सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (3 अक्टूबर 2023) को रामसेतु के समुद्र वाले हिस्से में कुछ किलोमीटर तक दीवार बनाने की माँग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता ने इसके पीछे तर्क दिया था कि इससे लोग वहाँ जाकर ‘दर्शन’ कर सकेंगे। इसके साथ ही याचिका में राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की भी प्रार्थना की गई है।
इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ इस याचिका को खारिज कर दिया। पीठ ने साफ शब्दों में कहा कि यह एक प्रशासनिक मामला है और याचिकाकर्ता को इसके बजाय सरकार से संपर्क करना चाहिए।
याचिकाकर्ता अशोक पांडे ने अपनी याचिका में पीठ से अनुरोध किया था कि उनकी याचिका को सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका के साथ टैग किया जाए। दरअसल, स्वामी ने ‘राम सेतु’ को राष्ट्रीय विरासत का दर्जा देने की माँग की है, जो कि लंबित है। स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट को कहा था कि इसे राष्ट्रीय विरासत का दर्जा देने की प्रक्रिया जारी है।
याचिकाकर्ता से जस्टिस कौल ने सवाल किया कि इस मसले पर सुब्रमण्यम स्वामी की एक याचिका लंबित है। उन्होंने कहा कि अगर एक याचिका लंबित है तो एक और याचिका की क्या आवश्यकता क्या है। उन्होंने याचिकाकर्ता पांडे से पूछा, “आप क्या चाहते हैं? अदालत दीवार बनाने का निर्देश कैसे दे सकती है? ये प्रशासनिक मामले हैं।”
इसके बाद याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि इस याचिका को सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका के साथ टैग कर दिया जाए। इस पर जज ने कहा, “नहीं, हम इसे नहीं जोड़ रहे हैं… हम याचिकाकर्ता द्वारा माँगे गए किसी भी निर्देश देने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। खारिज की जाती है।”
बता दें कि इस बिंदु पर सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका कोर्ट में लंबित है। उस याचिका पर केंद्र सरकार (Central Government) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को बताया था कि इस ऐतिहासिक धरोहर को राष्ट्रीय विरासत स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया संस्कृति मंत्रालय में चल रही है।
अशोक पांडे की याचिका पर मार्च 2023 में सुनवाई हुई थी। याचिका में यह भी कहा गया था कि रामसेतु पर दीवार बनाए जाने से करोड़ों लोगों की इच्छा पूरी होगी। वे उस ऐतिहासिक और पौराणिक पुल पर चल सकेंगे, जिस पर चलकर भगवान राम अपनी सेना के साथ लंका गए गए थे और वहाँ जाकर जाकर अत्याचारी रावण को मारकर राम राज्य की स्थापना की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी को कहा था कि अगर उनके पास इससे संबंधित कोई अन्य दस्तावेज या सामग्री है तो वो संस्कृति मंत्रालय को दे सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा था कि स्वामी चाहें तो मंत्रालय के समक्ष अतिरिक्त बातें रख सकते हैं। इस पर स्वामी था ने कहा कि वे अपनी बातें रख चुके हैं।
बता दें कि भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद सु्ब्रमण्यम स्वामी (Subramaniyan Swamy) ने रामसेतु को ऐतिहासिक स्मारक के रूप में मान्यता देने की माँग वाली याचिका दाखिल की थी। इसके बाद उन्होंने साल 2020 में इस याचिका पर जल्द सुनवाई की माँग की थी।
इससे पहले केंद्र सरकार ने 12 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि स्वामी की याचिका पर वह फरवरी के पहले सप्ताह में जवाब दाखिल करेगी। जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने सुनवाई फरवरी के दूसरे सप्ताह में करने की बात कही थी। हालाँकि, मामले को गुरुवार (19 जनवरी 2023) को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर लिया गया।
भाजपा नेता ने स्वामी ने कहा कि वह मुकदमे का पहला दौर उसी समय जीत चुके थे, जब केंद्र सरकार ने रामसेतु के अस्तित्व को स्वीकार किया था। उन्होंने कहा कि उनकी माँग पर विचार करने के लिए 2017 में बैठक संबंधित मंत्री ने बैठक बुलाई थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
बता दें कि सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इससे पहले की कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में सेतुसमुद्रम पोतमार्ग परियोजना के खिलाफ जनहित याचिका दायर किया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा और उसके बाद साल 2007 मे इस परियोजना पर रोक लगा दी।