हाल फ़िलहाल में सामने आई तमाम ख़बरों से स्पष्ट है कि दिल्ली हरियाणा बॉर्डर पर जारी किसानों का विरोध प्रदर्शन ‘शाहीन बाग़’ बनने की राह पर है। चाहे वह कट्टरपंथियों की तस्वीरें लेकर उनकी रिहाई की माँग करना हो या प्रदर्शनकारियों द्वारा मीडियाकर्मियों पर हमला की कोशिश हो। इसी कड़ी में एक प्रदर्शनकारी किसान की मौत की ख़बर सामने आई है, उसकी मौत की वजह ठंड बताई जा रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ मृतक प्रदर्शनकारी के तीन बच्चे भी थे। इसके पहले किसानों के धरने में शामिल संत राम सिंह ने खुद को कथित तौर पर गोली मार ली थी, जिससे उनकी मौत हो गई थी। बाबा राम सिंह मूल रूप से करनाल के रहने वाले थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने पंजाबी में लिखा एक सुसाइड नोट भी छोड़ा था। बताया जा रहा था कि संत राम सिंह दिल्ली बॉर्डर पर किसानों को कंबल बाँटने गए थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ नवंबर अंत से शुरू हुए किसानों के विरोध प्रदर्शन में अब तक लगभग 20 किसानों की मृत्यु हो चुकी है। बीते दिन (16 दिसंबर 2020) कृषि कानून के ख़िलाफ चल रहे किसान आंदोलन से भी मीडिया पर हमले की तस्वीर सामने आई थी। इस बार हमला रिपब्लिक भारत की पत्रकार शाजिया निसार और जी न्यूज की एक महिला पत्रकार पर हुआ था। रोजी नाम की वकील ने शाजिया पर और जी न्यूज की महिला रिपोर्टर पर हुए हमले की वीडियो को शेयर करते हुए घटना को शर्मनाक बताया था। उन्होंने कहा था कि जैसे शाहीन बाग में किया गया था वैसा ही किसान आंदोलन में हो रहा है।
ठीक इसी तरह सीएए और एनआरसी के खिलाफ़ हुए प्रदर्शन के दौरान कई बच्चों की मौत हुई थी। इसमें सबसे ज़्यादा उल्लेखनीय थी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की घटना, जिसमें 43 दिन की दुधमुँही बच्ची की मृत्यु हो गई थी। जिले के देवबंद स्थित ईदगाह में सीएए और एनआरसी विरोधी प्रदर्शन जारी था जहाँ इस बच्ची की मृत्यु हुई थी, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस दुधमुॅंही बच्ची को लेकर उसकी मॉं रोज प्रदर्शन में शामिल हो रही थी। इस तरह की कई घटनाएँ हुई थीं जिनमें बच्चों के अलावा कई निर्दोष लोगों की इस प्रदर्शन से पनपी अव्यवस्था के चलते मृत्यु हुई थी।
और तो और तमाम कट्टरपंथी इस तरह की मौतों को कुर्बानी बता कर प्रलाप कर रहे थे, साथ ही इन मौतों की आड़ लेकर प्रदर्शन को को बढ़ावा दे रहे थे। ठीक ऐसा ही किसानों के विरोध प्रदर्शन में भी हो रहा है, यहाँ तक कि आंदोलन की आड़ में अपनी नफ़रत का नमूना पेश करते हुए छोटे बच्चों से नारे लगवाए जा रहे हैं। देश के संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए सार्वजनिक रूप से जहर उगलवाया जाता है। जैसे शाहीन बाग में हो रहा था।