उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले की कोर्ट ने दो आतंकियों को फाँसी की सजा सुनाई। कोर्ट ने ये सजा साल 2005 में श्रमजीवी एक्सप्रेस ट्रेन को आरडीएक्स से उड़ाने के मामले में सुनाई है। उस धमाके में 14 लोगों की मौत हो गई थी, तो 62 लोग घायल हो गए थे। श्रमजीवी एक्सप्रेस में धमाका 28 जुलाई की शाम को सवा 5 बजे के आसपास हुआ था। इस मामले में साल 2016 में ही कोर्ट ने अभी फाँसी की सजा सुनाए गए आतंकियों के अलावे दो अन्य आतंकियों को दोषी पाते हुए फाँसी की सजा दी थी, जिसकी सुनवाई हाई कोर्ट में लंबित है। अभी जिन दो आतंकियों को फाँसी की सजा सुनाई गई है, उसमें हरकत-उल-जेहाद-उल इस्लामी उर्फ हूजी से जुड़ा बांग्लादेशी आतंकी हिलाल उर्फ हेलालुद्दीन और पश्चिम बंगाल का नफीकुल विश्वास है। इन दोनों के मामले पर करीब छह साल से बहस चल रही थी, जिस पर फैसला अब सुनाया गया है।
श्रमजीवी एक्सप्रेस को बम से उड़ाने वाली ये वारदात 28 जुलाई 2005 को हुई थी, जब राजगीर से नई दिल्ली के बीच चलने वाली श्रमजीवी सुपरफास्ट एक्सप्रेस के जनरल बोगी के परखच्चे उड़ गए थे। ये धमाका हरपालगंज रेलवे क्रॉसिंग के पास हुआ था। जाँच में ये बात सामने आई थी कि दो आतंकियों ने आरडीएक्स से भरे सूटकेस को ट्रेन में रखा और चलती ट्रेन से उतर गए थे। दोनों के उतरने के कुछ समय बाद ही ये धमाका हो गया। जब ये घटना हुई, तब इस खबर का लेखक महज 14 का साल हुआ था और एक शाम पहले ही 15वें साल में उसने प्रवेश किया था। ये घटना जब घटी, तो उस समय सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन पर क्या माहौल था, पढ़ें…
दिनांक- 28 जुलाई 2005, समय 5.00 बजे
श्रमजीवी एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से कुछ समय देरी से आने वाली थी। ट्रेन थोड़ी लेट थी, लेकिन मौसम अच्छा था। चूँकि मैं खुद बामुश्किल 10 मिनट पहले ही सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर पहुँचा था, तो मुझे ट्रेन के लेट होने से ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी। हालाँकि अगले 15 मिनट में बेचैनी बढ़ रही थी। उस समय उसके सुल्तानपुर पहुँचने का समय करीब यही होता था, सवा 5 बजे के आसपास। श्रमजीवी एक्सप्रेस सर्दियों को छोड़ दें तो अपनी पंक्चुअलिटी के लिए मशहूर है। हालाँकि उस दिन ट्रेन समय पर नहीं पहुँची, लगा कि थोड़े समय पर आ जाएगी। पर अगले आधे घंटे तक ट्रेन के बारे में कोई अपडेट नहीं मिल पा रही थी।
समय 5.30 बजे
श्रमजीवी एक्सप्रेस के लेट होने से लोग झल्ला ही रहे थे कि खुसर-पुसर शुरू हो गई कि ट्रेन के साथ कुछ हादसा हो गया है। तब आज की तरह हर किसी के हाथ में मोबाइल फोन नहीं होते थे, होते थे, लेकिन अभी की तरह नहीं। फिर इंटरनेट का जमाना नहीं था। हाँ, टेक्स्ट मैसेज का दौर था। किसी को टेक्स्ट मैसेज से ही सूचना मिली कि ट्रेन के साथ हादसा हो गया है। लेकिन क्या हादसा हुआ था, इसकी पूरी जानकारी लोगों के पास नहीं थी।
5.45 बजे शाम तक स्थिति ऐसी हो चुकी थी कि प्लेटफॉर्म पर कोई दिख नहीं रहा था। मेरे जीवन के इन 30 मिनट में मैंने उन तनावों को जिया, और लोगों के चेहरों पर दहशत देखी, जो मौत के मुँह से निकल कर आने के बाद होती है।
और पहुँची धमाके की खबर…
