भारत में हिन्दू जनजातीय जनसंख्या को तेजी से ईसाई बनाने का षड्यंत्र चल रहा है। ईसाई बनने के कारण जनजातीय लोगों का आरक्षण का लाभ ना चला जाए, इसके लिए उन्हें ‘क्रिप्टो क्रिस्चियन’ बनाया जा रहा है। चर्चों को भी गाँव-गाँव फैलाया जा रहा है। इन सबके लिए वैध-अवैध तरीकों का इस्तेमाल हो रहा है।
जोशुआ प्रोजेक्ट के तहत भारत में जोरों शोरों से उन जातियों और जनजातियों तक ईसाई मिशनरियाँ पहुँच रही हैं जो अब तक धर्मांतरित नहीं हुए हैं। उनका सबसे पहला निशाना देश की जनजातीय जनसंख्या बन रही है। इसके पीछे का कारण जनजातीय समाज का आर्थिक पिछड़ापन बड़ा कारण है। साथ ही इन समूहों में शिक्षा की कमी के कारण इन्हें बरगलाना भी आसान है।
जनजातीय समुदाय को सिर्फ यह ईसाई मिशनरियाँ धर्मांतरित ही नहीं कर रहीं बल्कि उनके संसाधनों पर भी इनकी नजर है। दैनिक भास्कर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में जनजातीय लोगों को धर्मांतरित कर उनकी जमीन पर चर्च बनाए जा रहे हैं।
दोगुनी हुई चर्च की संख्या
भास्कर की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2011-12 में इन चारों राज्यों में लगभग 12,000 चर्च थे जो कि अब बढ़ कर 25,000 को पार कर चुके हैं। यह सब उन इलाकों में हो रहा है जहाँ को बाहरी व्यक्ति जमीन तक नहीं ले सकता। लेकिन मिशनरियाँ लगातार अपना प्रभाव बढ़ा रही हैं।
भास्कर की रिपोर्ट में बताया गया है कि जनजातीय समाज के लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता रहे, इसके लिए उन्हें धर्मान्तरित तो करवाया जाता है, लेकिन उनके नाम में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता। इन्हें क्रिप्टो क्रिस्चियन कहा जाता है। इसके अलावा उन्हें अपने मूल धर्म और मान्यताओं से नफरत करना भी सिखाया जाता है।
जनजातीय लोगों को ईसाइयत में लाकर वह सरना पेड़ काटने को कहा जाता है, जो उनके लिए पवित्र है। ईसाई धर्मांतरण का जोर इतना है कि पूरे-पूरे गाँव ही धर्मांतरित हो चुके हैं। कुछ गाँवों में मात्र एकाध हिन्दू परिवार बचे हैं। जिन गाँवों में ईसाई मिशनरी अपने काम में सफल हो रही हैं, उनके बाहर क्रॉस लगा दिया गया है।
बड़े पैमाने पर ईसाई बनाने के इस काम में जोशुआ प्रोजेक्ट बड़ी भूमिका निभा रहा है। अमेरिका से चलने वाला यह संगठन भारत की जातियों-जनजातियों और अन्य समूहों के आँकड़े इकट्ठा करके उनको ईसाई बनाने का प्रयास कर रहा है। जोशुआ प्रोजेक्ट ने भारत में 2000 से अधिक जातियों और समुदायों के आँकड़े इकट्ठा किए हैं।
क्या है जोशुआ प्रोजेक्ट?
जोशुआ प्रोजेक्ट उनको ईसाई बनाने का मिशन है जो इसमें आस्था नहीं रखते। यह संगठन अमेरिका से काम करता है। इसे 1995 में चालू किया गया था। इसे चार लोगों ने मिलकर चालू किया था। इन चार व्यक्तियों में एक भारतीय भी था। जोशुआ प्रोजेक्ट की वेबसाइट बताती है कि यह बाइबल में दिए गए एक निर्देश पर काम करता है। जोशुआ का कहना है कि बाइबल के मैथ्यू 28:19 में उन्हें विश्व के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को ईसाइयत का अनुयायी बना कर उनका बाप्तिस्मा बनाने का आदेश मिला है, जिस पर वह काम कर रहे हैं।
जोशुआ प्रोजेक्ट का मुख्य काम उन समूह के आँकड़े इकट्ठा करना है, जिनमें अभी तक ईसाइयत का प्रभाव नहीं हुआ है। जोशुआ प्रोजेक्ट को इसके लिए पैसा कहाँ से आता है, यह स्पष्ट नहीं है। हालाँकि, जोशुआ प्रोजेक्ट अपनी वेबसाइट पर ईसाइयत को बढ़ाने के लिए दान माँगता है। जोशुआ प्रोजेक्ट ने जो समूह ईसाइयत से दूर हैं, उनके लिए एक नक्शा बनाया है। विश्व के नक़्शे पर एक इलाका भी बनाया गया है, जो ईसाइयत से सबसे दूर है। इसे जोशुआ प्रोजेक्ट ने ’10:40 विंडो’ का नाम दिया है।
कैसे काम करता है जोशुआ प्रोजेक्ट?
