दिल्ली के हिन्दू-विरोधी दंगों में मोहनपुरी इलाके में 25 फरवरी 2020 को एक लाश मिलती है। लाश की पहचान परवेज आलम के रूप में होती है। 26 फरवरी को एक FIR लिखी जाती है कि ASI राकेश को फोन के जरिए सूचना मिली कि जीटीबी अस्पताल में एक परवेज नाम का व्यक्ति है, जिसका पता मालूम नहीं, उसे किसी नितेश ने अस्पताल लाया जहाँ वो ‘मृत अवस्था में लाया गया’ घोषित कर दिया गया।
ये घटना 25 फरवरी के शाम सात बजे की है। जाफराबाद पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी में परवेज की जेब से 13 जिंदा कारतूस (गोलियाँ), एक नोकिया फोन और चाभियों का एक गुच्छा बरामद होने की बात है। इसके बाद यह लिखा गया कि इस व्यक्ति को घोंडा चौक से बाबू राम चौक की तरफ जाने वाली सड़क से घायल अवस्था में अस्पताल में दाखिल कराया गया। नितेश की खोज की गई तो वो मिला नहीं, न ही उसके द्वारा लिखवाया गया पता सही पाया गया।
तीन तरीके, दो जगहें, साहिल परवेज के अलग-अलग बयान
दफनाने से पहले टीवी पर दिया गया बयान
ये सबसे पहली FIR है। जिसमें डॉक्टर ने लिखा है कि मौत का कारण गोली लगना है। इस घटना के बाद, एक टीवी चैनल से बात करते हुए, परवेज के बेटे साहिल परवेज ने पिता को दफनाने से पहले मरने की जगह और कारण बताते हुए जो कहा, वो उनके द्वारा की गई दो FIR बयानों से अलग है। रिपोर्टर से बात करते हुए साहिल ने बताया कि 24 फरवरी को दंगे हुए, लेकिन 25 की सुबह को दोनों मजहब के लोग आपस में मिले और माफी माँगी कि सबको यहीं रहना है फिर झगड़ा क्यों?
आगे साहिल बताते हैं कि उनके पिता मुख्य सड़क से 50 फीट भीतर गली में खड़े थे कि तभी अफरा-तफरी मची। उसी वक्त उनके पिता परवेज घर की सीढ़ियों की तरफ मुड़े और उनकी दाहिनी तरफ फेफड़ों में गोली लगी। मुँह के बल गिरे, खून बहने लगा। फिर साहिल के अनुसार उसने अपने पिता को जीटीबी अस्पताल में दाखिल करवाया, जहाँ बाद में उन्हें बताया गया कि उनकी मौत हो गई है। वीडियो आप नीचे देख सकते हैं:
19 मार्च का पुलिस को साहिल परवेज का लिखा आवेदन पत्र
साहिल ने इसके बाद 19 मार्च 2020 को एक आवेदन पत्र लिखा जो कि भजनपुरा पुलिस स्टेशन के SHO के नाम था और उसकी प्रतियाँ भारत के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, दिल्ली के उपराज्यपाल, मानवाधिकार आयोग, दिल्ली पुलिस कमिश्नर समेत आठ लोगों/संस्थाओं के लिए संलग्न थीं। हर पन्ने पर साहिल के अँगूठे की छाप है।
इस पत्र में साहिल ने जो लिखा है, वो उसके टीवी पर दिए बयान से बिलकुल अलग है। न सिर्फ इस बयान में जगह बदल गया है, बल्कि हत्या की बात में पहचान के साथ सोलह लोगों के नाम बताए गए हैं। इस पत्र में साहिल ने कहा कि उसके पिता और वो, शाम के 7 बजे नमाज पढ़ने निकले और पिछले दिन से ही जो आरोपित उन्हें धमका रहे थे, उन्होंने डंडे, तलवार और बंदूकों से हमला किया। परवेज की हत्या हो गई।
