Sunday, November 17, 2024
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नसीरुद्दीन के भाई जमीर उद्दीन शाह ने की हिंदू-मुस्लिम के बीच शांति की वकालत, भड़के इस्लामी कट्टरपंथियों ने उन्हें ट्विटर पर घेरा

“मेरा दृढ़ विश्वास है कि हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच लगातार वार्ता ही सौहार्द और प्रगति की कुंजी है। दुर्भाग्य से दोनों तरफ हार्ड लाइनर्स हैं। लेकिन ये अधिक उत्साहजनक है कि समझदार लोगों की बढ़ती जमात कट्टरता से नफरत करती है।”

हिंदुओं के खिलाफ जहर उगलने वाले बॉलीवुड एक्टर नसीरुद्दीन शाह (Nasiruddin Shah) के भाई और एक्स इंडियन आर्मी ऑफिसर जमीर उद्दीन शाह (Zameer Uddin Shah) को हिंदू-मुस्लिमों के बीच सौहार्द के लिए बातचीत की सलाह देना भारी पड़ गया है। इस सुझाव के बाद सोशल मीडिया (Social Media) पर कट्टरपंथी इस्लामिस्ट उनके खिलाफ लगातार बयानबाजी कर रहे हैं।

दरअसल, पिछले साल सेना के पूर्व अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस में एक आर्टिकल लिखा था। जिसका शीर्षक था, “क्यों मोहन भगत की हिंदू-मुस्लिम संचार की अपील सही रास्ते में एक कदम है।” बस उसी लेख को लेकर अब वो कट्टरपंथियों को निशाने पर आ गए हैं। उनकी आलोचना की शुरुआत मुस्लिम स्पेसेस नाम के एक ट्विटर यूजर ने की।

इसके बाद कई अन्य इस्लामवादियों ने भी उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया। पूर्व सैन्य अधिकारी को ट्रोल करते हुए ट्विटर पर इस्लामवादियों ने कहा कि उनकी यह ‘मंकी बैलेंसिंग’ की कोशिश ही उन्हें आगे ले जाएगी।

अपने आर्टिकल में जमीर उद्दीन शाह ने 4 जुलाई 2021 को गाजियाबाद में मेवाड़ संस्थान में RSS प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) द्वारा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के ख्वाजा इफ्तिखार अहमद की पुस्तक, ‘द मीटिंग ऑफ माइंड्स-ए ब्रिजिंग इनिशिएटिव’ के विमोचन के दौरान किए गए संबोधन का जिक्र किया था। भागवत के भाषण का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा था कि वो भी दोनों समुदायों के बीच शांति स्थापित करने के लिए हिंदू-मुस्लिम बातचीत के पक्षधर हैं।

इंडियन एक्सप्रेस में छपा जमीर उद्दीन का लेख

हालाँकि, जमीर उद्दीन शाह के द्वारा लिखा गया उनका ये पुराना आर्टिकल अब उनकी मुसीबतें बढ़ा रहा है। ट्विटर पर उनके ही समुदाय के लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शायद इस्लाम में शांति और सुधार की बात करना इस्लामवादियों के लिए सच्चा मुस्लिम नहीं है।

बहरहाल उन्होंने बुधवार को मुस्लिम स्पेसेस के ट्वीट का जबाव देते हुए ट्वीट किया, “मेरा दृढ़ विश्वास है कि हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच लगातार वार्ता ही सौहार्द और प्रगति की कुंजी है। दुर्भाग्य से दोनों तरफ हार्ड लाइनर्स हैं। लेकिन ये अधिक उत्साहजनक है कि समझदार लोगों की बढ़ती जमात कट्टरता से नफरत करती है।”

इसके बाद मुस्लिम स्पेस ने जमीर उद्दीन शाह के ट्वीट का जबाव देते हुए उनके द्वारा 11 अक्टूबर, 2019 को लिखे गए दूसरे आर्टिकल का स्क्रीनशॉट शेयर किया। जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति ने कहा था, “स्थायी शांति के लिए मुस्लिमों को अयोध्या की जमीन हिंदुओं को सौंप देनी चाहिए।”

फिर क्या था जमीर उद्दीन शाह ने अपने बयान ट्विटर पर सही ठहराया। उन्होंनें लिखा, “मेरे पास ऐसा कहने के अच्छे कारण थे। मुझे पता था कि न्यायाधीश शायद ही कभी जनता की राय के खिलाफ जाते हैं और मुझे यकीन था कि अयोध्या का फैसला क्या होगा। हम मस्जिद को फिर से हासिल नहीं करते, लेकिन हारे नहीं होते। अब हम न केवल केस हार चुके हैं बल्कि चौतरफा हार चुके हैं।”

जमीरुद्दीन शाह पर बरसे कट्टरपंथी

अपने आर्टिकल के जबाव में ज़मीर उद्दीन शाह कल से ऐसे कई कट्टरपंथी इस्लामवादियों को जवाब दे रहे हैं, जिनके मन और मस्तिष्क में लंबे वक्त से हिंदुओं के लिए नफरत भरी हुई है।

ये बड़ी ही दिलचस्प बात है कि कट्टरपंथी इस्लामी नसीरुद्दीन शाह के भाई को निशाना बना रहे हैं, क्योंकि वो उनकी चरमपंथी विचारधारा के खिलाफ हैं। लेकिन इन चरमपंथियों ने उस वक्त चुप्पी साध ली थी, जब उन्होंने 2002 के गोधरा दंगों को लेकर गुजरात की तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार के बारे में झूठ बोला था।

जमीरुद्दीन शाह ने गुजरात दंगे पर बोला था झूठ

नसीरुद्दीन शाह के भाई लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत) जमीर उद्दीन शाह की आगामी पुस्तक ‘द सरकार मुसलमान’ के कुछ अंश 6 अक्टूबर 2018 में प्रकाशित किए गए थे। इसमें उन्होंने दावा किया था कि फरवरी 2002 में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के नरसंहार के बाद गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। अयोध्या से लौटने वाले तीर्थयात्रियों को जिंदा जला दिया गया था। लेकिन, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार सेना को तत्काल परिवहन प्रदान नहीं करा पाई थी, जिससे दंगा प्रभावित राज्य में सेना की तैनाती में देरी हुई थी।

उन्होंने दावा किया था कि अगर मोदी सरकार आवश्यक साजो-सामान मुहैया कराती तो जानमाल की हानि को कम किया जा सकता था। हालाँकि, उसके बाद ऑपइंडिया ने इस बात खुलासा किया था कैसे लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) के दावे बिल्कुल निराधार और अनुचित थे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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