सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 11 साल की बच्ची की रेप के बाद हत्या के दोषी जयप्रकाश तिवारी (Jay Prakash Tiwari) की फाँसी पर रोक लगा दी है। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने इस मामले में उत्तराखंड के जेल में बंद दोषी की मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन कराने का निर्देश दिया है। आरोपित तिवारी ने अपने सहयोगी मजदूर की इस बेटी के साथ इस वारदात को अंजाम दिया था और फाँसी की सजा के खिलाफ देश की शीर्ष अदालत में अपील की थी। यह पहला मामला है जब किसी दोषी का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन कराया जाएगा।
जस्टिस यूयू ललित (Justice UU Lalit) की अध्यक्षता वाली जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने ऋषिकेश एम्स (Rishikesh AIIMS) के मनोवैज्ञानिकों की एक टीम को सुद्धोवाला जेल में जाकर दोषी की जाँच करने और रिपोर्ट 25 अप्रैल तक देने के लिए कहा। इसमें जिला जेल प्रशासन को सहयोग करने का भी निर्देश दिया गया है।
कोर्ट ने इस मामले में अधिकारियों से जेल में बंद दोषी तिवारी के क्रिया-कलापों की जानकारी हासिल करने के बाद उसकी रिपोर्ट को कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया। बता दें कि यह पहला मामला है, जब किसी अदालत ने किसी दोषी की अपील की सुनवाई से पहले उसकी मानसिक जाँच कराने का निर्देश दिया है। इस आधार पर कोर्ट निर्णय लेगा कि दोषी की मानसिक स्थिति क्या है और उसमें सुधार की कितनी गुंजाइश है।
बता दें कि इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने जयप्रकाश तिवारी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302, 201, 376 और पॉक्सो (POCSO) एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराते हुए फाँसी की सजा सुनाई थी। मामला उत्तराखंड हाईकोर्ट में जाने के बाद कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा। इसके बाद दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
क्या है मामला
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद का 32 वर्षीय जयप्रकाश तिवारी उत्तराखंड के देहरादून में काम करता था। वह विकासनगर थाना क्षेत्र के सहसपुर में रहता था। उसके साथ ही मध्य प्रदेश का रहने वाला एक शख्स भी काम करता था। जुलाई 2018 में जब 11 साल की मृतक लड़की का पिता मजदूरी करने चला गया, तब तिवारी ने लड़की को बिस्किट खरीदने के लिए 10 रुपए का लालच देकर ले गया और उसके साथ रेप किया। उसके बाद उसकी हत्या कर शव को अपने घर में दबा दिया था।
गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में उसने पुलिस को बताया था कि वह शादीशुदा है और दो बच्चों का बाप है। छह से महीने से उसकी पत्नी उससे दूर रह रही थी। उसने बताया था कि वह कॉलगर्ल के पास जाने की सोची थी, लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। इसलिए उसने इस बच्ची को निशाना बनाया था।
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने अगस्त 2019 में उसे दोषी ठहराते ठहराते हुए मौत की सजा दी थी। इसके बाद उसने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन उच्च न्यायालय ने जनवरी 2020 में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
सुनवाई को दौरान हाईकोर्ट ने कहा था कि अपराध दुर्भलतम श्रेणी का है और इसमें उपलब्ध कराए गए तथ्यों पर संदेह नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा था, “अपीलकर्त्ता द्वारा किया गया अपराध इतना क्रूर है कि यह न केवल न्यायिक जागरूक, बल्कि समाज के प्रति जागरूक व्यक्ति को भी झकझोरता है। यह मामला ‘दुर्लभ में दुर्लभतम’ की श्रेणी में आता है। इसमें मौत के अलावा कोई सजा नहीं दी जा सकती है।”