मार्च 25, 2020 से देशभर में कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन प्रभावी हो चुका था। इसके बाद एक घटना 29 मार्च को मुंबई स्थित जुहू में हुई थी। चार कॉन्स्टेबल- संतोष देसाई, दिगंबर चौहान, अंकुश पालवे और आनंद गायकवाड़ ने लॉकडाउन के नियम का उल्लंघन करने के आरोप में 22 वर्षीय राजू वेलु देवेन्द्र के साथ मारपीट की, जिसमें उसकी मौत हो गई।
हालाँकि, इस मामले के बॉम्बे हाईकोर्ट के पास जाने तक भी जुहू पुलिस के पास इस घटना की एक अलग ही कहानी थी। इसमें बताया गया कि राजू वेलु की मौत मॉब लिंचिंग के कारण हुई, ना कि पुलिस कस्टडी में पिटाई के कारण!
मार्च से शुरू हुए इस घटनाक्रम पर एक नजर –
मॉब लिंचिंग या पुलिस कस्टडी में पिटाई से मौत?
जुहू पुलिस द्वारा राजू वेलु की बर्बरता से पिटाई करने के बाद पुलिस ने कहा था कि राजू वेलु को स्थानीय लोगों ने पकड़ लिया था और उसकी कथित मॉब लिंचिंग की। इसी आरोप में आठ लोगों के खिलाफ हत्या, महामारी के दौरान जमा होने और दंगा करने का मामला दर्ज कर लिया। लेकिन, राजू वेलु के रिश्तेदारों ने दावा किया कि उसे पुलिस ने ही पीट-पीटकर मार डाला। इसके बाद मृतक राजू वेलु के भाई ने हाईकोर्ट में एक PIL दायर की।
हालाँकि, मुंबई पुलिस ने राजू वेलू देवेन्द्र के परिवार से कहा कि उसे डकैती के प्रयास में भीड़ द्वारा मारा गया था, उसके भाई ने इस घटना के सीसीटीवी फुटेज तक पहुँचने की कोशिश की। वेलु की माँ सायरा देवेंद्र का कहना है कि वेलु के शरीर पर जो चोट के निशान थे और जैसा स्थानीय लोगों ने भी उन्हें बताया था, उसके कारण उनका संदेह पहले से ही था कि जुहू पुलिस झूठी कहानी तैयार कर उन्हें सुना रही है।
पुलिस कॉन्स्टेबल संतोष देसाई, दिगंबर चौहान, अंकुश पालवे और आनंद गायकवाड़, पर वेलु के परिवार को गुमराह करने का आरोप है। 31 मार्च को दर्ज शिकायत में, पुलिस ने राजू वेलु की मौत के लिए आठ अज्ञात लोगों को दोषी ठहराया था, और बाद में दावा किया कि 2 ने अपराध कबूल कर लिया है। उन्हें आठ दिनों की हिरासत के बाद रिहा भी कर दिया गया।
सायरा देवेन्द्र ने अपने चार बेटों को एक फूड स्टॉल पर काम कर के पाला था। 30 मार्च की सुबह 09 बजे पुलिस वेलु के घर पहुँची और राजू के घरवालों से कहा कि वह कई बार क़ानून का उल्लंघन भी कर चुका है और वो छोटा-मोटा चोर भी था। उसकी 51 साल की माँ सायरा देवेन्द्र कहती हैं, “उन्होंने मुझे बताया कि वेलु पास में एक फुटपाथ पर नशे में पड़ा हुआ था।”
जुहू पुलिस की कहानी
पुलिस ने राजू की माँ से कहा कि जब वह मौके पर पहुँचे, तो मुश्किल से 200 मीटर की दूरी पर उन्होंने वेलु को बेहोश पाया। सायरा का कहना है कि वे उसे अस्पताल ले जाना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें मना किया। जब पुलिस राजू को उसके घर ले गए, तो घरवालों ने उसके शरीर पर चोट के निशान खोजे। वे कहती हैं कि आखिरकार वेलु को पाँच घंटे बाद भी होश नहीं आने पर अस्पताल जाने का फैसला किया। कूपर अस्पताल पहुँचने पर राजू को मृत घोषित कर दिया गया।
पुलिस ने वेलु की माँ से कहा कि वेलु किसी के घर में चोरी करने के लिए घुसने की कोशिश कर रहा था, जहाँ लोगों ने उसकी मॉब लिंचिंग कर डाली और वो जल्द ही अपराधियों की तलाश कर लेंगे। पुलिस द्वारा कैद किए गए कथित आरोपितों में से एक ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि 29-30 मार्च की रात को वेलु को चार पुलिसकर्मियों ने पकड़ा था। स्थानीय लोगों ने उसे घर में घुसने की कोशिश करते हुए देखा और पकड़कर उसकी पिटाई की।
29 और 30 मार्च की रात को, राजू वेलु देवेंद्र और उसके दोस्त बाहर निकले थे। पुलिस ने दावा किया था कि राजू की लोगों ने मॉब लिंचिंग की और उसका शव उन्हें नेहरू नगर चौक पर मिला।
