोगों के खिलाफ कानून के तहत उचित कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं, जो मूर्तियों का विसर्जन करने के लिए नियमों का उल्लंघन करते हैं और संजय गाँधी नेशनल पार्क में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं।

बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने महाराष्ट्र सरकार के वन विभाग को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि संजय गाँधी नेशनल पार्क (SGNP, एसजीएनपी) में गणपति की मूर्ति का विसर्जन नहीं किया जाए। इस मामले में गुरुवार (8 सितंबर 2022) को बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस पीबी वराले और जस्टिस एसएम मोदक की पीठ ने सुनवाई की।

गणपति की मूर्ति का विसर्जन मामले को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि वन विभाग के अधिकारी उन लोगों के खिलाफ कानून के तहत उचित कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं, जो मूर्तियों का विसर्जन करने के लिए नियमों का उल्लंघन करते हैं और संजय गाँधी नेशनल पार्क में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं।

बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार, यदि वन विभाग इस मसले पर अतिरिक्त पुलिस बल की सहायता या पुलिस बल की तैनाती के लिए अनुरोध करता है तो पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी अनुरोध पर विचार करें और स्वयं उचित निर्णय लें।

संजय गाँधी नेशनल पार्क में गणपति विसर्जन का मामला

एक याचिकाकर्ता ने कुछ समाचारों के आधार पर अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें दावा किया गया था कि मूर्तियों को संजय गाँधी नेशनल पार्क (एसजीएनपी) में विसर्जित किया जा सकता है। इसके साथ ही याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि इन लेखों को पढ़ने से आम आदमी को यही लगेगा कि वन अधिकारियों ने एसजीएनपी के अंदर स्थित जल निकायों में मूर्तियों को विसर्जित करने की अनुमति दी है।

याचिका में लोगों को संजय गाँधी नेशनल पार्क के भीतर स्थित जलाशयों में गणेश प्रतिमाओं को विसर्जित करने से रोकने का निर्देश देने की माँग की गई थी।

इस मामले पर महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने कहा कि याचिका यह साबित करने में विफल रही कि अनुमति दी गई थी। उन्होंने कहा कि पारिस्थितिकी और वन्य जीवों को नुकसान पहुँचाने वाली किसी भी गतिविधि को रोकने के लिए वन विभाग के अधिकारी काफी सतर्क हैं।

इस पर जस्टिस वराले ने कहा:

“अगर आप कह रहे हैं कि अनुमति नहीं दी है और किसी ने खुद ही ऐसा कहा है तो आप बयान देते कि अनुमति नहीं है। समाचारों से तो पता चलता है कि अनुमति दी गई है। एक आम आदमी को क्या जानना चाहिए? यह एक सीधा संकेत है कि अनुमति माँगी गई थी और इसे नेशनल पार्क में मूर्ति विसर्जन की अनुमति दे दी गई है।”

बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने सरकारी वकील कंथारिया को स्पष्ट रूप से बयान देने के लिए कहा कि विसर्जन के लिए ना तो लिखित अनुमति दी गई और ना ही मौखिक आश्वासन दिया गया। इसलिए वह एक आदेश जारी करेंगे कि समाचारों को अनुमति के रूप में नहीं माना जाए।

कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य सरकार को निर्देश दिया कि नेशनल पार्क के प्रवेश द्वार के पास एक कृत्रिम तालाब स्थापित किया जाए और राज्य सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए वन विभाग हर संभव कदम उठाए। बॉम्बे हाई कोर्ट की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि समाचारों के कारण भ्रम पैदा हुआ है, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग मूर्ति विसर्जन के लिए आ सकते हैं। इसलिए, वन्यजीवों को नुकसान से बचाने के लिए राज्य को अतिरिक्त पुलिस बल तैनात करने की अनुमति दी गई है।

बॉम्बे हाई कोर्ट की पीठ ने साथ ही यह भी कहा, “यदि कुछ गलत बयान देकर जनता को गुमराह करने का कोई प्रयास किया जाता है तो राज्य सरकार कानून के प्रावधानों के तहत इस तरह की शरारत को रोकने के लिए उचित कदम उठा सकती है।” बता दें कि याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्रीनिवास पटवर्धन, एसआर नारगोलकर, केतन जोशी, अर्जुन कदम और सुदमन नारगोलकर पेश हुए थे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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