27 साल की श्रद्धा वाकर (Shraddha walker) की निर्मम हत्या से पूरा देश सन्न है। उसके शव के टुकड़े-टुकड़े करने वाला 27 साल का आफताब अमीन पूनावाला (Aftab Amin Poonawalla) दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में है। उसका नार्को टेस्ट करवाने की इजाजत अदालत ने दे दी है। आफताब का कबूलनामा पहले से मौजूद है, जिससे करीब 6 महीने पहले की गई इस हत्या को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। बावजूद इसके दिल्ली पुलिस का काम पूरा नहीं हुआ है। असली चुनौती अब उसके सामने हैं। यह चुनौती है अदालत में आफताब के अपराधों को साबित करने योग्य सबूत जुटाना, क्योंकि अदालत सबूत माँगता है। उसके आधार पर ही फैसला सुनाता है।
सबूत जुटाने के क्रम में ही दिल्ली पुलिस 15 नवंबर 2022 को आफताब को लेकर महरौली के जंगलों में गई थी। पूछताछ में उसने बताया है कि 18 मई 2022 को श्रद्धा की हत्या करने के बाद उसने शव के 35 टुकड़े किए थे। इन टुकड़ों को वह एक-एक कर करीब 18 दिनों तक महरौली के जंगलों में फेंकता रहा। इस जंगल से करीब 10 बॉडी पॉर्ट्स बरामद होने की बात भी सामने आई है। लेकिन ये श्रद्धा के ही हैं, इसकी पुष्टि फोरेंसिक और डीएनए जाँच के बाद ही हो पाएगी।
हम जानते हैं कि कई बार जब खबरें सुर्खियों से गायब हो जाती है तो लोगों को पता भी नहीं चलता कि जिस घटना ने उन्हें झकझोर दिया था, उसके आरोपित अदालत से राहत पाने में कामयाब रहे। इसकी सबसे बड़ी वजह पुलिसिया जाँच में कमी होती है। पर्याप्त सबूतों का अभाव होता है। इसका फायदा उठाकर आरोपित अदालत से राहत पा जाते हैं। ऐसे में हमने पुलिस के कुछ पूर्व अधिकरियों और वकीलों से बात कर यह समझने की कोशिश की कि श्रद्धा मर्डर केस में दिल्ली पुलिस के सामने किस तरह की चुनौतियाँ हैं।
नार्को टेस्ट प्रमाणिक नहीं
सुप्रीम कोर्ट के वकील अजय गौतम ने ऑपइंडिया को बताया कि नार्को टेस्ट कोर्ट में बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता। उनके मुताबिक कई बार अपराधी अपनी शारीरिक क्षमता से नार्को और लाई डिक्टेटर जैसे टेस्ट में बच निकलते हैं। लेकिन वे सजा से नहीं बच पाते। जैसे निठारी केस। उनके अनुसार इसी तरह यदि आफताब नार्को टेस्ट में बच निकलता है तो भी इसकी गारंटी नहीं है कि कोर्ट भी उसे निर्दोष मान लेगा।
इलेक्ट्रिक और मौके पर मिले सबूत अहम
दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड ACP वेद भूषण ने ऑपइंडिया से बातचीत में कहा कि श्रद्धा की मौत के बाद भी आफताब उसके सोशल मीडिया को चला रहा था। यह भी एक सबूत है। शव के अवशेषों का DNA टेस्ट होगा। इनका मिलान श्रद्धा के पिता के डीएनए से होने पर यह महत्वपूर्ण साक्ष्य साबित हो सकता है। उनके मुताबिक आफताब के घर से मिले साक्ष्यों के अलावा उसकी फोन कॉल डिटेल भी इस केस में अहम होगी। उन्होंने बताया कि CCTV फुटेज के अतिरिक्त जहाँ से फ्रिज, आरी आदि उसने खरीदे थे, उन जगहों से भी सबूत जुटाए जा सकते हैं।
बाल भी मिला तो सजा लगभग तय
वहीं अजय गौतम का कहना है कि श्रद्धा का एक बाल तक बरामद होने पर आफताब की सजा लगभग तय है। वे कहते हैं भले आफताब ने सारे साक्ष्यों को सफाई से मिटाने दिए हों, बावजूद घटनास्थल से श्रद्धा का कुछ न कुछ अंश जाँच में जरूर मिला होगा। डीएनए टेस्ट को गौतम ने भी इस केस में काफी अहम बताया है।
रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस
पूर्व ACP वेद भूषण के अनुसार यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस है। जैसे नैना साहनी तंदूर केस, निठारी केस, शीना बोरा जैसे मामले थे। गौतम का भी कहना है कि यह यह आम केस जैसा नहीं है। सुनवाई के दौरान यह भी एक पहलू रहेगा।
हथियार न मिले तो क्या होगा
एडवोकेट अजय गौतम की माने तो श्रद्धा के शव के टुकड़े जिस आरी से किया गया, उसे पुलिस नहीं भी बरामद कर पाई तो इस मामले में कोई फर्क न पड़ेगा। वे कहते हैं सजा देने से पहले कोर्ट कातिल के ‘मकसद’ पर गौर करती है। श्रद्धा से आए दिन झगड़ा होना, उसे पीटना, अन्य लड़कियों से संबंध होना, ऐसे पहलू हैं जो आफताब के क्राइम करने के मोटिव को बताते हैं। साथ ही श्रद्धा के सोशल मीडिया हैंडल, बैंक खातों का इस्तेमाल भी उसे दोषी साबित करने में मददगार रहेंगे।
उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड डिप्टी SP विवेकानंद तिवारी ने ऑपइंडिया को बताया कि जब अपराध में प्रयुक्त हथियार बरामद न हो तो कोर्ट में पुलिस को इसका मजबूत और संतोषजनक कारण बताना होता है।
चश्मदीद गवाह न होने की दलीलें
जय गौतम का कहना है कि कोर्ट में आफताब का पक्ष चश्मदीद गवाह न होने की दलीलें दे सकता है। लेकिन रेप केसों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि इससे उसे शायद ही राहत मिले, क्योंकि रेप केस की तरह ही इस मामले में भी टेक्निकल साक्ष्य अहम हैं।
चश्मदीद से ज्यादा मान्य परिस्थितिजन्य सबूत
उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व DSP अविनाश गौतम ने ऑपइंडिया से बातचीत के दौरान कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य, चश्मदीद गवाह से कहीं ज्यादा कारगर होते हैं। पूर्व DSP के अनुसार श्रद्धा के मोबाइल का लोकेशन आफताब के फ्लैट में होना, दोनों के बीच संपर्क होने और साथ रहने को साबित करने के लिए काफी है।
90 दिनों की बाध्यता
UP पुलिस के पूर्व DSP विवेकानंद तिवारी ने बताया कि इस तरह के मामलों में 90 दिनों के अंदर चार्जशीट फाइल करना अनिवार्य होता है। ऐसा नहीं होने पर इसे पुलिस का बड़ा फेल्योर माना जाता है। इसके कारण कई बार आरोपित मुचलके पर छूट भी जाते हैं।