Sunday, December 22, 2024
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अल्लाह के सिवाय इबादत लायक कोई नहीं: तिरंगे पर लिखवाई कुरान की आयतें, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना झंडे का अपमान, चलता रहेगा 6 मुस्लिमों पर केस

सरकारी वकील ने कहा, "जब शहर काजी मौलाना साबिर अली को जालौन तलब कर पढ़वाया गया तो उन्होंने कहा कि इसमें अरबी में ला इलाही इलिल्लाह मुहम्मद उल रसूल अल्लाह लिखा था, जिसका अर्थ है- अल्लाह के सिवाय कोई इबादत करने लायक नहीं है।" इसके अलावा, मुस्लिमों के पैगंबर मुहम्मद के नवाजे अली की तलवार 'जुल्फकार' से संबंधित आयत लिखी हुई थी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भारतीय झंडा तिरंगा का अपमान करने के मामले में 6 मुस्लिमों के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने से इनकार कर दिया है। ये सभी आरोपित एक धार्मिक जुलूस में अपने हाथों में तिरंगा लेकर चल रहे थे। इन तिरंगे पर इस्लामी किताब कुरान की आयतें एवं कलमा लिखा हुआ था।

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस विनोद दिवाकर ने कहा कि प्रथम दृष्ट्या आरोपित द्वारा किया गया कृत्य भारतीय ध्वज संहिता 2002 के तहत दंडनीय है। जस्टिस दिवाकर ने आगे कहा कि आवेदकों द्वारा राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम 1971 की धारा 2 का उल्लंघन किया गया है।

अदालत ने कहा कि भारतीय ध्वज तिरंगा धार्मिक नैतिकता और सांस्कृतिक मतभेदों से परे राष्ट्र की एकता और विविधता का प्रतीक है। अदालत ने कहा, “यह भारत की सामूहिक पहचान और संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करने वाला एक एकीकृत प्रतीक है। तिरंगे के प्रति अनादर का कृत्य दूरगामी सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव डाल सकता है, विशेष रूप से भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में।”

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि तिरंगा पर कुरान की आयतें एवं कलमा आदि लिखने की घटनाओं का फायदा वे लोग उठा सकते हैं जो सांप्रदायिक विवाद पैदा करना चाहते हैं या विभिन्न समुदायों के बीच गलतफहमियों को बढ़ावा देना चाहते हैं। इसलिए कुछ व्यक्तियों के कार्यों का उपयोग पूरे समुदाय को कलंकित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

दरअसल, उत्तर प्रदेश की जालौन पुलिस ने पिछले साल आरोपित गुलामुद्दीन एवं 5 अन्य लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम 1971 अधिनियम की धारा 2 के तहत मामला दर्ज किया था। इस मामले में आरोपितों ने जमानत की माँग करते हुए अदालत का रुख किया था। उनके वकील ने तर्क दिया कि जाँच से यह पता नहीं चला कि FIR में उल्लेखित झंडा तिरंगा है या तीन रंगों वाला कोई अन्य झंडा।

आरोपितों के वकील ने आगे तर्क दिया कि पुलिस रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं ला सकी, जिससे यह पता चले कि अधिनियम की धारा 2 और 3 में निर्दिष्ट राष्ट्रीय ध्वज के साथ कोई शरारत की गई थी। वकील ने यह भी कहा कि पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने के बाद राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को प्लांट किया था और आरोपितों को झूठे मामले में फँसाया गया था।

वहीं, राज्य सरकार की ओर से पेश एडिशनल गवर्नमेंट एडवोकेट (AGA) ने कहा कि जूलुस के दौरान तिरंगा लगाया गया था। इस दौरान देखा गया कि तिरंगे पर अरबी में कुछ लिखा हुआ है। बात में पता चला कि ये आयत और कलमा हैं। इस मामले में पुलिस कॉन्स्टेबल खुर्शीद आलम, एशानुल्लाह और रामदास ने कोर्ट में अपना बयान दर्ज कराया है।

सरकारी वकील ने कहा, “जब शहर काजी मौलाना साबिर अली को जालौन तलब कर पढ़वाया गया तो उन्होंने कहा कि इसमें अरबी में ला इलाही इलिल्लाह मुहम्मद उल रसूल अल्लाह लिखा था, जिसका अर्थ है- अल्लाह के सिवाय कोई इबादत करने लायक नहीं है।” इसके अलावा, मुस्लिमों के पैगंबर मुहम्मद के नवाजे अली की तलवार ‘जुल्फकार’ से संबंधित आयत लिखी हुई थी।

तमाम तर्कों को सुनने के बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि इस पर निर्णय ट्रायल कोर्ट ही ले सकता है। अदालत ने कहा कि समन आदेश में ऐसी कोई अवैधता, विकृति या अन्य कोई महत्वपूर्ण त्रुटि नहीं पाई गई है, जिससे सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों के प्रयोग में न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप करने का औचित्य सिद्ध हो सके।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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