सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के आठ सदस्यों की जमानत रद्द कर दी है। कोर्ट ने कहा, राष्ट्रीय सुरक्षा हमेशा सर्वोपरि है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने के फैसले में भी बदलाव किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इनके गंभीर आरोपों में सिर्फ डेढ़ साल ही जेल में काटे हैं, ऐसे में उन्हें छोड़ना सही नहीं होगा।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की वेकेशन बेंच ने मद्रास हाई कोर्ट द्वारा दिए गए जमानत के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता और अधिकतम सजा के तहत जेल में बिताए गए सिर्फ 1.5 साल को ध्यान में रखते हुए हम जमानत देने के हाई कोर्ट के आदेश में दखल दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए की अपील स्वीकार करते हुए कहा कि एनआईए ने जो कोर्ट के सामने सामग्री रखी है, उसके आधार पर प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
एनआईए ने अदालत को बताया कि अपीलकर्ताओं के पास आरएसएस नेताओं की ‘मार्क’ की गई तस्वीरें मिली थी, जो इनके निशाने पर थे। इसके साथ ही एनआईए ने पीएफआई के विजन 2047 को भी कोर्ट में रखा गया था। विजन 2047 के मुताबिक, भारत में इस्लामी राज्य की स्थापना का लक्ष्य रखा गया था। इन सभी को एनआईए ने गिरफ्तार किया था, जो तमिलनाडु, केरल, यूपी समेत देश के कई हिस्सों से हैं।
पीएफआई के जिन 8 सदस्यों को मद्रास हाई कोर्ट से जमानत मिली थी, उन पर देश भर में आतंकवादी गतिविधियों की साजिश रचने के आरोप हैं। इन आठ सदस्यों के नाम हैं- बाराकतुल्लाह, अहमद इदरीस, खालीद मोहम्मद, सईद इश्हाक, ख्वाजा मौहेउद्दीन, यासिर आराफात, फयाज अहमद और मोहम्मद अब्बुताहिर। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
#BREAKING #SupremeCourt cancels bail granted to 8 members of banned organization, Popular Front of India, holding that national security is of paramount importance and any terrorist act is liable to be restricted. pic.twitter.com/u8P5PQJzim
— LawBeat (@LawBeatInd) May 22, 2024
एनआईए की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने जमानत इस आधार पर रद्द करने का आदेश दिया कि उनके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय सुरक्षा हमेशा सर्वोपरि है। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि आतंकवादी घटना हिंसक या अहिंसक प्रतिबंधित किया जा सकता है।