उत्तराखंड के हल्द्वानी स्थित गफूर बस्ती में अतिक्रमण का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। यहाँ लोगों ने रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जा कर अपने घर बना लिए हैं। उत्तराखंड हाईकोर्ट इन अवैध कब्जों को हटाने की अनुमति दे चूका है। इसी मुद्दे को लेकर लोग विरोध कर रहे हैं। हालाँकि, विरोध कर रहे लोगों ने अब अपने बच्चों और घर की महिलाओं को आगे कर दिया है। प्रदर्शनकारी इनकी आड़ में शाहीन बाग़ जैसा प्रदर्शन करना चाह रहे हैं। दिल्ली के शाहीन बाग़ में ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)’ विरोधी प्रदर्शन के दौरान इसी तरह से बच्चों और महिलाओं को आगे कर दिया गया था।
दरअसल, मंगलवार (27 दिसम्बर, 2022) को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी के वनभूलपुरा क्षेत्र में स्थित गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए थे। इसके लिए न्यायालय ने प्रशासन को सप्ताह भर की समयसीमा दी थी। अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू भी कर दी गई थी, लेकिन लोगों ने भारी विरोध करना शुरू कर दिया, जिसके चलते कार्रवाई को 10 जनवरी, 2022 तक रोक दिया गया है। उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट भी रेलवे की जमीनों पर अतिक्रमण को ले कर चिंता जताते हुए इसे जल्द से जल्द खाली करवाने के आदेश दे चुका है।
वहीं हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रदर्शनकारी ‘विक्टिम कार्ड’ खेल रहे हैं। अपने बच्चों और घर की महिलाओं को आगे कर रहे हैं। साथ ही ठंड का भी हवाला दे रहे हैं। उनका कहना है कि कड़ाके की ठंड में उन्हें बेघर किया जा रहा है। प्रदर्शनकारियों की माँग है कि अतिक्रमण हटाने से पहले उन्हें कहीं और बसाया जाए। साथ ही सोशल मीडिया पर भी अतिक्रमणकारियों के पक्ष में एजेंडा चलाया जा रहा है, ताकि सरकार अतिक्रमण हटाने का इरादा ही छोड़ दे। साथ ही कॉन्ग्रेस नेता भी इस आग को खूब हवा दे रहे हैं।
वहीं एक दावे के मुताबिक, हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अवैध कब्ज़े की शुरुआत साल 1975 से हुई थी। पहले कच्ची झुग्गियाँ बनाई गईं, जो बाद में पक्के निर्माण में तब्दील हो गए। बाद में इसी अवैध कब्ज़े में न सिर्फ इबादतगाहें बल्कि अस्पताल तक बना डाले गए। आरोप है कि यह सब देखने के बाद भी तत्कालीन रेलवे सुरक्षा बल खामोश रहा। साल 2016 में नैनीताल हाईकोर्ट की कड़ाई के बाद रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ने अवैध कब्जेदारों के खिलाफ पहला केस दर्ज करवाया, लेकिन तब तक लगभग 50 हजार लोग अवैध तौर पर वहाँ रहना शुरू कर चुके थे।
नैनीताल हाईकोर्ट के साल 2016 में आए आदेश के चलते कब्जेदारों ने लम्बी मुकदमे बाजी की। हालाँकि, वो अपने कब्ज़े का कोई ठोस प्रमाण नहीं पेश कर पाए। बताया जा रहा है कि अवैध कब्जेदारों के खिलाफ डेढ़ दशक पहले भी बड़ा अभियान चलाया गया था। तब भारी फ़ोर्स के साथ सिर्फ कुछ हिस्सों को खाली करवा पाया गया था। इस दौरान कब्जेदारों के घरों के नीचे रेलवे लाइनें तक निकली थीं। कुछ समय की शांति के बाद खाली करवाए गए स्थान पर फिर से अवैध कब्ज़ा हो गया।