साहिल ने इस पत्र में पुलिस पर भी आरोप लगाया है कि पुलिस ने उन्हें भला-बुरा कहा और मजहबी गालियों से अपमानित भी किया। साथ ही, साहिल ने यहाँ तक कहा कि ड्यूटी पर तैनात पुलिस अफसर ‘हमारे लोगों को मरवा’ रहे हैं। ‘हमारे लोगों’ से तात्पर्य समुदाय विशेष से है। इसके बाद, साहिल ने सुशील जाट का नाम लिखवाते हुए कहा कि उसने पुलिस के सामने ही साहिल को गालियाँ भी दीं।
अगले दिन इसी सुशील जाट और देवेश नाम के दो व्यक्तियों पर (उनके बाकी साथियों के साथ) परवेज की हत्या का आरोप लगाया गया। हत्या के बाद, इस पत्र में साहिल लिखते हैं कि उन्होंने अपने पिता को स्कूटी पर बिठाया और जीटीबी हॉस्पिटल ले गए, जहाँ पुलिस की मौजूदगी में, उन्होंने डॉक्टर को अपना आधार कार्ड आदि दिखाया। वहाँ भी सुशील द्वारा पिता की हत्या की बात करने पर, साहिल के अनुसार, पुलिस ने साहिल को धमकी दी कि ‘ज्यादा बकवास करोगे तो ऐसा हाल करेंगे कि जिंदगी भर याद करोगे’।
यहाँ साहिल यह भी लिखता है कि उसे बाद में पता चला कि पुलिस ने उसका नाम और पता गलत लिखवा दिया और बताया कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है। साथ ही, साहिल के परिवार को और उसे क्राइम ब्रांच ही धमकी दे रहा था, ऐसा पत्र में लिखा गया है। पत्र में यह भी लिखा गया है कि सुशील और सोनू नामक लड़कों ने उसे रास्ते में कई बार धमकाया कि अगर उसने मुँह खोला, तो उसे भी मार दिया जाएगा क्योंकि ‘पूरा पुलिस डिपार्टमेंट उनके साथ है’।
3 अप्रैल को पुलिस द्वारा दर्ज किया गया बयान
3 अप्रैल 2020 को साहिल परवेज के बयान को पुलिस ने लिखा है। साहिल ने इतने लम्बे समय के अंतराल के कारण का जिक्र करते हुए लिखा कि पिता की मौत के सदमे, डर और अपनी माताजी की बीमारी के कारण उसे बयान दर्ज करवाने में देरी हुई क्योंकि उसका ज्यादातर समय उसके पैतृक गाँव ‘खुड्डा’ में ही बीता।
यहाँ पर साहिल ने हत्या की जगह उसी सड़क पर बताई है जो कि उसके घर से थोड़ी ही दूरी पर है। यह सड़क बाबू राम चौक की तरफ जाती है। हत्या के बाद का तरीका यहाँ बदल गया है। यहाँ हत्यारा सुशील ही है, और उसके साथी दंगाइयों को भी साहिल ने नामित किया है, लेकिन यहाँ पर भीड़ ने परवेज पर गोलियाँ चलाई, और यह कहा कि यही सारे फसाद की जड़ है।
उसके बाद, जहाँ 19 मार्च के पत्र में साहिल अपने पिता को गोली लगते ही, दूर जान बचाने के लिए छुप जाता है, और बाद में पिता को घसीट कर घर लाया, स्कूटी पर बिठा कर अस्पताल ले गया, वहीं 3 अप्रैल के बयान में उसने मोटरसायकिल से, अपने किराएदारों की मदद से अस्पताल जाने की बात की है। आगे, वह अपने मित्र शाहरुख की स्कूटी का इस्तेमाल करने की बात करता है और बताता है कि गलती से उसके नाम की जगह किसी नितेश का नाम दर्ज है, और पता भी कोई और है।
मैंने जब उस इलाके में पूछताछ की तो उक्त पते पर कोई नितेश नहीं मिला। यही बात सबसे पहली प्राथमिकी में ASI राकेश ने भी लिखा है। इसका एक कारण यह हो सकता है कि दंगे के समय लोग पुलिस-कानून से बचने के लिए कुछ भी नाम लिखवा देते हैं। दूसरा कारण, साहिल ने एक जगह यह बताया कि पुलिस ने ही जानबूझकर गलत नाम और पता लिखवाया। दूसरी जगह, साहिल ने यह लिखा है कि शाहरुख ने नाम लिखवाया लेकिन वो गलत लिख दिया गया।
तीन तरीके से लाए गए परवेज, कौन-सा सही?