मृतक राजू के भाई के मुताबिक, राजू को रात 2.30 बजे पुलिस स्टेशन ले जाया गया था और सुबह 6 बजे के आसपास, पुलिस ने परिवार को सूचित किया कि उसकी हत्या कर दी गई है। सार्वजनिक विरोध के बाद ही विभाग ने आंतरिक जाँच का आदेश दिया था।
राजू के भाई का कहना है कि उच्च न्यायलय की सुनवाई के पहले तक भी पुलिस अपने इसी बयान पर अडिग थी कि पब्लिक द्वारा लिंचिंग किए जाने के कारण राजू की मौत हुई। पुलिस ने यहाँ तक भी कहानी गढ़ी कि राजू के 2 दोस्त भागने में कामयाब रहे और वह छत से गिर गया था। पुलिस ने कहानी बनाई कि उनके पास इस घटना का चश्मदीद गवाह भी मौजूद है।
लेकिन जब मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में पहुँचा, तब पुलिस ने आंतरिक जाँच की रिपोर्ट तैयार की और स्वीकार किया कि देवेद्र की मौत मॉब लिंचिंग का मामला नहीं है, बल्कि पुलिस हिरासत में हुई मौत है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सांता क्रूज़ के एक वकील ने वेलु के परिवार को प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (सीएचआरआई) और मुंबई पुलिस आयुक्त को पत्र भेजने में मदद की।
सायरा का कहना है कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही उनका परिवार एनजीओ द्वारा बाँटे गए भोजन और राशन पर निर्भर हो गए थे, ऐसे में गरीबी के चलते न्याय के लिए आवाज उठाने की उम्मीद ही उन्होंने छोड़ दी थी। उन्होंने कहा, “हमने सोचा था कि हम पैसे की तंगी के दूर होते ही इस मुद्दे को उठाएँगे। फिर, अगस्त के पहले सप्ताह में, हमें एक अधिवक्ता का फोन आया, जिसमें उन्होंने बॉम्बे उच्च न्यायालय में पुलिस की बर्बरता का यह मुद्दा उठाया था।”
इस पर अधिवक्ता, बहराइज़ ईरानी ने कहा, “शुरू में हमने बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि वह राज्य भर में हो रही पुलिस की क्रूरताओं का संज्ञान लें, लेकिन तब हमें सलाह दी गई थी कि आवश्यक पत्र दाखिल करें, क्योंकि एक पत्र पर्याप्त नहीं था। इसके चलते हमें जनहित याचिका दायर करनी पड़ी। हम सीएचआरआई की रिपोर्टों पर भरोसा करते हैं, जिसमें राजू वेलु के मामले को उजागर किया गया था।”
जबकि, ज़ोन के पहले पुलिस उपायुक्त ने उस समय कहा था कि राजू वेलु को लोगों की भीड़ द्वारा मार दिया गया था, सहायक पुलिस आयुक्त ने पिछले महीने बॉम्बे उच्च न्यायालय में स्वीकार किया कि पुलिस हिरासत में ही पिटाई के कारण राजू की मृत्यु हो गई थी।
मुंबई पुलिस के बांद्रा डिवीजन के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) ने 22 जुलाई को बॉम्बे उच्च न्यायालय को सूचित किया कि उसने उन चार पुलिस कर्मियों की पहचान की है, जिन्होंने राजू वेलु देवेंद्र के साथ मारपीट की थी। लेकिन, हाईकोर्ट ने इस मामले की जाँच में देरी पर नाराजगी व्यक्त की, और एसीपी को जाँच में तेजी लाने और 5 अगस्त तक एक प्रोग्रेस रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
पहले की सुनवाई के दौरान, मुंबई पुलिस ने आरोपों से इनकार किया और दो हलफनामे दायर किए। एक स्थिति रिपोर्ट भी दर्ज की गई थी जिसमें चार पुलिसकर्मियों की पहचान की गई थी, जिन्होंने कथित तौर पर मृतक के साथ मारपीट की थी, और पुलिस ने उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही करने का प्रस्ताव दिया था।
बॉम्बे HC के हस्तक्षेप के बाद, मुंबई पुलिस ने संज्ञान लिया और 16 अगस्त को आरोपित पुलिसकर्मियों के खिलाफ एक निलंबन (सस्पेंड) आदेश जारी किया गया और कहा कि विभागीय जाँच अभी जारी है। हालाँकि, यह भी दिलचस्प बात है कि इन पुलिसकर्मियों को सिर्फ निलंबित किया गया, ना कि उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया है।