18 साल की मुस्लिम लड़की। 25 साल का हिंदू युवक। दोनों ने 15 जनवरी 2021 को दुराना गाँव के शिव मंदिर में हिंदू रीति-रिवाज से शादी की। फिर पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जोड़े ने अपनी जान को खतरा बताते हुए सुरक्षा की गुहार लगाई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी शादी को वैध नहीं माना।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार जोड़े ने सुरक्षा के लिए पहले पुलिस से गुहार लगाई थी। वहाँ से निराशा मिलने के बाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन जस्टिस अरुण कुमार त्यागी की पीठ ने उनकी शादी को वैध नहीं माना। अदालत ने कहा कि शादी से पहले महिला ने हिंदू धर्म स्वीकार नहीं किया था। लिहाजा हिंदू रिवाजों से एक मुस्लिम महिला और एक हिंदू पुरुष के बीच शादी मान्य नहीं होगी।
साथ ही अदालत ने कहा कि दोनों लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं। अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ता नंबर 1 (महिला) बालिग होने के नाते अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ, उसकी पसंद की जगह पर रहने की हकदार है और दोनों याचिकाकर्ता, विवाह की प्रकृति में लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के और उनके जीवन की सुरक्षा के लिए भी और स्वतंत्रता के हकदार होंगे।”
दोनों की सुरक्षा के लिए अंबाला के एसपी को कदम उठाने के निर्देश भी अदालत ने दिए। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान अदालत ने नंदकुमार और एक अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य: 2018 (2) आरसीआर (सिविल) 899 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का भी उल्लेख किया।
गौरतलब है कि पिछले महीने पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम नाबालिग की शादी को वैध ठहराया था। अदालत ने कहा था कि मुस्लिम लॉ माहवारी के बाद शादी को जायज मानता है। इस मामले में मुस्लिम महिला की आयु 17 साल और उससे विवाह करने वाले की उम्र 36 साल थी।
इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक विवाहित जोड़े की पुलिस सुरक्षा के लिए दायर याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने कहा था कि लड़की जन्म से मुस्लिम थी। उसने शादी से एक महीने पहले हिंदू धर्म अपनाया था। इस फैसले में अदालत ने कहा था कि धर्मांतरण केवल शादी के उद्देश्य से हुआ।