बात यह है कि परवेज की हत्या हुई, यह एक सत्य है। लेकिन पुत्र साहिल ने तीन जगह अलग-अलग बातें बोली हैं कि उसके पिता को अस्पताल ले कर कौन गया, किसने नाम लिखवाया और यह भी कि हत्या वास्तव में कहाँ हुई? घर के सामने पर परवेज को गोली मारी गई, यह हत्या के अगले दिन की ही बात है जो टीवी पर होशो-हवास में साहिल कह रहा है।
करीब 20 दिन बाद के आवेदन में उसने सारा आरोप सुशील और पुलिस की मिलीभगत पर डाला है और स्वयं ही पिता को स्कूटी पर अस्पताल ले जाने की बात करता है। उसके 14 दिन बाद के बयान में पिता को गली से लाने, और फिर अपने मोटरसायकिल से ले जाने, और शाहरुख नामक मित्र द्वारा दाखिल कराने की बात कहता है।
आखिर, एक दिन बाद के बयान में, जहाँ हत्या घर के सामने हुई है, और बीस दिन बाद के बयान में आरोपितों को नाम से पहचानने, उन्हें पिछली शाम भी दंगों के दौरान देखने, और धमकी देने की बात कहने वाले साहिल ने टीवी पर दिए बयान में इन लोगों का जिक्र क्यों नहीं किया?
क्या कहते हैं आरोपितों के परिजन और दंगों के चश्मदीद
चश्मदीदों के अनुसार (आरोपितों के परिजन विक्रान्त त्यागी, शशि मिश्रा, चंद्रप्रकाश माहेश्वरी, निशा, श्रीमती चावला) मोहनपुरी इलाके में जो भी होना था, वो सब 24 फरवरी को हो चुका था। मजहबी भीड़ ने ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे लगाते हुए त्यागी परिवार के घर में पेट्रोल बम फेंके, मोटरसायकिल को आग लगा दी, और गेट को तोड़ने की कोशिश की।
मुख्य सड़क पर 16 आरोपितों में से कइयों के दुकान आदि थे, जिन्हें बुरी तरह से तोड़ा गया, आग लगाई गई। लोगों में डर इतना ज्यादा था कि घरों में दुबके ये लोग ईश्वर से अपने बचने की प्रार्थना कर रहे थे और लगातार पुलिस को कॉल कर रहे थे। पुलिस ने बार-बार दिलासा दिया कि पुलिसकर्मी सीनियरों से बात करने के बाद भेजे जाएँगे। परिजनों के पास 100 नंबर पर कॉल के बाद जो रेफरेंस नंबर मिलता है, वो मौजूद थे, जो क्रमशः 919744, 919838, 920064 हैं जो कि 24 फरवरी की रात 7:50, 7:56, और 8:18 मिनट के हैं।
ख़ैर, यह सब उस समय तक खत्म हो चुका था। इसके बाद सीधे 8 अप्रैल 2020 को 16 आरोपितों को पुलिस ने नोटिस भेज कर द्वारका स्थित क्राइम ब्रांच में पूछताछ के लिए बुलाया। इसके बाद, फिर अगले दिन भी इन्हें बुलाया और, चूँकि इन्होंने कुछ अपराध किया नहीं था, तो ये पुलिस के साथ जाँच में सहयोग देने की इच्छा से अपनी गाड़ियों में वहाँ गए। परिजन बताते हैं कि वहाँ से रात को फोन आया कि सारे लोग गिरफ्तार हो गए हैं। तब से आज तक परिजनों को न तो मिलने दिया गया, न बातचीत हुई।
