अयोध्या भूमि विवाद मामले में एक नया मोड़ आ गया है। मुस्लिम पक्षकारों के वकील एजाज मकबूल ने अयोध्या मामले में मध्यस्थता पैनल द्वारा की गई रिपोर्ट की सिफारिशों को अस्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। दरअसल, बुधवार (अक्टूबर 16, 2019) को मीडिया में एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि सुन्नी वक्फ बोर्ड तीन शर्तों के तहत राम जन्मभूमि भूमि पर अपना दावा छोड़ने को तैयार है। मगर अब मुस्लिम पक्षों ने मध्यस्थता रिपोर्ट में दिए गए प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि मुस्लिम पक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते हैं जो मीडिया में जारी किया गया है और साथ ही उस तरीके को भी अस्वीकार करते हैं जिसमें दावे को वापस लेने का समझौता किया गया था।
Advocate on record for Sunni Waqf Board Ejaz Maqbool in Supreme Court has issued a press release and denied reports of settlement on Ayodhya issue before the mediation panel.
— ANI (@ANI) October 18, 2019
इसको लेकर मुस्लिम पक्ष ने याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधियों के अयोध्या साइट पर से अपना दावा वापस लेने के बयान के बाद मुस्लिम पक्ष को आड़े हाथों लिया गया। उनका कहना है कि मीडिया में यह जानकारी मध्यस्थता समिति या फिर निर्वाणी अखाड़ा द्वारा लीक की गई।
याचिका में कहा गया है कि यह स्वीकार करना मुश्किल है कि ऐसी परिस्थिति में मध्यस्थता हो सकता है, खासकर जब मुख्य हिंदू दलों ने खुले तौर पर कहा कि वे किसी भी तरह के मध्यस्थता के पक्ष में नहीं है और अन्य सभी मुस्लिम अपीलकर्ताओं ने भी स्पष्ट किया था कि वे भी किसी भी तरह की मध्यस्थता के पक्ष में नहीं हैं, तो फिर आखिर मध्यस्थता कैसे हो सकती है। उनका कहना है कि मध्यस्थता कमिटी ने जो प्रयास किया था उसमें उनका कोई आदमी शामिल नही था।
याचिका के मुताबिक वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से जफर फारुकी को संरक्षण देने की अपील की थी। उनका कहना है कि पंचू ने मुख्य न्यायाधीश से कहा था कि वो उत्तर प्रदेश सरकार को इसके लिए आदेश दें।
इसके अलावा, याचिका में कहा गया है कि मध्यस्थता समिति खुद प्रतिनिधि नहीं थी और मीडिया में लीक हुआ रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन था। याचिका में लीक होने के समय पर भी संदेह जताया गया है।
उल्लेखनीय है कि मीडिया के सामने आई रिपोर्ट में कहा गया था कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने माँग की है कि ‘THE PLACES OF WORSHIP (SPECIAL PROVISIONS) ACT, 1991 ACT NO. 42 OF 1991’ को पूर्णरूपेण लागू कर इसे अभेद्य बनाया जाए। साथ ही सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने यह भी कहा है कि अयोध्या में 22 मस्जिदों के रख-रखाव की जिम्मेदारी सरकार उठाए। इसके साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अंतिम शर्त रखी है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के नियंत्रण में जितने भी धार्मिक स्थल हैं, उनकी स्थिति की जाँच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट एक समिति बनाए।
बता दें कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में देश की सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई पूरी कर ली है और फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट जल्द ही इस पर अपना फैसला सुनाएगी। बताया जा रहा है कि 14 से 16 नवंबर 2019 के बीच इस पर फैसला आ सकता है।