Friday, November 22, 2024
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समलैंगिक विवाह के खिलाफ ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ ने पारित किया प्रस्ताव: कहा – भारत जैसे देश में ये संभव नहीं, संसद निपटाए मामला

"बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सभी प्रतिनिधियों का मानना था कि भारत जैसे देश में समलैंगिक विवाह को हम मान्यता नहीं दे सकते।"

देश में समलैंगिक विवाह (Same-sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने का विरोध करते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने एक प्रस्ताव पारित किया है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि समलैंगिक विवाह का मुद्दा संवेदनशील है। इसलिए संसद इसमें सामाजिक और धार्मिक संगठनों से बातचीत कर इस मामले का हल निकालने का प्रयास करे।

दरअसल, ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ ने एक बैठक का आयोजन किया था। इसमें सभी राज्यों के बार काउंसिल शामिल हुए थे। इस बैठक में पारित किए गए प्रस्ताव में कहा गया है, “संयुक्त बैठक की सर्वसम्मति से राय यह है कि समलैंगिक विवाह के मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए तथा तमाम सामाजिक व धार्मिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए यह सलाह दी जाती है कि यह मामला सक्षम विधायिका यानी कि संसद द्वारा विभिन्न सामाजिक व धार्मिक समूहों को शामिल कर बात की जाए और मामला निपटाया जाए।”

बार काउंसिल ने यह भी कहा है कि इतिहास के अनुसार, मानव सभ्यता और संस्कृति की स्थापना के बाद से विवाह को स्वीकार किया गया है। प्रजनन और मनोरंजन दोनों ही उद्देश्य के लिए पुरुष और महिला को अलग-अलग तरीके से वर्गीकृत किया गया है। ऐसे में विवाह जैसी मौलिक चीज में परिवर्तन करना विनाशकारी होगा। चाहे इसे कितने भी नेक इरादे से क्यों न किया जाए।

बयान में यह भी कहा गया है कि समलैंगिक विवाह का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। यह जानने के बाद देश का हर नागरिक अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित है। देश के 99.9% से अधिक लोग हमारे देश में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हैं। देश के एक बड़े वर्ग का मानना है कि इस मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय का कोई भी निर्णय हमारे देश की संस्कृति और सामाजिक धार्मिक संरचना के खिलाफ माना जाएगा।

इस मामले में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष और एडवोकेट मनन कुमार मिश्रा ने कहा है, “बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सभी प्रतिनिधियों का मानना था कि भारत जैसे देश में समलैंगिक विवाह को हम मान्यता नहीं दे सकते। इससे हमारे देश की मूलभूत संरचना पर बुरा असर पड़ेगा। देश की सामाजिक-धार्मिक संरचना को देखते हुए, हमने यह सोचा कि समलैंगिक विवाह हमारी संस्कृति के खिलाफ है। इस तरह के फैसले अदालतों द्वारा नहीं लिए जाएँगे। इस तरह के कदम कानून की प्रक्रिया से आने चाहिए।”

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में LGBTQ+ व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों को लागू करने की माँग को लेकर याचिका दायर की गई थी। इस याचिका का केंद्र सरकार ने विरोध किया है। हालाँकि इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच सुनवाई कर रही है। बेंच ने पहले कहा था कि मामले की सुनवाई सोमवार से शुक्रवार तक जाएगी। लेकिन इसके बाद शुक्रवार (21 अप्रैल, 2023) को खबर आई कि खराब स्वास्थ्य के चलते जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस. रविंद्र भट उपलब्ध नहीं हैं। इससे इस मामले की सुनवाई फिलहाल सोमवार (24 अप्रैल, 2023) से शुरू नहीं हो पाएगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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