कलकत्ता उच्च न्यायालय (Calcutta High Court) ने अपने एक फैसले में कहा है कि किसी घटना को बलात्कार मानने के लिए पेनिट्रेशन (Penetration) जरूरी है। इस अधार पर अदालत ने दीपक सिंघा की सजा कम कर दी है। ट्रायल कोर्ट ने उसे 11 साल की बच्ची के साथ रेप का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। लेकिन, हाई कोर्ट ने पेनिट्रेशन नहीं होने के आधार पर उसे बलात्कार के प्रयास का दोषी माना।
कलकत्ता हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति बिवास पटनायक की पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ ने कहा है कि बलात्कार का दोषी ठहराए जाने के लिए यह जरूरी है कि पेनिट्रेशन हो, भले ही यह स्पर्श के ही स्तर पर हो। एमिकस क्यूरी ने भी पीठ को बताया कि न तो पीड़िता ने और न अन्य गवाहों ने इस मामले में पेनिट्रेशन की बात कही है। उल्लेखनीय है कि पेनिट्रेशन का मतलब लिंग और पीड़िता के निजी अंगों के स्पर्श से है। वहीं एमिकस क्यूरी ऐसे वकील को कहते हैं जिसको अदालत किसी मामले में फैसले लेने में खुद की मदद के लिए नियुक्त करती है।
क्या है मामला?
घटना 5 मई 2010 की है। 11 साल की बच्ची अपने घर में सोई हुई थी। उसके परिजन घर के बाहर थे। रात के करीब 11 बजे दीपक उसके घर में घुस गया। उसने बच्ची को दबोच लिया, उसे चूमा और उसकी पैंटी उतार बलात्कार की कोशिश की। बच्ची के चिल्लाने पर लोग जुट गए और दीपक भाग निकला। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने 2013 में दीपक को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(F) (12 साल से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया था। उसे दस साल की सश्रम कारावास और 10,000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी।
उसने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता ने भी माना है कि पेनेट्रेशन नहीं हुआ था। उसके साथ रेप का प्रयास किया गया था लेकिन उसके विरोध और लोगों के जुटने की वजह से आरोपित अपने इरादे में कामयाब नहीं हो पाया।
इससे पहले फरवरी 2022 में जस्टिस बिवास पटनायक और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सात साल की बच्ची के साथ बलात्कार के मामले में कहा था कि अपराध को साबित करने के लिए केवल पेनिट्रेशन पर्याप्त है। यह आवश्यक नहीं है कि पेनिट्रेशन इस तरह की प्रकृति का होना चाहिए कि इससे चोट लग जाए या हाइमन टूट जाए। पीठ ने इस मामले में दोषी की सजा बरकरार रखी थी।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने भी दी थी जमानत
पेनिट्रेशन के ही आधार पर जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने अपनी भतीजी से रेप की कोशिश के आरोपित फैयाज अहमद डार को जुलाई 2021 में जमानत दी थी। अदालत ने कहा था कि बगैर पेनिट्रेशन के आरोपित द्वारा अपने और पीड़िता के कपड़े उतारने को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376/51 के तहत बलात्कार नहीं माना जा सकता। उसे जमानत देते हुए इसे POCSO एक्ट की धारा 7/8 के तहत इसे यौन हमले का मामला बताया था।
तब जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव कुमार ने कहा था, “इस मामले में याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर पीड़िता के कपड़े उतार दिए थे। अपनी पैंट भी खोल ली थी। यह अपराध करने का प्रयास करने की तैयारी करने की एक कोशिश थी। लेकिन, इस निष्कर्ष पर पहुँचना मुश्किल है कि याचिकाकर्ता का इरादा बलात्कार करने का था या याचिकाकर्ता द्वारा किया गया कृत्य बलात्कार करने के प्रयास के समान है।”