चश्मदीदों ने बताया कि अगले दिन इलाका शांत था और कोई भी दुर्घटना नहीं हुई। परवेज की हत्या की खबर भी इन्हें तब ही मिली जब इन्हें नोटिस दे कर पुलिस ने बुलाया। मतलब, 25 फरवरी को सारे लोग अपने-अपने घरों में किसी भी अनहोनी से बचने और डर के कारण घरों में बंद थे। पुलिस ने इसी बात को आधार बनाते हुए कि इन सबके मोबाइल फोन के लोकेशन, घटना के दिन 500 मीटर के दायरे में बता रहे थे, कह कर गिरफ्तार किया। जबकि, इसके अलावा पुलिस ने कोई भी दूसरा साक्ष्य अपने पास होने की बात नहीं की है।
सुशील के साथ देवेश का नाम
अब, इस मोड़ पर FIR में नामित एक व्यक्ति जिसने कथित तौर पर न सिर्फ घायल परवेज को लात मारी, बल्कि उसकी जेब से कुछ लूट भी लिया, उस देवेश को पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया। क्यों? क्योंकि उनके फोन की लोकेशन उस समय मोहनपुरी में नहीं मिली। हमने देवेश से बात की तो उन्होंने बताया कि वो अपनी पुत्रवधु को लाने इटावा गए हुए थे। उन्होंने अपने गाड़ी द्वारा टोल के भुगतान की रसीद हमें दिखाई जो 23 फरवरी के जाने और 27 फरवरी के आने की है।
एक और बात पर चश्मदीदों ने हमारा ध्यानाकर्षण किया कि 24 फरवरी के दंगों के दौरान लगभग सारी स्ट्रीट लाइट्स तोड़ी जा चुकी थीं, और इलाके में अंधेरा था। सर्दियों में अंधेरा जल्दी होता है और जिस समय परवेज की हत्या हुई, उस समय तक तो काफी अंधेरा हो चुका था। ऐसे में, हत्या के अगले दिन सीढ़ियों पर मुँह के बल गिरे पिता की लाश को सँभालने वाला साहिल, इस अंधेरे में पिता के हत्यारों को 19 मार्च और 3 अप्रैल को, घर से पचास फीट दूर सड़क पर देखता है, उसके कपड़े का रंग बताता है, और यह भी कि कुल 16 लोगों को वह याद कर पाया।
नमाज पढ़ने जाते पिता की जेब में गोलियाँ और रिवॉल्वर?
इसमें देवेश ने कथित तौर पर उसकी पिता के शरीर पर लात मारा और जेब से सामान निकाल लिया। आगे, बिना यह बताए कि देवेश ने क्या निकाला, साहिल बयान देता है कि उसके पिता की लाइसेंसशुदा रिवॉल्वर गायब है, मिली नहीं। जिस तरह से साहिल ने हत्या की जगह पुलिस के द्वारा दर्ज 26 फरवरी की FIR से बाद में मिला लिया, उसी तरह जेब में 13 गोलियों के होने की बात को, इस रिवॉल्वर के गायब होने से जोड़ कर देखा जाना चाहिए।
साहिल ने दो बार बताया कि हत्या के समय वो अपने पिता के साथ नमाज पढ़ने जा रहा था। साहिल ने इनमें से एक बयान में रिवॉल्वर के गायब होने की बात की है। पुलिस ने लाश की जेब से तेरह जिंदा कारतूस के होने की बात अपनी प्राथमिकी में दर्ज की है। अब साहिल को यह बताना चाहिए कि क्या मस्जिद में नमाज पढ़ने जाते हुए गोली और पिस्तौल रखना किस हिसाब से सही है?
