केरल हाई कोर्ट ने कहा कि छोटे बच्चों को विरोध प्रदर्शनों और आंदोलनों में ले जाने वाले माता-पिता के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने साफ कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे माता-पिता के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए जो ऐसे विरोध प्रदर्शनों पर ध्यान आकर्षित करने के प्रयास में जानबूझकर छोटे बच्चों को विरोध प्रदर्शनों में शामिल करते हैं।
न्यायालय ने कहा, “यदि कानून लागू करने वाली संस्था को लगता है कि बच्चों को उनकी कम उम्र में विरोध, सत्याग्रह, धरना आदि के लिए ले जाया जा रहा है और यदि इरादा उनके विरोध की ओर ध्यान आकर्षित करने का है तो उन्हें कानून के अनुसार आगे बढ़ने का पूरा अधिकार है। 10 वर्ष से कम आयु के छोटे बच्चे को विरोध, धरना आदि का उद्देश्य पता नहीं हो सकता है।”
जज कुन्हिकृष्णन ने आगे कहा, “उन्हें बचपन में अपनी इच्छानुसार अपने दोस्तों के साथ खेलने दें या स्कूल जाने दें या गाने और नाचने दें। यदि माता-पिता बच्चे को इस तरह के विरोध, सत्याग्रह, धरना आदि के लिए ले जाकर ऐसा कोई भी जानबूझकर किया गया कार्य करते हैं तो कानून लागू करने वाली संस्था को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।”
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब छोटे बच्चों को विरोध प्रदर्शनों या धरनों के लिए ले जाया जाता है तो उन्हें अत्यधिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें भावनात्मक और शारीरिक क्षति पहुँचती है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अत्यधिक तापमान और बिना साफ-सफाई के भीड़-भाड़ वाली स्थितियों में रहने से बच्चे बीमार पड़ सकते हैं।
कोर्ट नेआगे कहा, “आंदोलन से बच्चे की नियमित दिनचर्या बाधित हो सकती है, जिसमें भोजन, नींद, खेल, शिक्षा आदि शामिल हैं। विरोध प्रदर्शन में हिंसा की आशंका होती है। अगर किसी बच्चे को वहाँ में ले जाया जाता है तो बच्चे को शारीरिक नुकसान होने का खतरा होता है। इसके अलावा, तेज आवाज, भीड़ और संघर्ष बच्चे को भावनात्मक आघात पहुँचा सकते हैं।”
कोर्ट ने 24 सितंबर 2024 को सुनाया है। फैसले की विस्तृत कॉपी अब सामने आई है। दरअसल, न्यायालय ने यह टिप्पणी एक तीन वर्षीय बच्चे के माता-पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। माता-पिता पर पुलिस ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2000 की धारा 23 (बच्चों के प्रति क्रूरता) के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया था।
याचिकाकर्ताओं पर अपने तीन वर्षीय बच्चे को लेकर तिरुवनंतपुरम में राज्य सचिवालय के बाहर भीषण गर्मी में प्रदर्शन करने का आरोप था। वे साल 2016 में एक अस्पताल द्वारा चिकित्सा लापरवाही के कारण अपने पहले बच्चे को खोने का विरोध कर रहे थे। उन्होंने सरकार से वित्तीय मदद की भी माँग थी।
अधिकारियों के अनुरोध के बावजूद माता-पिता ने विरोध जारी रखा था, जिसके कारण मामला दर्ज किया गया। याचिकाकर्ताओं ने बाद में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय ने माना कि बच्चे को खोने के सदमे ने माता-पिता को विरोध प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया।
इसको देखते हुए न्यायालय ने मामले को रद्द कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन करते समय अपने बच्चे की ‘जानबूझकर उपेक्षा‘ नहीं की थी। हालाँकि, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस फैसले को मिसाल नहीं माना जाना चाहिए और माता-पिता को छोटे बच्चों को विरोध प्रदर्शन में ले जाने के खिलाफ चेतावनी दी।
केरल हाई कोर्ट ने कहा कि इस तरह की हरकतों से कानून प्रवर्तन द्वारा सख्त कार्रवाई की जा सकती है। बता दें कि Suresh & anr v State of Kerala & anr मामले में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता पीवी वेणुगोपाल ने किया था। वहीं, सरकारी वकील संगीतराज एनआर राज्य की ओर से पेश हुए।