झारखंड में आदिवासी समाज हमेशा से ईसाई मशीनरी के निशाने पर रहा है। उनकी अशिक्षा और गरीबी का फायदा उठाकर उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन देकर उनका धर्मांतरण किया जाता रहा है। वहीं, आदिवासी समाज में कई जनजातीय समूह ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी परंपरा, संस्कृति और संस्कारों से कभी भी समझौता नहीं किया है। गोंड जनजाति भी इन्हीं में एक है।
दैनिक जागरण के मुताबिक, झारखंड के ईसाई बहुल आबादी वाले सिमडेगा जिले में बड़े पैमाने पर आदिवासियों का धर्मांतरण हुआ है, लेकिन यहाँ ईसाई मिशनरियों के लिए गोंड जनजाति के लोगों का धर्म परिवर्तन करना बहुत ही मुश्किल रहा है। तमाम विपरीत परिस्थितियों और संघर्षों के बावजूद इस जनजाति के लोग अपने पारंपरिक मूल्यों को संरक्षित रखने में कामयाब रहे हैं।
सिमडेगा में पिछले करीब 40 वर्ष में गोंड जनजाति में धर्मांतरण के गिने-चुने मामले ही सामने आए हैं। अगर कोई धर्मांतरण हुआ भी है, तो बाद में समाज के लोगों ने उस शख्स की घर-वापसी करवा ली है। जिले भर में 54 हजार गोंड जनजाति के परिवार निवास करते हैं। ये जनजाति समूह में रहती है और सामूहिक रूप से निर्णय लेती है। इनकी पूजा पद्धति, रीति-रिवाज और संस्कृति में सनातन परंपरा का साफ नजर आती है।
शुरू से ही इस समाज के लोग भगवान शंकर को अपना आराध्य मानते हैं। यही नहीं सिमडेगा में तीन दशकों से गोंड समाज से भाजपा के विधायक भी रहे हैं। गजाधर गोंड, निर्मल कुमार बेसरा और विमला प्रधान 30 वर्षों से अधिक समय तक विधायक के रूप में निर्वाचित होते रहे हैं। ये तीनों जनप्रतिनिधि भी समाज को धर्मांतरण से बचाने के प्रयास करते रहे हैं।
गोंड महासभा की सलाहकार व भाजपा सरकार में मंत्री रहीं विमला प्रधान ने कहा, “गोंड समाज की भाषा-संस्कृति प्राचीन व समृद्ध है। हम सभी अपनी संस्कृति को लेकर बेहद गंभीर हैं। यही कारण है कि हमारे समाज के लोग धर्म परिवर्तन से बचे हुए हैं और अन्य जनजातियों की अपेक्षा गोंड समाज में धर्मांतरण बेहद कम हुआ है।”