अगर उसके पिता कंबल बाँटा करते थे, बच्चों को पढ़ने में आर्थिक मदद देते थे, तो उनकी जेब में दंगों के अगले दिन (जब इलाका शांत हो चुका था), इतनी सारी गोलियाँ क्यों थी? हत्या के दूसरे दिन, बहुत ही आराम से पुलिस से अपील करने वाला नवयुवक, बिल्कुल अच्छे से यह बताने वाला नवयुवक की पिता वस्तुतः कहाँ खड़े थे, गली की सड़क से मेन रोड की दूरी कितनी फीट थी, उन्हें गोली कब लगी, किस तरफ मुड़ रहे थे, किस जगह पर और कैसे लगी… बीस दिन बाद पुलिस की FIR में दर्ज जगह को अपने बयान में क्यों ले आता है?
उसके बाद, पुलिस को बहुत ही स्पष्ट शब्दों में धमकाने, गाली देने, सुशील के साथ मिले होने की बात लिखने वाला नवयुवक, इसके 14 दिन बाद उसी ‘ड्यूटी पर हमारे लोगों को मार रही है’ वाली पुलिस को अपने बयान से गायब क्यों कर देता है? इस बयान में उसे ‘यही फसाद की जड़ है’ की याद आती है, शाहरुख की स्कूटी है, और यहाँ पुलिस ने शाहरूख का नाम नितेश नहीं लिखावाया (जैसा कि पहले आवेदन पत्र में है) बल्कि वो गलती से लिख दिया गया!
कौन हैं ये 16 लोग?
साहिल ने अपने 3 अप्रैल वाले बयान में कुल 16 लोगों पर आरोप लगाए हैं: सुशील, जयबीर, सुप्रीम, पवन, अतुल चौहान, वीरेन्द्र चौहान, सुरेश पंडित, अमित, नरेश त्यागी, उत्तम त्यागी, दीपांशु, राजपाल त्यागी, अखिल चौधरी, उत्तम मिश्रा, हरिओम मिश्रा, संदीप चावला। हत्या की वारदात 25 फरवरी को हुई, और इन सबको नोटिस 8 अप्रैल को मिले। उसके बाद इन्हें एक दिन द्वारका क्राइम ब्रांच में बुलाया गया और गिरफ्तारी हुई।
‘संघ और विहिप से जुड़े होने का कारण फँसाया गया’
इनके परिजनों में से कुछ लोगों से ऑपइंडिया ने बातचीत की तो पता चला कि पुलिस ने गिरफ्तारी की सूचना देने के बाद इन्हें परिजनों से किसी भी तरह से संपर्क करने की अनुमति नहीं दी है। इन सारे लोगों में एक ही समानता है कि अधिकतर लोग हिन्दू धर्म से जुड़ी संस्थाओं (राष्ट्रीय स्वयंसेवक, विश्व हिन्दू परिषद आदि) से जुड़े हुए थे और अपने-अपने परिवारों के कमाने वाले अकेले सदस्य थे।
सुप्रीम के पिता चंद्रप्रकाश माहेश्वरी ने हमसे बात करते हुए कहा, “हमें सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि हम हिन्दू हैं और धार्मिक विचारधारा को ले कर अपना कार्य करते हैं। हमने कभी किसी दूसरे का अहित नहीं किया है। सारे लोग छोटे व्यापारी हैं, या अपना कुछ कार्य करते हैं। एक तय तरीके से हमारे परिवारों को तोड़ने की साजिश है ये।”
“हम कहाँ किसी को मारेंगे! जिस तरह से एक मजहबी भीड़ दंगा कर रही थी, हम तो तीन दिन तक घर से बाहर निकलना तो छोड़िए डर से देखा तक नहीं। 38 सालों से यहाँ हूँ। कभी नहीं सोचा था कि ये दिन भी देखना पड़ेगा। मेरा लड़का मेरे साथ दुकान पर हाथ बँटाता था, उसका नाम डाल दिया FIR में! एक दिन बुलाया और अगले दिन अरेस्ट कर लिया! मिलने की तो छोड़िए, बात तक नहीं करने दे रहे। हम करें तो क्या करें!”
