सुप्रीम कोर्ट में रामसेतु (Ram Setu) को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के लिए एक याचिका दायर की गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि रामसेतु के दर्शन के लिए ‘समुद्र’ में कुछ मीटर/किलोमीटर तक दीवार का निर्माण की जाए। इसका दर्शन धरती के सभी जीवित प्राणियों के लिए मोक्ष की गारंटी है।
इसके पहले केंद्र की मोदी सरकार (Central Government) ने जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को बताया था कि इस ऐतिहासिक धरोहर को राष्ट्रीय विरासत स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया संस्कृति मंत्रालय में चल रही है।
लखनऊ के वकील अशोक पांडे के माध्यम से दायर की गई याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका के रूप में दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 में दी गई परिभाषा के तहत रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित की जाए।
याचिका में यह भी कहा गया है कि रामसेतु पर दीवार बनाए जाने से करोड़ों लोगों की इच्छा पूरी होगी। वे उस ऐतिहासिक और पौराणिक पुल पर चल सकेंगे, जिस पर चलकर भगवान राम अपनी सेना के साथ लंका गए गए थे और वहाँ जाकर जाकर अत्याचारी रावण को मारकर राम राज्य की स्थापना की थी।
इसमें तर्क दिया गया है कि रामसेतु के दर्शन का प्रबंध ना करके सरकार संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। इसमें यह भी कहा गया है कि दर्शन और पूजा शुरू करना आवश्यक है, ताकि कोई शैतान इसके विनाश की योजना बनाने की हिम्मत न करे।
रामसेतु हिंदुओं के लिए कितना महत्वपूर्ण है, इसका जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया है कि रामसेतु में स्नान के महत्व को रामायण, स्कंध पुराण, अग्नि पुराण, विष्णु पुराण आदि ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है।
लाइव लॉ के अनुसार, याचिका में कहा गया है, “यहाँ दीवार का निर्माण संभव है, क्योंकि रामसेतु पर शुरू से अंत तक केवल 4 से 40 फीट ही पानी है। यहाँ दीवार बन जाने से दुनिया भर के लोग भगवान राम के आदेश के तहत बनाए गए पुल के दर्शन के लिए धनुषकोटि (रामेश्वरम) आ सकेंगे।”
बता दें कि भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद सु्ब्रमण्यम स्वामी (Subramaniyan Swamy) ने इससे पहले रामसेतु को ऐतिहासिक स्मारक के रूप में मान्यता देने की माँग वाली याचिका दाखिल की थी। इसके बाद उन्होंने साल 2020 में इस याचिका पर जल्द सुनवाई की भी माँग की थी।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब माँगा था। तब केंद्र सरकार (Central Government) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को बताया है कि इस ऐतिहासिक धरोहर को राष्ट्रीय विरासत स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया संस्कृति मंत्रालय में चल रही है।
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इससे पहले कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में सेतुसमुद्रम पोतमार्ग परियोजना के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी। इस योजना के तहत रामसेतु को तोड़कर जहाजों के लिए रास्ता बनाना था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा और उसके बाद साल 2007 मे इस परियोजना पर रोक लगा दी गई।
रामसेतु तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट के पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के बीच चूना पत्थर की पुल जैसी श्रृंखला है। 48 किलोमीटर लंबे रामसेतु को आदम ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है। इतिहासकारों की मानें तो साल 1480 में आए एक तूफान में यह पुल काफी टूट गया। उससे पहले लोग पैदल और वाहन के जरिए भारत और श्रीलंका आते-जाते थे।
अमेरिका के साइंस चैनल ने तथ्यों के साथ ये दावा किया था कि भारत और श्रीलंका के बीच मौजूद रामसेतु प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव का द्वारा बनाया गया है। कहा जाता है कि अमेरिका के वैज्ञानिकों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि रामसेतु के पत्थर करीब 7000 साल पुराने हैं।
उधर, दिसंबर 2023 में एक निर्दलीय राज्यसभा सांसद के सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा था कि रामसेतु के वजूद के स्पष्ट सबूत अभी तक नहीं मिले हैं। सरकार लगातार प्राचीन द्वारिका और ऐसे मामलों की जाँच कर रही है। जितेंद्र सिंह ने कहा था कि रामसेतु करीब 18000 साल पुराना इतिहास है। ऐसे में सरकार की कुछ सीमाएँ हैं।
उन्होंने कहा था, “स्पेस टेक्नोलॉजी के जरिए हमें पता चला है कि समुद्र में पत्थरों के कुछ टुकड़े हैं और इनमें कुछ ऐसी आकृति है, जिनमें निरंतरता जैसी है। समुद्र में कुछ आइलैंड और चूना पत्थर जैसी चीजें भी मिली हैं। साफ शब्दों में कहा जाए तो ये कहना मुश्किल है कि रामसेतु का वास्तविक स्वरूप वहाँ मौजूद है। हालाँकि, कुछ संकेत ऐसे भी हैं, जिनसे ये पता चलता है कि वहाँ कोई स्ट्रक्चर मौजूद हो सकता है।
बता दें कि रामसेतु के रहस्यों का पता लगाने के लिए जनवरी 2021 में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की संस्था राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (NIO) को अनुसंधान का काम दिया गया था। गोवा स्थित इस अनुसंधान ने मार्च 2021 से अपना काम शुरू कर दिया था।
NIO के निदेशक प्रोफेसर सुनील सिंह ने उस दौरान कहा था कि शास्त्रों में बताया गया है कि सेतु में लकड़ी की पट्टियों का उपयोग किया गया है। यदि ऐसा है तो यह अब तक जीवाश्म में बदल गया होगा। इसे तलाशने का प्रयास किया जाएगा। ब्रिज में किसी तरह की ड्रिलिंग का काम नहीं होगा।
बता दें कि NIO ने अब तक द्वारिका का अध्ययन किया है। अध्ययन में मिले प्रारंभिक प्रमाण में कहा गया है कि द्वारिका गुजरात का एक हिस्सा था। समुद्र स्तर में वृद्धि की वजह से यह हिस्सा डूब गया होगा। वहाँ 3 से 6 मीटर गहराई तक पत्थरों के लंगर मिले। यहाँ प्राचीन बंदरगाह के भी अवशेष मिले। वहीं ओडिशा तट से कई जहाजों के मलबे का अध्ययन चल रहा है।