राजस्थान के अजमेर स्थित मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के शिव मंदिर होने का दावा करते हुए एक हिंदू संगठन ने सर्वे कराने की माँग अदालत से की है। हिंदू सेना के प्रमुख विष्णु गुप्ता ने अपनी याचिका में पूर्व जज हरबिलास शारदा की किताब में दिए गए तथ्यों को आधार बनाकर दावा किया है। कोर्ट ने केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय एवं ASI के साथ दरगाह कमिटि से 20 दिसंबर तक जवाब माँगा है।
अल्पसंख्यक मंत्रालय के संयुक्त सचिव और कार्यवाहक नाजिम नदीम अहमद और ASI मुख्यालय इसका जवाब तैयार कर रहा है। हिंदू पक्ष द्वारा दायर वाद में मोइनुद्दीन चिश्ती की मौजूदा दरगाह परिसर में शिव मंदिर, पूजा-अर्चना स्थल और जैन मंदिर होना बताया गया है। इसके साथ ही पूर्व जज हरबिलास शारदा की किताब पर दावा किया गया है कि यहाँ पर एक ब्राह्मण दंपती पूजा-पाठ करता था।
जज रहे हरबिलास शारदा ने साल 1911 में ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ नाम की एक किताब लिखी है। इस किताब के पेज नंबर 97 पर कहा गया है कि अजमेर दरगाह के नीचे एक तहखाना है और उस तहखाने के अंदर मंदिर में महादेव की छवि है। इस पर हर दिन एक ब्राह्मण परिवार चंदन चढ़ाता था और पूजा करता था। इस जगह को अब दरगाह के घड़ियाली (घंटी बजाने वाला) के रूप में जाना जाता है।
जिस परिवार का जिक्र शारदा ने अपनी किताब में की है, उसे खोज निकालने का दावा मीडिया संस्थान भास्कर ने किया है। मीडिया हाउस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि परिवार का कहना है कि उसके यहाँ से चंदन का लेप जाता था। हालाँकि, परिवार का यह भी दावा है कि यह लेप मंदिर नहीं, दरगाह की मजार पर होता था। करीब 52 साल से परिवार ने वहाँ चंदन नहीं भेजवाया है।
अजमेर दरगाह से सटे होली धड़ा एरिया में कभी शहर के नामचीन वकील रहे केशरीमल बीजावत की ‘कल्याण भवन’ हवेली है। इन्हीं के परिवार से यह चंदन जाता था। केशरीमल बीजावत के बेटे सुशील विजयवर्गीय ने बताया कि उनके घर से चंदन जाता था। उन्होंने बताया कि इसका मासिक भुगतान भी उनके परिवार को मिलता था, लेकिन साल 1972 के बाद से उनका परिवार चंदन नहीं भेजता है।
सुशील ने बताया कि उनके पिताजी इस काम को इसलिए करते थे, क्योंकि ये पीढ़ियों से चला आ रहा था। उन्होंने कहा, “हमारे घर से तैयार होकर चंदन दिन में करीब एक डेढ़ बजे के आसपास दरगाह पर भेजा जाता था। इसके बाद शायद दोपहर की नमाज के बाद चंदन का लेप होता था।” उन्होंने कहा कि उन्हें यही जानकारी है कि वो चंदन मजार लेप किया जाता था।
अजमेर दरगाह के प्रमुख जैनुअल आबेदीन के बेटे सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने भी स्वीकार किया कि हिंदू परिवार से यह चंदन आता था। उन्होंने कहा कि आजादी से पहले तक दरगाह में हिंदू परिवार के घर से चंदन आता था। सन 1947 से पहले एक परिवार था, जो चंदन भेजा करता था। उन्होंने कहा, “हम सबने पढ़ा है। गरीब नवाज की दरगाह में आज भी सुबह-शाम चंदन पेश होता है।”
इस तरह, जज हरबिलास शारदा की किताब में लिखा यह तथ्य कि ब्राह्मण परिवार यहाँ पूजा-अर्चना करता था, सत्य साबित होता है। आमतौर पर दरगाह या मजार पर चंदन का लेप नहीं होता है। वहाँ पर इत्र (बनाया हुआ सुगंधित द्रव्य) और लोहबान (धूप की तरह का सामान) ही जलाया जाता है। चंदन का लेप आमतौर पर मंदिरों एवं देव-देवताओं के विग्रह पर ही होता है।
हरबिलास शारदा ने 168 पन्नों की अपनी किताब में ‘दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती’ नाम से एक पूरा चैप्टर लिखा है। इसके पेज नंबर 93 पर लिखा है कि दरगाह के ‘बुलंद दरवाजे’ की उत्तरी तरफ तीसरी मंजिल पर छतरी है। वह किसी हिंदू इमारत के हिस्से से बनी है। दरवाजे पर बनी छतरी की सतह पर खूबसूरत नक्काशी को चूने और रंग पुताई से भर दिया गया।
इसी चैप्टर के पेज नंबर 94 पर लिखा है कि छतरी में लगा लाल रंग का बलुआ पत्थर, वह किसी जैन मंदिर का है। पेज नंबर 96 पर लिखा है कि बुलंद दरवाजे और अंदर के आँगन के नीचे पुराने हिंदू मंदिर के तहखाने हैं। इसी किताब के पेज नंबर 97 पर लिखा है कि तहखाने में हिंदू परंपरा के मुताबिक मंदिर में महादेव की छवि है।
किताब में दावा है कि इस पर हर दिन एक ब्राह्मण परिवार चंदन चढ़ाता था। इस जगह को अब दरगाह के घड़ियाली (घंटी बजाने वाला) के रूप में जाना जाता है। इस दरगाह के तहखाने में कई कमरे अभी भी वैसे ही हैं। किताब में दावा किया गया है कि इन सब बनावट को देखकर लगता है कि मुस्लिम शासकों ने किसी पुराने मंदिर की जगह पर दरगाह बनाया है।