उत्तम मिश्रा की 19-वर्षीय बच्ची क्षमा सदमे से चल बसी!
शशि मिश्रा, जो कि उत्तम मिश्रा की पत्नी हैं, उन्होंने रोते हुए हमसे अपनी व्यथा बताई, “मेरी छोटी सी दुकान है, पति के साथ दुकान भी चलाती थी, घर भी देखती थी। बच्चों को भी देखती हूँ। मेरी 19 साल की जवान बच्ची चली गई। मेरी बिटिया… क्षमा मिश्रा… हँसती-खेलती बच्ची इस सदमे से ऐसी बीमार हुई कि किसी दवा ने काम नहीं किया। पापा-पापा ही कहती गई। वो यही कहती थी कि पापा घर आ जाएँ, वो ठीक हो जाएगी। दुकान जला दी गई, वो बहुत डरी हुई थी।”
“हमने कभी सोचा नहीं था कि ये लोग हम पर हमला करेंगे, दुकानों को आग लगाएँगे। हम तो भाईचारा समझते रहे। हमारे साथ ऐसा होगा ये कभी सोचा ही नहीं। अस्थियाँ रखी हैं मेरी बच्ची की, एक महीने हो गए। इस बात पर भी बेल नहीं मिली। छः घंटे दे रहे हैं हमें… आप ही बताइए कि कोई छः घंटे में हरिद्वार जा कर, विधि-विधान से अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित कर के, पूजा आदि करने के बाद इतने कम समय में कैसे लौट आएगा? मैंने अकेले अपनी बेटी का दाह संस्कार किया…”
500 मीटर के दायरे में मोबाइल, दंगों के बाद से डरे लोग
इतना कहने के बाद शशि जी की स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं उनसे कुछ भी पूछ पाता। एक माँ है जो अपने बच्चों को पढ़ा रही है, पाल रही है, पिता को पुलिस ले जाती है क्योंकि उनका मोबाइल उस वक्त घटना के 500 मीटर के दायरे में था। विक्रान्त त्यागी, जिनके दो चाचा गिरफ्तार हैं, हमसे कहने लगे, “500 मीटर के दायरे में तो हजारों लोग रहते हैं, क्या सिर्फ इसी को आधार बना कर किसी को जेल में डाल दिया जाएगा!”
“चार्जशीट में पुलिस कहती है कि उनके पास मोबाइल फोन के लोकेशन के अलावा और कोई सबूत नहीं हैं। ये चार्जशीट ऐसा है कि कोई लॉ इंटर्न भी कोर्ट में जाएगा तो बेल मिल जाएगी। कोरोना के कारण सेशन जज के न होने के कारण हमें कई परेशानियाँ हो रही हैं, हमारे घरों को इस कारण टार्गेट किया गया क्योंकि हम संघ से जुड़े हैं और हर घर से कमाने वाला बस एक वही व्यक्ति है अधिकांश मामले में।”
विक्रान्त ने आगे बताया कि भीड़ को यह पता नहीं था कि उनका परिवार घर पर नहीं है। वहाँ उनकी चाची और बहन ही थीं। बाकी लोग सगाई और शादी के दो अलग समारोह में अलग-अलग जगहों पर थे। यहाँ जब दंगे हुए तो इनके घर के गेट को तोड़ने की कोशिश हुई, बाहर से मोटरसायकिल से पेट्रोल निकाल कर उसमें आग लगा दी गई, और एक पेट्रोल बम भीतर फेंक दिया गया। उन्होंने हमें वीडियो दिखाए जिसमें यह सब साफ दिख रहा था।
डर का आलम यह है कि कई लोगों ने अब दुकान ही नहीं, अपने घरों में भी सीसीटीवी कैमरे और मॉनिटर लगवा रखा है जो बाहर की गली और मुख्य सड़क पर देख रहे होते हैं। ऐसा अपने बचाव के लिए उन्होंने किया है ताकि कल कोई भीड़ दोबारा उनके घरों पर हमला करने आए, तो वो जान बचा कर सुरक्षित भाग सकें।
