हाल ही में बंगाल के पाँच पद्म पुरस्कार विजेताओं में से एक मुस्लिम शिक्षक ने अपने जीवन को लेकर डर ज़ाहिर किया है। उन्होंने कहा कि बंगाल में मेरी किसी भी समय हत्या की जा सकती है, क्योंकि राजनीतिक तुष्टीकरण की नीति के कारण आरोपित खुले आम घूम रहे हैं।
हाल ही में मोदी सरकार ने बंगाल के पाँच लोगों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया है, जिसमें से बंगाल के काजी मासूम अख्तर को साहित्य व शिक्षा के लिए भारत के चौथे बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अख्तर ने कहा कि पद्म श्री मिलना एक नैतिक जीत है, लेकिन मैं आज भी अदालत में हमले का मुकदमा लड़ रहा हूँ और ममता बनर्जी की तृणमूल कॉन्ग्रेस सरकार की तुष्टिकरण की नीतियों के कारण मेरा उत्पीड़न करने वाले आरोपित स्वतंत्र रूप से घूम रहे हैं और यही कारण है कि मुझे न्याय नहीं मिल रहा है। इसीलिए मुझे अभी भी अपने जीवन को लेकर डर है और किसी भी दिन मेरी हत्या की जा सकती है, लेकिन मैं सच बोलना जारी रखूँगा।
अख्तर ने बंगाल और देश के कई हिस्सों में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों पर बोलते हुए कहा कि इसके बारे में भारतीय मुस्लिमों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि इस कानून को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया है। राज्यसभा में भाजपा के पास बहुमत नहीं था, तो गैर-भाजपा दलों ने उनका समर्थन किया, लेकिन वही पार्टियाँ अब अपने निहित राजनीतिक हितों के लिए सीएए के खिलाफ हो रहे विरोध को हवा दे रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि मुझे बहुत आश्चर्य होता है जब मैं उन्हीं लोगों को देखता हूँ, जिन्होंने मेरे छात्रों को राष्ट्रगान गाने के लिए कहने पर लाठी-डंडों से मारा, अब वही लोग राष्ट्रीय झंडे के साथ प्रदर्शन स्थलों पर बैठे हैं और वही राष्ट्रगान गा रहे हैं। यह एक मज़ाक है। अख्तर ने आरोप लगाते हुए कहा कि राजनीतिक दल मेरे समुदाय को पीछे धकेल रहे हैं और उनका उपयोग केवल राजनीतिक प्यादे के रूप में कर रहे हैं। उनका पूरी तरह से ब्रेनवॉश कर उन्हें सार्वजनिक संपत्ति को आग लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और फिर राष्ट्रगान गाने के लिए कहा जाता है।
द प्रिंट की खबर के मुताबिक 49 वर्षीय शिक्षक मासूम अख्तर द्वारा मदरसे के बच्चों को राष्ट्रगान गाने के लिए कहने को लेकर 26 मार्च 2015 को कुछ कट्टरपंथियों द्वारा लाठी और डंडों से हमला किया गया था, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन अस्पताल में भी उनके साथ फिर से मारपीट की गई और गँभीर रूप से घायल कर दिया गया। अख्तर का कहना है कि उन्होंने घटना के तुरंत बाद 26 मार्च 2015 को राजाबगान पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिस पर पुलिस द्वारा आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
अख्तर ने बताया कि पिछले पाँच वर्षों में मैंने अलीपुर अदालत में तीन याचिकाएँ दायर की हैं। अदालत ने जाँच अधिकारियों से मेरे मामले में कार्रवाई करने के लिए भी कहा, लेकिन पुलिस ने एक रिपोर्ट दर्ज की और कहा कि आरोपित व्यक्ति फरार थे। हालाँकि 10 जनवरी को अदालत ने दोषियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया था।
वैसे शिक्षक मासूम अख्तर कई बार कट्टरपंथियों के निशाने पर आए। 2018 में काजी मासूम अख्तर ने मुस्लिम महिलाओं के लिए ट्रिपल तलाक़ के खिलाफ एक लाख लोगों के हस्ताक्षर लेकर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा था, ताकि ट्रिपल तलाक़ कानून से हो रहे महिलाओं के ऊपर अत्याचार को रोका जाए, लेकिन दिल्ली से लौटने के बाद मुस्लिम कट्टरपँथी ने उनके और उनके पिता को यह कहते हुए जान से मारने की धमकी दे डाली कि आप शरिया के खिलाफ काम कर रहे हैं। इसके बाद आज तक मासूम अख्तर अपने घर नहीं जा सके।
इसके बाद अख्तर को मदरसे में प्रधानाध्यापक के पद से हाथ धोना पड़ा था। मुस्लिम मौलवियों के एक वर्ग ने उनके खिलाफ याचिका दायर की जिसमें कहा गया था कि वह छात्रों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे थे और राष्ट्रगान गाकर और ‘इस्लाम विरोधी’ अखबार और किताबें, गीत लिखकर धर्म का अपमान कर रहे थे। आपको बता दें कि अपने समुदाय से बहिष्कृत अख्तर अभी जादवपुर में एक सरकारी स्कूल के हेडमास्टर हैं। विडम्बना यह है कि वही ममता बनर्जी सरकार जिस पर वो हमलावरों की रक्षा करने का आरोप लगाते हैं उसने ही उन्हें 2017 में ‘सर्वश्रेष्ठ शिक्षक’ का पुरस्कार दिया था।