Sunday, November 24, 2024
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पद्मनाभस्वामी मंदिर से रामलला के लिए आ रहा विशेष भेंट ‘ओणाविल्लू’, जीवंत होगी सदियों पुरानी परंपरा: वामन अवतार और महाबली से जुड़ा है इतिहास

‘ओणाविल्लू' तीन सदी पुरानी परंपरा के तहत भगवान श्री पद्मनाभ को समर्पित एक औपचारिक भेंट है। स्थानीय लोग हर साल ‘तिरुओणम' के पवित्र मौके पर भगवान पद्मनाभ मंदिर में यह भेंट चढ़ाते हैं।

अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम चल रहा है। भगवान राम के 5 वर्षीय बालक स्वरूप की मूर्ति अब मंदिर में पहुँच चुकी है। उनसे जुड़े प्रतिष्ठान अयोध्या में चल रहे हैं। इस बीच, केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर की तरफ से रामलला के लिए ‘विशेष भेंट’ भेजी जा रही है। ये विशेष भेंट धनुष ‘ओणाविल्लू’ है, जिसमें चित्रों के माध्यम से पूरी रामायण गाथा दिखाई जाती है।

गुरुवार (18 जनवरी, 2024) को पद्मनाभ मंदिर के पूर्वी द्वार पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में ‘ओणाविल्लू’ को ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ट्रस्ट के पदाधिकारी को सौंपा दिया गया। इसके बाद इसे प्लेन के माध्यम से कोच्चि से अयोध्या लाना है।

ओणाविल्लू क्या है?

‘ओणाविल्लू’ तीन सदी पुरानी परंपरा के तहत भगवान श्री पद्मनाभ को समर्पित एक औपचारिक भेंट है। स्थानीय लोग हर साल ‘तिरुओणम’ के पवित्र मौके पर भगवान पद्मनाभ मंदिर में यह भेंट चढ़ाते हैं। भक्तों द्वारा पवित्र माना जाने वाला ‘विल्लू’ धनुष के आकार में लकड़ी से बना होता है जिसके दोनों तरफ भगवान विष्णु के अवतारों को दर्शाया जाता है। यही विल्लू ओणम के पर्व के अवसर पर भगवान को समर्पित किया जाता है, इसलिए इसे ‘ओणाविल्लू’ कहा जाता है।

माना जाता है कि ओणाविल्लू केरल के सबसे पुराने मंदिर अनुष्ठानों में से एक है। ये उतना पुराना है, जितना कि पद्मनाभस्वामी मंदिर। ओणाविल्लू का समर्पण कुछ समय के लिए रुक गया, लेकिन वीरा इरावी वर्मा के शासनकाल के दौरान 1424 ईस्वी में इसे फिर से शुरू किया गया। साल 1731 में जब त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, तो विलायिल वीदु के आनंद मुथसारी पद्मनाभम मंदिर के ‘स्थापती’ थे। मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार पर मुथसारी की एक छोटी मूर्ति भी है।

इसे बनाने का अधिकार करमना मेलारनूर विलायिल विदु परिवार को दिया गया है। ये परिवार पारंपरिक रूप से मंदिर में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस परिवार के अलावा किसी अन्य के पास ‘ओणाविल्लू’ बनाने का अधिकार नहीं है।

ओणाविल्लू से जुड़ी किवदंती

ओणाविल्लू की कथा महाबली से जुड़ी हुई है। जब वामन ने विश्वरूप के माध्यम से अपनी असली पहचान दिखाई, तो महाबली ने भगवान विष्णु से अपने सभी 10 अवतार और संबंधित कहानियाँ दिखाने का अनुरोध किया। इस पर भगवान विष्णु ने विश्वकर्मा को बुलाया। ऐसा माना जाता है कि यह विश्वकर्मा ही थे जिन्होंने सबसे पहले ओणाविल्लू का निर्माण किया था। भगवान विष्णु ने महाबली को हर वर्ष समय-समय पर अवतार चित्र बनाकर दिखाने का भी वचन दिया।

तब से ही हर साल ओणम के मौके पर पद्मनाभस्वामी के मंदिर में ‘ओणाविल्लू’ का समर्पण किया जाता है। ओणाविल्लू के निर्माण के दौरान इसे बनाने वाला परिवार 41 दिनों तक संयम का पालन करता है। ओणाविल्लू का समर्पण सुबह लगभग 5 बजे होता है। मंदिर के सामने इसका भव्य तरीके से स्वागत किया जाता है। फिर प्रत्येक जोड़ी को मंदिर में अलग-अलग मूर्तियों को समर्पित किया जाता है।

ओणाविल्लू से जुड़ी खास जानकारियाँ

ओणाविल्लू कदम्ब और महगनी की लकड़ी से बनाया जाता है। ओणाविल्लू की लंबाई में भी अंतर होता है, जो साढ़े तीन फीट, चार फीट और साढ़े चार फीट के होते हैं। इसका डिज़ाइन उस नाव पर आधारित है जिस पर मंदिर का ‘थजिकाकुदम’ रखा गया है। इनमें दशावतारम विल्लू, अनंतशयनम विल्लू, श्रीराम पट्टाभिषेकम विलु, कृष्णलीला विलु, सस्था विल्लू और विनायक विलु शामिल हैं। इन्हें रंगने के लिए प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है।

ओणाविल्लू के निर्माण के दौरान परिवार 41 दिनों तक संयम का पालन करता है। ओणाविल्लू का समर्पण सुबह लगभग 5 बजे होता है। मंदिर के सामने इसका भव्य तरीके से स्वागत किया जाता है। फिर प्रत्येक जोड़ी को मंदिर में अलग-अलग मूर्तियों को समर्पित किया जाता है।

‘ओणाविल्लू’ की लंबाई में मुख्य अंतर

मुख्य देवता अनंतपद्मनाभन (भगवान विष्णु) के लिए अनंतशयनम विल्लू को 4.5 फीट आकार की लकड़ी पर बनाया जाता है। इसके बाद नरसिम्हामूर्ति (दशावतारम विल्लू), श्री राम (श्री राम पट्टाभिषेकम विल्लू) और शास्ता को 4 फीट लंबी लकड़ी पर बनाया जाता है। लंबाई में तीसरे नंबर पर श्री कृष्ण (श्री कृष्णलीला विल्लू) और विनायक (गणेश विल्लू) को 3.5 फीट आकार की लकड़ी पर बनाया जाता है। सभी की चौड़ाई समान .75 इंच होती है।

मूल रूप से ‘अनंतशयनम विल्लू’, दशावतारम विलु’, और ‘श्रीकृष्णलीला विलु’ को पद्मनाभस्वामी मंदिर में पेश किया जाता था, लेकिन समय-समय पर अन्य देवताओं के लिए ओणाविल्लू का निर्माण किया जाता है।

बता दें कि पद्मनाभस्वामी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और भगवान राम को भी भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और पुराणों में भी इसका जिक्र है। पद्मनाभस्वामी मंदिर को दुनिया के सबसे अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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