हत्या के मुख्य आरोपित सुशील की बहन निशा का बयान
सुशील पर परवेज ने अपने पिता को गोली मारने का आरोप लगाया है। जबकि उनकी बहन निशा का कहना है कि सिर्फ फोन के उस दायरे में होने से उसका अपराध साबित नहीं होता। उन्होंने कहा, “बिना किसी सही सूचना के उसे पुलिस ने बुलाया और उधर ही बंद कर दिया। जब हमारा घर गली नंबर छः में है तो अपने घर से बंदा कहाँ जाएगा? उन्होंने हमारी गली में पेट्रोल बम फेंके, गोलियाँ चलाईं। बिलकुल अंधेरा, आग की लपटें दिख रही थीं।”
“सुशील मेरे बुजुर्ग पिताजी के साथ भैंस पालते हैं और दूध का कारोबार है। घर में बस एक कमाने वाला। अपने बड़े भाई के परिवार को भी वही देखते थे। बड़े भाई कुछ समय पहले चल बसे। घर में कोई भी ऐसा नहीं जो हमारा ख्याल रखे, सब बंद है। जिस व्यक्ति पर इतनी ज़िम्मेदारियाँ हैं, वो क्या मर्डर करता फिरेगा?”
जेवर बेच कर चला रही हूँ परिवार: संदीप जी की पत्नी
संदीप चावला की पत्नी ने बात करते हुए, बाकी लोगों की ही तरह, साहिल परवेज के बदलते बयानों पर ध्यान दिलाया, “परवेज के जो बेटे हैं साहिल परवेज… वो एक-एक मिनट में बयान बदलते फिर रहे हैं। शाम का समय था, स्ट्रीट लाइट सारी टूट चुकी थी, अंधेरा हो चुका था। ऐसे में संभव ही नहीं कि कोई लोगों को देख ले। इतनी दूर से गोलियों के चलने पर, कोई कैसे पहचान लेगा। बिना बात के सोलह लोग फँसा दिए। कल तीन महीने पूरे हो जाएँगे। कोई फोन नहीं, मिलने नहीं दे रहे।”
“प्राइवेट जॉब करते हैं। कोरोना में वैसे ही परेशानी थी, और इनको जेल में डाल दिया। तीन बच्चे हैं, पढ़ाई कर रहे हैं। स्कूलों की फीस तो जा ही रही है। ये सब कहाँ से आएगा? आदमी ही नहीं है, तो पैसे कहाँ से आएँगे। मैं अपने गहने बेच कर किसी तरह गुजारा कर रही हूँ। लोकेशन के नाम पर फँसा दिया है। 15-20 साल से यहाँ रह रहे हैं। दंगे होंगे तो आदमी घर में रहेगा। तो फोन की लोकेशन से क्या होता है? वो तो वहीं का ही दिखाएगा। अब कोई वहाँ किसी को मार दे तो हमें फँसा देंगे?”
पुलिस ने क्या किया है अब तक?
विक्रान्त त्यागी ने अपने लैपटॉप पर हमें अपने और बाकी आरोपितों के दुकानों के सीसीटीवी फुटेज दिखाए जिसमें एक मजहबी भीड़ जिसका नेतृत्व हाजी इस्लाम नामक व्यक्ति करता दिख रहा था, वो लोगों के दुकान तोड़ रही थी, आग लगाई जा रही थी, धड़ल्ले से गोलियाँ चलाई जा रही थी।
बातचीत के दौरान चंद्रप्रकाश माहेश्वरी ने हमें सीसीटीवी के कुछ स्क्रीनशॉट्स के प्रिंटआउट दिखाए जिन पर हर व्यक्ति का नाम आदि लिखा हुआ था। मुझे आश्चर्य हुआ कि एक प्राइवेट व्यक्ति, इतनी गहन छानबीन क्यों कर रहा है?