श्रमजीवी एक्सप्रेस में धमाके की पुष्टि होते ही हर तरफ लोग भागने लगे। इस बीच, ये अफवाह भी तेजी से फैली कि ये धमाका सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन को उड़ाने के लिए किया गया है। चूँकि सुल्तानपुर हमेशा से ही एक हाई प्रोफाइल इलाका रहा है, जहाँ एक माह पहले ही अयोध्या के पास आरडीएक्स हमला हो चुका था। ऐसे में यह अफवाह कि सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन को उड़ाने के लिए ही इस बम का धमाका किया गया था। अफवाहें तेजी से फैली कि श्रमजीवी एक्सप्रेस की जनरल बोगी, जिसमें सबसे ज्यादा भीड़ होती है, उसमें एक टाइम बम रखा हुआ था। उसका टाइम वही था, जिस समय वो आम तौर पर सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन पर होती थी। लोगों की जुबान पर एक ही बात थी कि सुल्तानपुर अब आतंकियों की नजर में आ चुका है।
ये सब बातें मेरे लिए इसलिए भी कभी न भुलाने वाली रही, क्योंकि तब मैं सिर्फ 14 साल का था, इसलिए जनरल टिकट से ही दिल्ली आने का सोचा था। पैसे नहीं होते थे, तो कई बार बेटिकट यात्रा भी करता था, और धमाका भी जनरल बोगी में ही हुआ। उस बोगी में, जो ट्रेन के समय से होने की सूरत में मेरे सामने खड़ी होती, या फिर उन्हीं टॉयलेट्स के पास से होकर मैं उस बोगी में जा रहा होता, जो धमाके से उड़ा दी गई थी। सोचिए, इस बात से मैं कितना हिल गया होऊँगा कि ट्रेन अगर समय से होती, तो शायद मैं भी किसी लावारिश की तरह उड़ गया होता।
मैं शाम 6 बजे के आसपास स्टेशन से निकला और जिला अस्पताल के पास से ही गुजर रहा था। हर तरफ पुलिस पहुँच चुकी थी, और सुरक्षित कॉरिडोर भी बनाए जा रहे थे। चूँकि हरपाल गंज से जौनपुर और सुल्तानपुर दोनों ही नजदीकी शहर थे, इसलिए घायलों को जौनपुर, गंभीर घायलों को वाराणसी भेजा जा रहा था। कुछ लोगों को स्थानीय लोग अपने दम पर सुल्तानपुर जिला अस्पताल भी ला रहे थे। धीरे-धीरे शहर में दहशत फैल गई थी। लोग घरों में कैद हो गए। मैं किसी तरह से सुल्तानपुर बस अड्डे से अपने गाँव के लिए मिनी बस पकड़ कर निकल गया। 28 जुलाई 2005 दिन गुरुवार… ये ऐसी तारीख है, जो हमेशा याद रहती है।
दूसरे दिन विस्तार से अखबार में मिली जानकारी
शुक्रवार की सुबह हुई। अखबार गिनती के घरों में आते थे, वो भी 8-9 बजे तक। गाँव में अक्सर देरी हो ही जाती है। सुबह विस्तार से खबर मिली कि श्रमजीवी एक्सप्रेस को आरडीएक्स से उड़ाया गया है। इस धमाके में जनरल बोगी के परखच्चे उड़ गए। 5 दर्जन से ज्यादा लोग बुरी तरह से घायल हुए, तो एक दर्जन लोग मारे गए। अगर ये हादसा सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन पर होता, जहाँ मेरे जैसे दर्जनों लोग और भी उस बोगी में चढ़ने के लिए तैयार थे, जो उड़ा दी गई। ऐसे में मृतकों और घायलों का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
इस आतंकी हमले में उसी आरडीएक्स का इस्तेमाल हुआ था, जो पिछले कुछ सालों से लगातार आतंकियों द्वारा इस्तेमाल होते रहे थे। अभी से पिछले 10 सालों में जागरुक हुई पीढ़ी आरडीएक्स के खौफ को नहीं समझ सकती। लेकिन तब ऐसा नहीं था। उन दिनों अक्सर देश भर में धमाकों की सूचना आती थी। अगले साल ही मुंबई में ट्रेनों में सीरियल ब्लास्ट हुए थे। अब पहले की तुलना में ऐसे धमाकों की संख्या बेहद कम हो गई है। साल 2005 में हुआ वो आतंकी हमला मुझे हर उसी आतंकी हमले की सूचना में अंदर से हिला देता है, जिसे मैंने 18 साल पहले महसूस किया था।
अब जबकि इस आतंकी हमले से जुड़े बाकी दो आतंकियों को फाँसी की सजा सुनाई गई है, तो मन में थोड़ा सुकून सा हुआ है। हालाँकि न्याय मिलने में बहुत समय लग गया। इन आतंकियों को फाँसी कब होगी, ये भी नहीं मालूम। लेकिन उस धमाके में जो लोग मारे गए, या जो लोग बुरी तरह से घायल हुए, वो और उनके परिजन किस हाल में होंगे, ये भी मुझे नहीं पता। शायद वो भी इस खबर को सुनकर उस दहशत को महसूस कर काँप ही उठे होंगे।