जोशुआ प्रोजेक्ट ने भारत की अलग-अलग जातियों और जनजातीय समूहों के आँकड़े इकट्ठा किए हैं। जोशुआ प्रोजेक्ट के पास देश की 2272 जातियों-जनजातियों के आँकड़े हैं। जोशुआ प्रोजेक्ट अपने काम को पाँच स्तर पर मापता है। जिन जातियों में ईसाइयत में धर्मांतरण नहीं हो पाया है, उन्हें जोशुआ ‘अनरीचड’ के वर्ग में रखता है। इसके अलावा जिन जातियों-जनजातियों को में ईसाइयत को फैलाने में आंशिक सफलता मिली है, उन्हें ‘मिनिमली रीच्ड’ वर्ग और इस्ससे ऊपर ‘सुपरफिशियली रीच्ड को रखा जाता है। इसके अलावा भी दो वर्ग हैं।
जोशुआ प्रोजेक्ट को लेकर दैनिक भास्कर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि यह मिशन देश भर में हर जाति समूह को ईसाइयत में लाने के लिए एक एजेंट की नियुक्ति कर रहा है। यह एजेंट धर्मांतरण के साथ ही जगह-जगह नए चर्च बनाने का काम कर रहे हैं। भास्कर को ऐसा ही एक एजेंट भी मिला है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जोशुआ प्रोजेक्ट इन एजेंटों को लम्बी ट्रेनिंग के बाद जमीन पर उतारता है। इनका मुख्य काम जगह-जगह जाकर आँकड़े इकट्ठा करना होना है। इन्ह्ने जोशुआ प्रोजेक्ट की तरफ से लगभग ₹2000 की तनख्वाह भी मिलती है।
क्या बताता है जोशुआ प्रोजेक्ट का डाटा?
जोशुआ प्रोजेक्ट की वेबसाइट के अनुसार, उन्हें भारत में 2272 समूहों तक ईसाइयत को लेकर जाना है। जोशुआ प्रोजेक्ट बताता है कि वह इनमें से अभी 2041 जातियों तक नहीं पहुँच सका है। वहीं 103 जातियों में ईसाइयत का प्रभाव डालने में यह सफल रहा है। इनमें एक छोटी संख्या में लोग ईसाइयत को मानने लगे हैं। वहीं 128 जाति समूह ऐसे हैं, जिनमे बड़े पैमाने पर ईसाइयत की घुसपैठ हो गई है। जोशुआ प्रोजेक्ट की वेबसाइट ने बताया है कि वह अब तक 143 करोड़ में से 6 करोड़ लोगों तक ईसाइयत को लेकर पहुँच चुके हैं।
बड़ी संख्या में जातियों में धर्मांतरण
जोशुआ प्रोजेक्ट का डाटा बताता है कि उसने कई जातियों में 10%-100% तक ईसाइयत में धर्मांतरण करवाया है। जिन जातियों में बड़ी संख्या में ईसाइयत में धर्मांतरण हुआ है, उनको अलग नाम दे दिया गया है। तेलंगाना के मडिगा और माला समुदाय में 21000 की आबादी को ईसाइयत में बदल कर उसे आदि क्रिस्चियन का नाम दिया गया है। बोडो समुदाय की 15.7 लाख आबादी में से लगभग 1.5 लाख आबादी को ईसाइयत में लाया गया गया है।
जोशुआ प्रोजेक्ट की इतनी बड़ी मशीनरी लगातार भारत में चल रही है। इसको खाद-पानी भी मिल रहा है। कई बार ऐसे ईसाई प्रचारक पकड़े गए हैं, जो ईसाइयत में लोगों को लाने के लिए उन्हें प्रलोभन दे रहे थे। ऐसा ही एक मामला हाल ही में मध्य प्रदेश में सामने आया था, जहाँ ईसाइयत में धर्मान्तरित होने पर लगभग ₹20 लाख तक का ऑफर दिया गया था। इसी तरह बरेली में भी ईसाई धर्म प्रचारकों द्वारा हिन्दू नाबालिगों को निशाना बनाने की बात सामने आई थी। कई लोगों पर कार्रवाई के बाद भी यह नेटवर्क लगातार चलता रहता है।