“हमारे पास और कोई चारा ही नहीं। पुलिस सुन ही नहीं रही। तब हमने अपने-अपने सीसीटीवी के फुटेज देखे, वहाँ से लोगों को पहचाना और फिर एक फाइल बनाई। इसके साथ ही, हमने वीडियो भी इकट्ठा किए। सबको एक पेन ड्राइव में डाल कर जाफराबाद पुलिस स्टेशन को दिया। उन्होंने तो हमारी FIR तक नहीं लिखी। हमारे पास बस एक शिकायत की रिसीविंग है, FIR नहीं हुई, न कोई जाँच।”
बकौल विक्रान्त, “पुलिस से जब हमने कहा कि 24 फरवरी के दंगों को देखिए, हम आपको नाम पता सब दे रहे हैं। सारे साक्ष्य दिए कि कौन, कब, क्या कर रहा था। पुलिस ने सीधा कहा कि उन्हें 24 से मतलब ही नहीं क्योंकि हत्या तो 25 को हुई है। एक तरफ बार-बार बयान बदलने वाले लड़के की बात मानी जा रही है, और हम यहाँ सबूत दे रहे हैं तो हमारी सुनी ही नहीं जा रही।”
आगे की क्या है योजना?
परिजनों ने सीधा कहा कि उनमें से बहुतों को कानून की कोई जानकारी नहीं। वकील की व्यवस्था तो है लेकिन कोरोना के कारण कोर्ट भी उस तरीके से काम नहीं कर रहे कि जल्द सुनवाई हो। सारे लोग एक दूसरे का ढाढ़स बँधाते रहे कि भगवान जो भी करेगा, अच्छा ही करेगा क्योंकि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है।
जिस समय मैं त्यागी परिवार की बैठक में लोगों से बात कर रहा था, उसी समय उनके वकील इसी मामले पर लोगों के बेल के लिए कार्य कर रहे थे। जिस तरह से एक फोन लोकेशन जैसी कमजोर कड़ी को आधार बना कर क्राइम ब्रांच ने इन 16 लोगों को पूछताछ के लिए बुला कर गिरफ्तार कर लिया है, ऐसा लगता तो नहीं कि न्यायिक प्रक्रिया में यह दलील किसी भी कोर्ट में ठहर पाएगी।
इस आशा के साथ कि साहिल परवेज के पिता परवेज आलम का असली हत्यारा पकड़ा जाए और निर्दोष लोग छूटें, न्याय अपना कार्य अवश्य करेगा। इस देश में आतंकवादियों के लिए 22 साल के ट्रायल के बाद भी दो बजे रात में कोर्ट ने दरवाजे खोले हैं, यहाँ तो फिर भी निर्दोष लोग हैं जो इन हिन्दू-विरोधी दंगों के दौरान जान बचाने के लिए घरों में बैठे थे, और उसी को आधार बना कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है।
फिर भी सोचने लायक बात यही है कि आखिर साहिल परवेज ने तीन बार में तीन अलग-अलग बातें क्यों बोलीं? उसके पिता की हत्या घर के गेट के पास हुई या फिर बाबू राम चौक पर? उसे अस्पताल ले जाने वाला नितेश कौन है? साहिल अपने पिता को स्कूटी पर ले गया था, या उसका दोस्त शाहरुख? 19 मार्च के आवेदन में पुलिस को हर तरह से हत्यारा और साज़िशकर्ता बताने वाले साहिल के 3 अप्रैल वाले बयान में वो एंगल गायब कैसे है? उसके पिता की जेब में 13 गोलियाँ क्यों थी? वो आत्मरक्षा के लिए थीं या फिर दूसरे की हत्या के लिए?
सवाल बहुत हैं, लेकिन साहिल परवेज, अपने नाम के विपरीत तथ्यों के बहाव को समेटने और सघन करने की जगह, किनारों से बाहर जाता दिखता है।